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20 January 2024 : आज की मुरली के ये हैं मुख्य विचार

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20 January ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 20 जनवरी 2024 (20 January ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.

“मीठे बच्चे – तुम कल्याणकरी बाप के बच्चों का कर्तव्य है सर्व का कल्याण करना, सबको बाप की याद दिलाना और ज्ञान दान देना”
प्रश्नः-बाबा महारथी किन बच्चों को कहते हैं, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-जो अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं, जिन पर सदा ब्रहस्पति की दशा है, जो अपनी और सर्व की उन्नति का सदा ख्याल रखते हैं, जो यज्ञ सेवा में हड्डियां देते हैं, जो बाबा के कार्य में मददगार रहते हैं – वह हैं महारथी। ऐसे महारथी बच्चों को बाबा कहते – यह हैं मेरे सपूत बच्चे।

ओम् शान्ति। आजकल बच्चे शिव जयन्ती के लिए तैयारियाँ कर रहे हैं। कार्ड आदि भी छपाते हैं। बाप ने समझाया तो बहुत बारी है। सारी मुख्य बात गीता पर है। मनुष्यों की बनाई हुई गीता को पढ़ते-पढ़ते आधाकल्प नीचे उतरते आये हैं। यह भी तुम बच्चे समझते हो – आधाकल्प है दिन, आधाकल्प है रात। अब बाबा टापिक देते हैं उस पर मंथन करना पड़े। तुम लिख सकते हो भाई और बहनों आकर समझो – एक गीता शास्त्र है ज्ञान का, बाकी सब शास्त्र हैं भक्ति के। ज्ञान का शास्त्र एक ही है जो पुरुषोत्तम संगमयुग पर बेहद का बाप परमपिता परमात्मा त्रिमूर्ति शिव सुनाते हैं या तो लिखना है ब्रह्मा द्वारा सुना रहे हैं, जिससे 21 जन्म सद्गति होगी। ज्ञान की गीता से 21 जन्म का वर्सा मिलता है फिर 63 जन्म भक्ति की गीता चलती है जो मनुष्यों की बनाई हुई है। बाप तो राजयोग सिखलाकर सद्गति कर देते हैं। फिर सुनने की दरकार नहीं रहती इस ज्ञान की गीता से दिन हो जाता है। यह ज्ञान का सागर बाप ही सुनाते है, जिससे 21 जन्म गति सद्गति होती है अर्थात् 100 परसेन्ट पवित्रता सुख शान्ति का अटल अखण्ड सतयुगी दैवी स्वराज्य मिलता है। 21 जन्मों के लिए चढ़ती कला होती है। मनुष्यों की बनाई हुई गीता से उतरती कला होती है। भक्ति की गीता और ज्ञान की गीता पर अच्छी तरह विचार सागर मंथन करना है। यह मूल बात है जो मनुष्य नहीं जानते। तुम लिखते हो त्रिमूर्ति शिव जयन्ती सो श्रीमत भगवत गीता जयन्ती सो सर्व की सद्गति भवन्ती। यह भी सुना सकते हो कि शिव जयन्ती सो विश्व में शान्ति भवन्ती। मुख्य अक्षर बहुत जरूरी है, जिस पर ही सारा मदार है। तुम सबको बतला सकते हो कि मनुष्य, मनुष्य की सद्गति कर नहीं सकते। भगवान सद्गति करने आते हैं – पुरुषोत्तम संगमयुग पर, जो अब हो रही है। यह 2-3 प्वाइंट्स मुख्य हैं। शिव और कृष्ण की गीता का कान्ट्रास्ट तो है ही। त्रिमूर्ति शिव भगवान से संगम पर गीता सुनने से सद्गति होती है। ऐसी-ऐसी प्वाइंट्स पर जब कोई विचार सागर मंथन करे तब औरों पर भी असर पड़े। मनुष्य, मनुष्य की सद्गति कभी कर नहीं सकते। सिर्फ एक ही त्रिमूर्ति परमपिता परमात्मा शिव जो टीचर भी है, सतगुरू भी है वह इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर सर्व की सद्गति कर रहे हैं। कार्ड में थोड़ी लिखत ही हो। ऊपर में लिख देना चाहिए कलियुगी कौड़ी जैसे पतित मनुष्य से सतयुगी हीरे जैसा पावन देवी देवता बनने का ईश्वरीय निमंत्रण। ऐसे लिखने से मनुष्य खुशी से आयेंगे – समझने के लिए। सद्गति दाता बाप की ही शिव जयन्ती मनाई जाती है। एकदम क्लीयर अक्षर हो, मनुष्य तो भक्ति मार्ग में कितने ढेर शास्त्र पढ़ते हैं। माथा मारते हैं। यहाँ एक सेकेण्ड में बेहद के बाप से मुक्ति जीवनमुक्ति मिलती है। जब बाप का बनकर उनसे नॉलेज लेते हैं तो जीवनमुक्ति अवश्य ही मिलेगी। पहले मुक्ति में जाकर जैसा पुरुषार्थ किया होगा, ऐसे जीवनमुक्ति में जरूर आयेंगे। जीवनमुक्ति मिलती जरूर है फिर शुरू में आये वा पिछाड़ी में आये। पहले जीवनमुक्ति में आते फिर जीवनबन्ध में। ऐसी-ऐसी मुख्य प्वाइंट्स अगर धारण करें तो भी बहुत सर्विस कर सकते हैं। अगर बाप को जानते हो तो दूसरों को भी परिचय दो। किसको परिचय नहीं देते तो गोया ज्ञान नहीं है। समझानी तो दी जाती है परन्तु तकदीर में नहीं है, कल्याणकारी बाप के बच्चे तो कल्याण करना चाहिए। नहीं तो बाप समझेंगे यह कहने मात्र कहते हैं कि हम शिवबाबा के बच्चे हैं। कल्याण तो करते नहीं। साहूकार अथवा गरीब कल्याण तो सबका करना है। परन्तु पहले गरीब उठायेंगे क्योंकि उन्हों को फुर्सत है। ड्रामा में नूँध ही ऐसी है। एक साहूकार अगर अभी आ जाए तो उनके पिछाड़ी ढेर आ जायें। अब अगर महिमा निकले तो ढेरों के ढेर आ जायें।

तुम्हारा है ईश्वरीय मर्तबा। तुम अपना भी और औरों का भी कल्याण करते हो। जो अपना ही कल्याण नहीं करते तो औरों का भी कर नहीं सकते। बाप तो है कल्याणकारी, सर्व का सद्गति दाता। तुम भी मददगार हो ना। तुम जानते हो वह है भक्तिमार्ग की दशा। सद्गति मार्ग की दशा एक ही है जो अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं उन पर है ब्रहस्पति की दशा। उनको महारथी कहेंगे। अपनी दिल से पूछो हम महारथी हैं। फलाने-फलाने मिसल सर्विस करते हैं। प्यादे कभी किसको ज्ञान सुना न सकें। अगर किसका कल्याण नहीं करते तो अपने को कल्याणकारी बाप का बच्चा क्यों कहलाना चाहिए। बाप तो पुरुषार्थ करायेगा। इस यज्ञ सेवा में हड्डियाँ भी देनी चाहिए। बाकी सिर्फ खाना पीना सोना वह सर्विस हुई क्या। ऐसे तो जाकर प्रजा में दास दासी बनेंगे। बाप तो कहते हैं पुरुषार्थ कर नर से नारायण बनो। सपूत बच्चों को देख बाप भी खुश होंगे। लौकिक बाप भी देखते हैं यह तो बहुत अच्छा मर्तबा पाने वाला है तो देखकर खुश होंगे। पारलौकिक बाप भी ऐसे कहते हैं। बेहद का बाप भी कहते हैं हम तुमको विश्व का मालिक बनाने आये हैं। अब तुम औरों को भी बनाओ। बाकी सिर्फ पेट की पूजा करने से क्या फायदा होगा। सबको सिर्फ यही बताओ कि शिवबाबा को याद करो। भोजन पर भी एक दो को बाप की याद दिलाओ तो सब कहेंगे इनकी शिवबाबा से बहुत प्रीत है। यह तो सहज है ना। इसमें क्या नुकसान है। टेव (आदत) पड़ जायेगी तो खाते रहेंगे और बाबा को भी याद करते रहेंगे। दैवी गुण भी जरूर धारण करने हैं। अभी तो सब पुकारते हैं हे पतित-पावन आओ तो जरूर पतित हैं। शंकराचार्य भी शिव को याद करते हैं क्योंकि वही पतित-पावन है। आधाकल्प भक्ति करते हैं फिर भगवान आते हैं, कोई को हिसाब का थोड़ेही पता है। बाप समझाते हैं – यज्ञ, तप, दान से मैं नहीं मिलता हूँ, इसमें गीता भी आ जाती है। यह शास्त्र आदि पढ़ने से कोई की सद्गति नहीं होती है। गीता, वेद, उपनिषद सब हैं भक्ति मार्ग के। बाप तो बच्चों को सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाते हैं, जिससे राजाई प्राप्त कराते हैं। इनका नाम ही है राजयोग। इसमें पुस्तक की कोई बात नहीं। टीचर स्टडी कराते हैं – पद प्राप्त कराने के लिए, तो फालो करना चाहिए। सबको बोलो शिवबाबा को याद करो। वह हम सब आत्माओं का बाप है। शिव-बाबा को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। एक दो को सावधान कर उन्नति को पाना है। जितना याद करेंगे उतना अपना ही कल्याण है। याद की यात्रा से सारे विश्व को पवित्र बनायेंगे। याद में रहकर भोजन बनाओ तो उसमें भी ताकत आ जायेगी इसलिए तुम्हारे ब्रह्मा भोजन की बहुत महिमा है। वह भक्त लोग भोग लगाते हैं तो भी राम-राम कहते रहते हैं। राम नाम का दान देते हैं। तुमको तो बुद्धि में घड़ी-घड़ी बाप की याद रहनी चाहिए। बुद्धि में सारा दिन ज्ञान रहना चाहिए। बाप के पास सारी रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है ना। ऊंचे ते ऊंचा भगवान है तुम उनको याद करेंगे तो ऊंच पद प्राप्त करेंगे। फिर दूसरे किसको याद ही क्यों करें। बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो तो दूसरे सब छोड़ने पड़ते हैं। यह है अव्यभिचारी याद। अगर याद नहीं पड़ती तो गाँठ बाँध लो। अपनी उन्नति के लिए, ऊंच पद पाने के लिए पुरुषार्थ जरूर करना है। हमको भी टीचर बनाने वाला शिवबाबा हमारा टीचर है। तुम सब पण्डे हो ना। पण्डों का काम है रास्ता बताना। इतना सारा ज्ञान पहले थोड़ेही तुम्हारे में था। सब कहते हैं पहले तो जैसे पाई पैसे की पढ़ाई थी। सो तो जरूर होगा। ड्रामा अनुसार कल्प पहले मिसल पढ़ते रहते हैं। फिर कल्प के बाद भी ऐसे ही पढ़ेंगे। पिछाड़ी में तुमको सब साक्षात्कार होंगे। साक्षात्कार होने में देरी नहीं लगती है। बाबा को जल्दी-जल्दी साक्षात्कार होते गये। फलाना-फलाना राजा बनेंगे, यह ड्रेस होगी। शुरू में बच्चों को बहुत साक्षात्कार होते थे फिर अन्त में बहुत होंगे, फिर याद करेंगे। अच्छा-

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) भोजन पर एक दो को बाप की याद दिलाओ, याद में भोजन खाओ। एक शिव बाबा से ही सच्ची प्रीत रखो।

2) यज्ञ सेवा में हड्डियाँ देनी है। बाप का पूरा मददगार बनना है।

सभी गोप गोपियों प्रति मातेश्वरी जी के हस्तों से लिखा हुआ याद पत्र (1961)

सभी गोप-गोपियों प्रति अति यादप्यार।

बाद समाचार कि आप सब गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान अपनी जीवन में सफलता को पाते रहते हो ना! लाडले गोप तो अब सर्विस को अच्छी रीति उठाने के पुरुषार्थ में लग गये हैं, बहुत अच्छा है। आखिर भी अपने परम पूज्य बाप का परिचय सबको मिलना ही है। यह तो जानते हो कि इस ऊंच प्राप्ति को कोटों में कोई ही पा सकेंगे, परन्तु ऐसे फूल जरूर निकलेंगे तो ना! अच्छा, तेज रफ्तार से सर्विस को बढ़ाते चलो। खजाना अविनाशी ज्ञान धन का तो बहुत अनोखा है, अखुट है, जो बाप द्वारा सभी बच्चों को मिलता ही रहता है। कोई इसे प्राप्त कर ले तो जन्म-जन्मान्तर के लिये मालामाल बन जाये, यह चीज़ ही ऐसी है। कहो, लाडले गोप-गोपियाँ ठीक बात है ना!

आप सभी गोप गोपियां अतीन्द्रिय सुखमय जीवन के अनुभव से जीवन बिताते चलते चलो। देखो लाडले गोप, गोपियाँ अब इस ब्राह्मण कुल की वृद्धि होने में ही सबका कल्याण है। फिर तो ब्राह्मण सो देवता अवश्य बनेंगे। जैसे कई अपने गृहस्थ व्यवहार में रहते भी ब्राह्मण कुल वंशी बनकर चल रहे हैं अर्थात् गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहते हैं, हम एक बाप के बच्चे हैं, ऐसी पवित्र धारणा में रहते हैं। बाकी सभी को उस परमपिता बाप के डायरेक्शन पर ही चलना है, इसको ही श्रीमत पर चलना कहा जाता है। ऐसी धारणा में चलने वालों को ही ब्राह्मण कुल वंशी कहा जाता है। जबकि अब वही बाप, टीचर, सतगुरु बना है, धर्मराज भी है, तो क्यों न उनकी गोद का बच्चा बन अपना पूर्ण पवित्रता का अधिकार ले लेना चाहिए। जिससे ही भविष्य में सुख शान्ति का पूरा अधिकार प्रालब्ध रूप में प्राप्त हो जाता है।

कहो, लाडले गोप-गोपियाँ ऐसे सहज राज़ को समझ गये हो ना! जीते जी मरने अथवा मरजीवा बनने में डरते तो नहीं हो ना! आज यह पत्र हर एक अपने-अपने नाम से समझे और अपना पत्र समझकर पढ़े अथवा सुनें और माँ का प्यार भी हर एक अपने नाम से पाये। हर एक गोप-गोपी प्रति नाम सहित माँ का अत्यंत प्यार। अच्छा, अपना सौभाग्य ऊंच बनाने के पुरुषार्थ में तीव्र वेग से लगे रहना ही कल्याणकारी बनना है, जबकि अभी पता चला है कि स्वयं परमपिता ऊंच वर्सा देने आया है तो लेकर ही रहना है। अच्छा, छुट्टी लेते हैं। ओम् शान्ति।

वरदान:-अविनाशी प्राप्ति के आधार पर सदा सम्पन्नता का अनुभव करने वाले प्रसन्नचित भव
संगमयुग पर डायरेक्ट परमात्म प्राप्ति है, वर्तमान के आगे भविष्य कुछ भी नहीं है इसलिए आपका गीत है जो पाना था वो पा लिया…..इस समय का गायन है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खजाने में। यह अविनाशी प्राप्तियां हैं। इन प्राप्तियों से सम्पन्न रहो तो चलन और चेहरे से सदा प्रसन्नता की विशेषता दिखाई देगी। कुछ भी हो जाए सर्व प्राप्तिवान अपनी प्रसन्नता छोड़ नहीं सकते।
स्लोगन:-परमात्म प्यार के अनुभवी बनो तो कोई भी रुकावट रोक नहीं सकती।

 

अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो

कोई भी आपके समीप सम्पर्क में आये तो महसूस करे कि यह रूहानी हैं, अलौकिक हैं। अपने पूर्वजपन की स्मृति से सभी आत्माओं की पालना शान्ति की शक्ति से करो। आपका फर्ज है – अशान्ति के वायुमण्डल में आत्माओं को शान्ति का दान देकर उनमें शान्ति की, सहनशक्ति की हिम्मत भरना। इसके लिए अपनी वृत्ति द्वारा, मन्सा शक्ति द्वारा विशेष सेवा करो। लाइट-हाउस बन सर्व को शान्ति की लाइट दो।

जानिए कैसे कर सकते हैं श्री प्रेमानंद महाराज जी से मुलाकात.

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