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हिन्दू क्यों मनाते है पितृपक्ष, जानिए पिंडदान का महत्व ?

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हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का महत्व

  • इस साल पितृपक्ष 10 सितम्बर से लेकर 25 सितम्बर तक का होगा।

हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद अपने पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए श्राद्ध करने का बहुत बड़ा महत्व है। हिन्दू धर्म ग्रंथो में कहा जाता है कि अगर यह श्राद्ध पितृ पक्ष की लगन में किया जाए तो इस श्राद्ध का फल कई गुना तक बढ़ जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में 15 दिनों के लिए अपने पूर्वज और पितरों के लिया प्रार्थना, भोजन और पानी अर्पित करते हैं। यह 15 दिन का समय पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या तक का होता है। हिन्दू पितृपक्ष महीने में पूरी श्रद्धा के साथ अपने पितरों को याद करते है और उनको आभार व्यक्त कर उनसे आशीर्वाद लेते है। हिन्दू धर्म में वैसे तो बहुत सारी मान्यता होती हैं पर पितृ पक्ष महीने में अपने पूर्वजों के आत्मा शांति के लिए सभी पितरों का उनकी निश्चित तिथि पर तर्पण, श्राद्ध करने का बहुत महत्व माना जाता है। इन 15 दिनों में लोग पिंडदान, श्राद्ध तथा तर्पण करते है ताकि उनके पूर्वज प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद और सुख समृद्धि दें।

हिन्दू धर्म में पितृपक्ष की मान्यता 

हिन्दू धर्म में मानना है की जिस इंसान या पूर्वजों की मृत्यु हो जाती है उनकी आत्मा स्वर्ग और पृथ्वी (पितृ लोक) के बीच भटकती रहती है। यह भी कहा जाता है की उनकी आत्मा अभी भी बेचैन और सांसारिक माया से जुड़ी हुई है। इस पितृपक्ष महीना में अगर उनके संतान उनके लिए पिंडदान करे तो उनकी आत्मा मुक्त होकर ब्रह्मलोक चली जाती है। पिंडदान असल में एक क्रिया होती है जिसमे लोग अपने पितरों की आत्मा शांति के लिए कुछ खास मंदिरों और जगहों पर पूजा और अनुष्ठान करते हैं। पितृपक्ष और पिंडदान के दौरान ऐसे बहुत सारे काम है जो पिंडदान करने वालों के लिए मनाही होती। 

पिंडदान और पितृ पक्ष में गया शहर का महत्व 

पितृपक्ष और पिंडदान के लिए बिहार के गया शहर का भी बहुत बड़ा महत्व है। दूर-दूर से लोग इस छोटे से शहर में आकर कुछ खास जगहों पर जाकर अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करते है। कहा जाता है की जो भी इंसान ‘गया’ में आकर ‘फल्गु नदी, सीता कुंड, ब्रह्मयोनि पहाड़’ इत्यादि पर जाकर अपने पूर्वजो का पिंडदान करता है तो उनकी पूर्वजों की आत्मा ब्रह्मलोक चली जाती है। गया में हीं सीता माता ने राम जी के ना होने पर उनके पिता दशरथ जी का पिंडदान किया था। इसलिए गया का पिंडदान और पितृपक्ष में बहुत बड़ा महत्व है। 

पितृपक्ष में पिंडदानियों को क्या-क्या नहीं करना चाहिए ?

पितृपक्ष में जो भी इंसान अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान कर रहा होता है उसे खाने-पिने और रहने में कुछ सावधानी लेनी पड़ती है। मूल रूप से पिंडदानियों को इन पांच बातों का ख्याल रखना होता है। 

• पिंडदानियों को मांस, मछली तथा मदिरा (alcohol) का सेवन नहीं करना चाहिए. यहाँ तक की प्याज लहसुन से भी परहेज करना चाहिए। 

• पिंडदानियों को जमींन पर चटाई या किसी पतले गद्दे पर सोना चाहिए। 

• पितृपक्ष के दौरान पिंडदानियों को अपने बाल और नाख़ून नहीं काटने चाहिए। पिंडदानियों को पिंड अर्पण करने से पहले अपना मुंडन करवा लेना चाहिए। 

• इस दौरान किसी पशु पक्षी या अन्न का अपमान नहीं करना चाहिए। 

• कोई भी इंसान किसी अन्य की आत्मा शांति के लिए पिंडदान नहीं कर सकता। केवल संतान ही अपने पिता या उनके पूर्वजों के लिए पिंडदान कर सकती है।

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