Same sex marriage पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला, शादी नही बच्चा ले सकते हैं गोद

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Same sex marriage : समलैंगिक विवाह की वैधता जिसका मतलब है कि एक पुरुष एक पुरुष से और एक महिला-दूसरी महिला से विवाह कर सकेंगे. वहीं इस समलैंगिक विवाह (Same sex marriage) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फैसला सुनाया है. दरअसल, समलैंगिक विवाह की वैधता पर 10 दिनों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और अब लगभग पांच महीने बाद वह अपना फैसला सुनाया है. वहीं अब इस मामले को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए समलैंगिक शादी (Same sex marriage) को मान्यता देने से इनकार कर दिया.

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CJI ने कही ये अहम बातें  

रिपोर्ट के अनुसार, सेम सेक्स मैरिज यानी समलैंगिक विवाह मान्यता देने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने फैसला सुनाया. जहाँ सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों वाली बेंच समलैंगिक शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया. तो वहीं सीजेआई ने कहा कि ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है. हालांकि सीजेआई ने समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया है. वहीं CJI (DY Chandrachud) ने केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए उचित कदम उठाने के आदेश दिए हैं.

विवाह की संस्था बदल गई है जो इस संस्था की विशेषता है. सती और विधवा पुनर्विवाह से लेकर अंतरधार्मिक विवाह..विवाह का रूप बदल गया है बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. यदि राज्य समलैंगिक संबंधों को मान्यता नहीं देता है तो वह अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है. अधिकार पर उचित प्रतिबंध हो सकता है.. लेकिन अंतरंग संबंध का अधिकार अप्रतिबंधित होना चाहिए.

जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी है. यह अदालत कानून नहीं बना सकती, वह केवल इसकी व्याख्या कर सकती है और इसे प्रभावी बना सकती है. वहीं विवाह के ठोस लाभ कानून की सामग्री में पाए जा सकते हैं. यदि राज्य इसे मान्यता नहीं देता है और लाभ का एक समूह नहीं है, तो एक साथी चुनने और रिश्ते और अंतरंग संबंध में प्रवेश करने की स्वतंत्रता निरर्थक होगी, अन्यथा प्रणालीगत भेदभाव होगा. सीजेआई ने कहा कि अदालत एसजी मेहता की तरफ से प्रस्तावित समिति समलैंगिक जोड़ों के लिए लाभों पर गौर करेगी.

समलैंगिकों सहित सभी व्यक्तियों को नैतिक गुणों का मूल्यांकन करने का अधिकार है.. ये गुण पूर्ण नहीं हैं और इन्हें कानून द्वारा विनियमित किया जा सकता है. स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि व्यक्ति जो करना चाहता है उसे कानून के अनुसार करें. यह कहना गलत होगा कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है. विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, इसका निर्णय संसद को करना है.

यदि कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति किसी विषमलैंगिक व्यक्ति से शादी करना चाहता है तो ऐसे विवाह को मान्यता दी जाएगी क्योंकि एक पुरुष होगा और दूसरा महिला होगी. ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला से शादी करने का अधिकार है.

ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष और ट्रांसजेंडर महिला और ट्रांसजेंडर से शादी करने का अधिकार है. पुरुष भी शादी कर सकता है और अगर अनुमति नहीं दी गई तो यह ट्रांसजेंडर अधिनियम का उल्लंघन होगा.

समलैंगिकता केवल शहरी अवधारणा नहीं है या समाज के उच्च वर्ग तक ही सीमित नहीं है. यह कल्पना करना कि समलैंगिकता केवल शहरी इलाकों में मौजूद है, उन्हें मिटाने जैसा होगा. किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति समलैंगिक हो सकता है.

घर की स्थिरता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिससे स्वस्थ कार्य जीवन संतुलन बनता है और स्थिर घर की कोई एक परिभाषा नहीं है और हमारे संविधान का बहुलवादी रूप विभिन्न प्रकार के संघों का अधिकार देता है. CARA विनियमन 5(3) असामान्य यूनियनों में भागीदारों के बीच भेदभाव करता है. यह गैर-विषमलैंगिक जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा. इस प्रकार एक अविवाहित विषमलैंगिक जोड़ा गोद ले सकता है, लेकिन समलैंगिक समुदाय के लिए ऐसा नहीं है.

समलैंगिक व्यक्तियों के साथ भेदभाव न किया जाना समानता की मांग है. समलैंगिक लोगों सहित सभी को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता का आकलन करने का अधिकार है. केंद्र, राज्य, केंद्रशासित प्रदेश समलैंगिक अधिकारों के बारे में आम लोगों को जागरूक करने के लिए कदम उठाएं.कानून अच्छे और बुरे पालन-पोषण के बारे में कोई धारणा नहीं बना सकता है और यह एक रूढ़ि को कायम रखता है कि केवल विषमलैंगिक ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं. इस प्रकार विनियमन को समलैंगिक समुदाय के लिए उल्लंघनकारी माना जाता है.

इस विषय पर साहित्य की सीमित खोज से यह स्पष्ट हो जाता है कि समलैंगिकता कोई नया विषय नहीं है. लोग समलैंगिक हो सकते हैं, भले ही वे गांव से हों या शहर से.. न केवल एक अंग्रेजी बोलने वाला पुरुष समलैंगिक होने का दावा कर सकता है.. बल्कि ग्रामीण इलाके में एक खेत में काम करने वाली महिला भी हो सकती है.

सेम सेक्स मैरिज पर क्या बोली सरकार 

वहीं इस समलैंगिक विवाह (gay marriage) के मामले में केंद्र सरकार ने कहा था कि इस पर कानून बनाने का हक सरकार का है. सरकार का कहना है कि यह ना सिर्फ देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है, बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 160 प्रावधानों में बदलाव करना होगा और पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी.

इन देशों में मिली है समलैंगिक विवाह को मान्यता

आपको बता दें,  साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने ही सेम सेक्स रिलेशनशिप को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला फैसला दिया था. दरअसल, IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था. हालांकि, दुनिया में देखा जाए तो 33 ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह को मान्यता दी गई है. इनमें करीब 10 देशों की कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को मान्यता दी है. इसके अलावा, 22 देश ऐसे हैं, जहां कानून बनाकर स्वीकृति मिली है.

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