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Britain Sikh Taxi Drivers: ब्रिटेन में सिख टैक्सी और ट्रक ड्राइवर का योगदान, पढ़ें एक मजबूत समुदाय की कहानी

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Britain Sikh Taxi Drivers: ब्रिटेन में सिख समुदाय का इतिहास गहराई से जुड़ा हुआ है और यह समुदाय न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से भी ब्रिटेन की विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस विस्तृत रिपोर्ट में हम ब्रिटेन में सिखों के इतिहास, उनकी प्रवासन की कहानियों, उनके सामाजिक संघर्षों, आर्थिक योगदान और धार्मिक पहचान से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

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ब्रिटेन में सिख धर्म का प्रारंभिक इतिहास- Britain Sikh Taxi Drivers

ब्रिटेन में सिखों का पहला उल्लेखनीय आगमन महाराजा दलीप सिंह के रूप में हुआ, जो पंजाब के अंतिम सिख शासक थे। 1849 में, अंग्रेजों के साथ हुए आंग्ल-सिख युद्धों के बाद उन्हें शासन से हटा दिया गया और 14 वर्ष की आयु में उन्हें ब्रिटेन निर्वासित कर दिया गया। महाराजा दलीप सिंह नॉरफ़ोक के थेटफोर्ड के निकट एल्वेडेन एस्टेट में रहने लगे। उनकी ब्रिटेन में एक प्रतिमा है, जिसका अनावरण 1999 में प्रिंस ऑफ वेल्स ने किया था। हालांकि उनके आगमन के बावजूद, ब्रिटेन में पहला सिख गुरुद्वारा 1911 में लंदन के पुटनी में स्थापित हुआ।

Britain Sikh Taxi Drivers
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मुख्य प्रवासन: पंजाब से ब्रिटेन

1950 और 1960 के दशक में पंजाब से ब्रिटेन मुख्य रूप से पुरुष श्रमिकों का प्रवासन हुआ। ब्रिटेन की औद्योगिक इकाइयों में कम कुशल श्रमिकों की भारी कमी थी, जिसके चलते पंजाब के कई लोग काम की तलाश में ब्रिटेन आए। वे मुख्य रूप से फाउंड्री, वस्त्र उद्योग, टैक्सी और ट्रक ड्राइविंग जैसे क्षेत्रों में काम करने लगे। आरंभिक समय में कई प्रवासियों ने नस्लवाद और रोजगार की बाधाओं के कारण अपने धार्मिक प्रतीकों जैसे पगड़ी, बाल और दाढ़ी को छुपाया या हटा दिया।

पंजाब से पलायन के पीछे कई कारण थे, जिनमें 1947 में भारत-पाकिस्तान का विभाजन और उससे उत्पन्न हिंसा प्रमुख था। पंजाब का वह हिस्सा जो अब पाकिस्तान में है, वहां सिखों और अन्य धार्मिक समुदायों के बीच हिंसा हुई और विस्थापन हुआ। इसके बाद 1966 में भारत ने पंजाब को तीन हिस्सों में विभाजित कर पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बनाया। इस कारण भी सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ी, जिससे कई सिखों ने स्थायी रोजगार और बेहतर जीवन के लिए विदेश जाना बेहतर समझा।

पूर्वी अफ्रीका से सिखों का ब्रिटेन आगमन

पूर्वी अफ्रीका से आने वाले सिख समुदाय ने भी ब्रिटेन में अपनी मजबूत पहचान बनाई। तंज़ानिया, युगांडा और केन्या जैसे देशों में अफ्रीकीकरण की नीतियों के चलते कई एशियाई, विशेषकर सिख, अपने रोजगार और समुदाय से वंचित होकर ब्रिटेन आए। अफ्रीकी सिख अपने धार्मिक प्रतीकों के प्रति अधिक गर्व करते थे और इन्हें खुले तौर पर स्वीकार करते थे। वे आम तौर पर अधिक शिक्षित और कुशल थे, जिससे ब्रिटेन में उनकी स्थिति मजबूत बनी। उनकी मौजूदगी ने ब्रिटेन के सिख समुदाय को अधिक दृढ़ और संगठित बनाया।

ब्रिटेन में सिखों की आबादी और सामाजिक स्थिति

2021 के ब्रिटिश जनगणना के अनुसार ब्रिटेन में लगभग 5,35,000 सिख रहते हैं, जो कुल जनसंख्या का लगभग 0.8 प्रतिशत है। अकेले लंदन में सिखों की संख्या 1,44,543 है, जिसमें साउथ हॉल क्षेत्र में 20,843 सिख निवास करते हैं। साउथ हॉल को ‘मिनी पंजाब’ कहा जाता है क्योंकि यहां सिखों की संख्या अधिक होने के कारण भारतीय संस्कृति का दबदबा है। यहां स्थित गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा भारत के बाहर सबसे बड़ा गुरुद्वारा माना जाता है।

सिखों का आर्थिक योगदान और ट्रक ड्राइवरों की भूमिका

ब्रिटेन में सिख समुदाय ने ट्रक ड्राइविंग और व्यवसाय में खासा योगदान दिया है। 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 20,000 पंजीकृत ट्रक ड्राइवर सिख समुदाय से हैं। ब्रिटेन में ट्रक ड्राइवरों की भारी कमी के कारण, बड़ी कंपनियां जैसे टेस्को और सेन्सबरी उच्च वेतन और बोनस देकर ड्राइवरों को आकर्षित कर रही हैं। वार्षिक वेतन 70,000 पाउंड तक पहुंच सकता है, इसके अलावा 2,000 पाउंड का बोनस भी दिया जा रहा है। 17 वर्षों से ट्रक ड्राइविंग कर रहे एक ड्राइवर बैरी के अनुसार यह वेतन बहुत आकर्षक है और कंपनियां अपनी स्टॉक की व्यवस्था बनाए रखने के लिए वीकेंड ड्यूटी पर भी ज्यादा भुगतान कर रही हैं।

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सिख समुदाय के धार्मिक संघर्ष: वूल्वरहैम्प्टन बस ड्राइवरों का केस

है। ब्रिटेन में सिख ड्राइवरों ने अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान बनाए रखने के लिए कई संघर्ष भी किए हैं। 1960 के दशक में वूल्वरहैम्प्टन के सिख बस ड्राइवरों का एक महत्वपूर्ण संघर्ष हुआ। उस समय बस ड्राइवरों को साफ़ सुथरे और बिना दाढ़ी के काम पर आने का नियम था, जो सिख धर्म के धार्मिक आचार के खिलाफ था। टर्सेम सिंह संधू ने पगड़ी पहनने और बाल न काटने की अपनी धार्मिक आज़ादी के लिए आवाज़ उठाई। इस आंदोलन ने ब्रिटेन में धार्मिक पहचान और अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई छेड़ी। 1969 में यह अधिकार मिला कि सिख ड्राइवर पगड़ी पहन सकते हैं। इस संघर्ष के दौरान सामाजिक और नस्लीय तनाव भी बढ़े, जिसमें प्रसिद्ध सांसद इनोच पॉवेल ने भी पगड़ी विवाद पर विवादास्पद बयान दिया था।

ब्रिटेन में सिखों के लिए धार्मिक और सामाजिक सुधार

इतना ही नहीं, ब्रिटेन में सिख समुदाय ने पारिवारिक और नागरिक विवादों को हल करने के लिए ‘सिख कोर्ट’ स्थापित की है, जो सिख सिद्धांतों के अनुसार न्याय प्रदान करती है। यह धार्मिक न्यायाधिकरण नहीं है, बल्कि समुदाय के भीतर सामाजिक और पारिवारिक विवादों का समाधान करती है।

इसके अलावा, 2019 में ब्रिटेन ने सिखों को धार्मिक कारणों से कृपाण (धार्मिक तलवार) रखने का अधिकार दिया। यह ब्रिटिश गृह विभाग के साथ सिख समुदाय के परामर्श का परिणाम था, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान का सम्मान सुनिश्चित हुआ।

सिख सैनिकों के लिए भी ब्रिटिश सेना ने विशेष प्रार्थना पुस्तकें ‘नितनेम गुटका’ जारी की हैं, जो सैन्य जीवन में उनकी धार्मिक आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। यह पहल सिखों के लिए सम्मान और समावेश का प्रतीक है।

ब्रिटेन में ट्रक ड्राइवरों की कमी और उससे जुड़ी समस्याएं

हालांकि, ब्रिटेन में भारी वाहन चालक (एचजीवी) की कमी लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है। औसत उम्र 55 से ऊपर होने के कारण कई ड्राइवर सेवानिवृत्त हो रहे हैं, लेकिन युवाओं का आकर्षण कम है। खराब वेतन, कठिन कार्य परिस्थितियां, और लंबे अनिश्चित घंटों के कारण युवा इस पेशे में आना कम पसंद करते हैं। कोविड-19 महामारी और ब्रेक्सिट के कारण विदेशी ड्राइवरों की संख्या भी घट गई, जिससे समस्या और गहरी हो गई। सरकार ने अस्थायी वीजा योजना शुरू की, जिसके तहत 5,000 विदेशी ड्राइवरों को कार्य अनुमति दी गई।

वहीं, यह कहना भी गलत नहीं होगा कि ब्रिटेन में सिख समुदाय की यात्रा संघर्षपूर्ण और गौरवपूर्ण रही है। उनकी धार्मिक पहचान, सामाजिक संघर्ष, और आर्थिक योगदान ब्रिटेन की विविधता और समृद्धि का अभिन्न हिस्सा हैं।

और पढ़ें: Britain’s Southhall Gurudwara – Europe’s largest Gurudwara: ब्रिटेन का साउथहॉल गुरुद्वारा- यूरोप का सबसे बड़ा गुरुद्वारा

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