इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले संगठन PFI पर मोदी सरकार ने पिछले वर्ष 2022 में ही बैन लगा दिया था. लेकिन इस संगठन की जड़ें देश के हर हिस्से में ऐसे फैल चुकी है कि बैन लगने के बावजूद अभी भी इनका पूरी तरह से सफाया नहीं हो पाया है. हालांकि, जांच एजेंसियों की ओर से लगातार इसके प्रयास किए जा रहे हैं. PFI वर्ष 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की प्लानिंग में लगा हुआ था लेकिन उससे पहले ही खेल हो गया और इस संगठन पर शिकंजा कस लिया गया. इसी बीच खबर है कि NIA ने PFI के खिलाफ अपनी पहली चार्टशीट दायर कर दी है, जिसमें कई तरह की बातें सामने आई हैं. PFI के ही दो सदस्यों को इस मामले में आरोपी बनाया गया है.
PFI की बड़ी साजिश पर, NIA का वार
बताया जा रहा है कि पिछले साल सितंबर में PFI ने एक बड़ी साजिश रच रही थी. उस साजिश का मकसद अलग अलग समुदायों के बीच नफरत और हिंसा फैलाना था. इसके साथ मुस्लिम युवाओं का माइंड ब्रेनवॉश किया जा रहा था, उन्हें हथियारों में ट्रेनिंग दी जा रही थी. ये सब कर 2047 तक इस्लामिक राष्ट्र बनाने की तैयारी थी. इस मामले में जांच एजेंसी ने मोहम्मद आसिफ और सादिक सरफ को आरोपी बनाया है. ये दोनों ही आरोपी ना सिर्फ मुस्लिम युवाओं को ट्रेनिंग दे रहे थे, बल्कि ट्रेनिंग कैंप भी लगातार आयोजित करवा रहे थे.
इनका सिर्फ एक काम था, मुस्लिम युवाओं में ये डर पैदा कर देना कि इस्लाम खतरे में है. उस डर के जरिए ही ये अपनी दुकान चलाना चाहते थे, देश को बांटने की तैयारी कर रहे थे. उसी कड़ी में 2047 तक इस्लामिक राष्ट्र बनाने की बात भी की जा रही थी. लेकिन NIA ने इस साजिश का पर्दाफाश कर दिया और अब पहली चार्जशीट भी दायर कर दी गई है. वैसे इस समय NIA एक नहीं कई मामलों में अपनी जांच कर रही है. कुछ दिन पहले ही जांच एजेंसी PFI के हवाला नेटवर्क का खुलासा किया था. उस मामले में पांच आरोपियों की गिरफ्तारी भी हुई थी. NIA के एक प्रवक्ता ने बताया कि सोमवार को कोटा के मोहम्मद आसिफ उर्फ़ ‘आसिफ’ और राजस्थान के बारां के सादिक सर्राफ पर यहाँ की विशेष अदालत में भी भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी गतिविधियों कि रोकथाम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाये गए हैं.
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2016 में NIA ने पहली बार किया था PFI का जिक्र
2016 में, जब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अधिकारियों ने उत्तरी केरल के कन्नूर में कनकमाला में एक गुप्त बैठक पर छापा मारा, तो वे सदमे में थे. आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) से प्रेरित होकर, युवाओं के एक समूह ने कथित तौर पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और विभिन्न समुदायों के बीच परेशानी पैदा करने के लिए ‘अल जरुल खलीफा’ नामक एक समूह बनाया था.
और बाद में एनआईए ने इसे केरल में पहला आईएस मॉड्यूल का नाम दिया था. केंद्रीय एजेंसी ने बाद में पाया कि गिरफ्तार किए गए लोगों में से कुछ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के सदस्य थे. इसके कुछ महीनों बाद, उत्तरी केरल के एक गांव से महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 22 लोग गायब हो गए; खुफिया अधिकारियों का मानना है कि वे अफगानिस्तान में आईएस में शामिल हो गए.
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कैसे अस्तित्व में आया PFI
देश में हर दौर की साम्प्रदायिक गड़बड़ी या आतंकी मॉड्यूल के भंडाफोड़ के बाद, इन दिनों आमतौर पर एक नाम सामने आता है – पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम या सीएए के खिलाफ उग्र विरोध और उसके बाद हुई हिंसा के बाद, इसका नाम खुफिया राडार पर वापस आ गया था. पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग, जिस पर अक्सर मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और कुछ राष्ट्र-विरोधी संगठनों के साथ स्थिर संबंध बनाए रखने का आरोप लगाया जाता है, अब जोर पकड़ रही है.
लेकिन यह संगठन कैसे आया और कम समय में इसकी अखिल भारतीय उपस्थिति के पीछे क्या कारण है? 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद अस्तित्व में आए तीन मुस्लिम संगठनों – नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट ऑफ़ केरला, कर्नाटक फ़ोरम फ़ॉर डिग्निटी और तमिलनाडु की मनिथा नीति पसारी – के विलय के बाद 2006 में केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) की शुरुआत हुई थी. बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, दक्षिण भारत में कई छोटे-छोटे संगठन सामने आए थे और उनमें से कुछ को मिलाकर पीएफआई का गठन किया गया था.
10% फार्मूला पर PFI करती है काम
बिहार की राजधानी पटना के फुलवारी शरीफ इलाके से चरमपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ संबंध रखने वाले दो आरोपियों को पकड़ा गया था. इनकी गिरफ्तारी के बाद से बिहार पुलिस ‘भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल आतंकी मॉड्यूल’ का भंडाफोड़ करने का दावा कर रही थी.
आरोपियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में बिहार पुलिस ने खुलासा किया कि उन्होंने पांच अलग- अलग अहम दस्तावेज भी जब्त किए थे. इन दस्तावेजों में भारत को 2047 तक इस्लामिक शासन की ओर ले जाने का जिक्र किया गया था. इसके लिए उन्होंने दस्तावेजों में पुख्ता प्लानिंग भी बनाई. जब्त किए गए दस्तावेजों के पेज नंबर 3 में 10% वाले फॉर्मूले का जिक्र किया गया है. पीएफआई का मानना है कि अगर कुल मुस्लिम आबादी का केवल 10% भी इसके साथ जुड़ता है, तो भी पीएफआई ‘कायर बहुसंख्यक’ समुदाय को उसके घुटनों पर ला देगा और इस्लामी शासन की स्थापना करेगा.
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भारत के इस्लामीकरण का रोडमैप भी किया तैयार
फुलवारी शरीफ के अपर पुलिस अधीक्षक मनीष कुमार ने एक प्रेस कांफ्रेंस में बताया था कि झारखंड के सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी मोहम्मद जलालुद्दीन और अतहर परवेज को गिरफ्तार किया गया. आरोपी पीएफआई से जुड़े हैं.” उन्होंने कहा था कि जलालुद्दीन पहले स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुड़ा था. इनसे प्राप्त दस्तावेजों में लिखा है, “भारत को इस्लामिक देश बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया है जो सभी पीएफआई नेताओं द्वारा बनाया गया है. इस लक्ष्य के लिए पीएफआई कैडरों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय को मार्गदर्शन करने के लिए तैयार किया गया है.”
कई हिंसक घटनाओं में आ चुका है पीएफआई का नाम
आतंकी संगठन सिमी के प्रतिबंधित होने के बाद इंडियन मुजाहिद्दीन का गठन किया गया था. 2013 में आतंकी यासीन भटकल की गिरफ्तारी से इंडियन मुजाहिद्दीन की कमर टूट गई थी. सूत्रों के मुताबिक इंडियन मुजाहिद्दीन के पतन के बाद देश के विभिन्न राज्यों में पीएफआई और उसकी सहयोगी संस्था सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया को मजबूत करने का काम किया जा रहा है. केरल की दो और कर्नाटक की एक संस्था को मिलाकर पीएफआई का गठन किया गया था. बीते कुछ महीनों में हुई कई सांप्रदायिक हिंसाओं में पीएफआई का नाम आ चुका है. इसकी जांच जारी है. पीएफआई को अभी तक देश में प्रतिबंधित नहीं किया गया है.