गुरु नानक देव के छूते ही मोम बन गया था पत्थर, ऐसी है गुरुद्वारा पत्थर साहिब की कहानी

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Gurdwara Pathar Sahib Details in Hindi – गुरुद्वारा पत्थर साहिब कारगिल लेह राजमार्ग पर लेह शहर से 25 मील दूर स्थित एक अत्यधिक सम्मानित रत्न है. सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक देवी जी को समर्पित, पवित्र स्थान उनकी लद्दाख यात्रा को खूबसूरती से याद करता है. 1517 के समय के गुरुद्वारे में श्री गुरु नानक देव के सिर, कंधे और पीठ के निशान के साथ एक शिलाखंड है.

न केवल सिख और हिंदू श्रद्धालु बल्कि तिब्बती भी पाथर साहिब गुरुद्वारे में पूरी श्रद्धा के साथ मत्था टेकते हैं. बाद वाले यहां के पीठासीन देवता को लामा नानक या गुरु गोम्पा महाराज के रूप में पूजते हैं. इस जगह के साथ एक किंवदंती जुड़ी हुई है और लेह-लद्दाख जाने वाले लोगों के लिए यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है.

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Pathar Sahib से जुड़ा चमत्कारिक इतिहास

ऐतिहासिक जानकारी मिलती है कि श्री गुरु नानक देव जी भूटान, नेपाल, चीन से होते हुए लद्दाख पहुंचे थे. लेह में लोगों का कल्याण करते हुए वह कश्मीर के मट्टन में आए. लेह और मट्टन में गुरुद्वारे श्री गुरु नानक देव जी याद दिलाते हैं. अगर हम बात लेह की करें तो वहां पत्थर साहिब गुरुद्वारा है. गुरुद्वारे का इतिहास काफी अहम है जिसमें गुरु जी ने एक राक्षक को सही रास्ते पर लाकर लोगों का भय दूर किया था.

gurudwara pathar sahib
source-google

यह गुरुद्वारा लेह से पहले 25 किमी दूर श्रीनगर-लेह रोड पर स्थित है. श्री गुरु नानक देव जी 1517 ई में सुमेर पर्वत पर अपना उपदेश देने के बाद लेह पहुंचे थे. वहां पहाड़ी पर रहने वाला एक राक्षस लोगों को बहुत तंग करता था. लोगों ने अपने दुख को गुरु जी के सामने बयां किया. गुरु नानक देव जी ने नदी किनारे अपना आसन लगा लिया.

जब पत्थर बन गया मोम

एक दिन की बात है कि जब श्री गुरु नानक देव जी प्रभु की भक्ति में लीन (Gurdwara Pathar Sahib Details) थे, तब राक्षस ने गुरु जी को मारने के लिए पहाड़ से बड़ा पत्थर गिरा दिया. गुरु जी से स्पर्श होते ही पत्थर मोम जैसा बन गया. इससे गुरु जी के शरीर का पिछला हिस्सा पत्थर में धंस गया. गुरुद्वारे में पत्थर में धंसा श्री गुरु नानक देव जी के शरीर का निशान आज भी पत्थर पर मौजूद हैं. तब राक्षस पहाड़ से नीचे उतरा और गुरु जी को ङ्क्षजदा देखर हैरान रह गया.

history of gurudwara pathar sahib
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गुस्से में आकर राक्षस ने अपना दायां पैर पत्थर पर मारा, लेकिन उसका पैर पत्थर में धंस गया. तब राक्षस को अहसास हुआ कि उससे गलती हुई. राक्षक गुरु जी के चरणों में गिर पड़ा. राक्षस के पैर का निशान भी पत्थर पर देखे जा सकते हैं. गुरु जी ने राक्षक को उपदेश दिया कि बुरे काम मत करो, लोगों को तंग न करो, मानव के कल्याण के लिए काम करो. इस समय गुरुद्वारा पत्थर साहिब की संभाल का जिम्मा भारतीय सेना के पास है.

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गुरुद्वारा पत्थर साहिब का पुनर्जन्म

Gurdwara Pathar Sahib Details in Hindi – 1970 के दशक के अंत में लेह-निमू रोड के निर्माण के दौरान पवित्र शिलाखंड फिर से तस्वीर में आया. इस वजह से, निर्माण कार्य रोक दिया गया और चट्टान को हटाने के लिए श्रमसाध्य प्रयास किए गए. यहां तक ​​कि बड़े पत्थर को हटाकर रास्ता बनाने के लिए बुलडोजर भी चलाए गए. हालाँकि, सब कुछ व्यर्थ गया. उस रात बुलडोजर के चालक सहित लोगों ने एक सर्वोच्च शक्ति की कल्पना की थी जो उन्हें बोल्डर को न हिलाने का आदेश दे रही थी.

gurudwara pathar sahib
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सेना अधिकारी के आश्चर्य के लिए, उसका भी चट्टान को न हिलाने का एक ही सपना था. सपने को नज़रअंदाज करते हुए उन्होंने अगली सुबह उसी के लिए काम करना शुरू कर दिया. लेकिन, इस बार, अन्य कार्यकर्ताओं के साथ उनका सामना कई लद्दाखियों और लामाओं से हुआ. उन्होंने गुरु नानक देव जी की पूरी घटना सुनाई और पवित्र चट्टान के पीछे के रहस्य से पर्दा उठाया. बाद में, स्थानीय लोगों, सेना के अधिकारियों और लामाओं की मदद से वहां एक गुरुद्वारा बनाया गया.

Pathar Sahib के आसपास के आकर्षण

गुरुद्वारा पत्थर साहिब में आनंद का आनंद लेने के अलावा, आसपास के कुछ आकर्षणों को देखने की योजना भी बना सकते हैं.

  • मैग्नेटिक हिल- डाउनहिल रोड का एक अपहिल रोड होने का भ्रम पैदा करते हुए, मैग्नेटिक हिल दुनिया भर के आगंतुकों को आकर्षित करता है. गुरुत्वाकर्षण के नियमों की अवहेलना करने के लिए यह स्थान अवश्य जाना चाहिए. जब आप इतनी दूर यात्रा कर चुके हों, तो लेह के शीर्ष आकर्षणों में से एक को खोजने के लिए और 3 किमी की दूरी तय करें.
  • बास्गो गोम्पा– एक मठ जो भगवान बुद्ध के भित्ति चित्रों और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है.
  • हेमिस नेशनल पार्क- पार्क आपको जंगली में हिम तेंदुए को देखने की अनुमति देता है.
  • फ्यांग मठ– एक विशाल गोम्पा जिसमें परिसर के भीतर कई पवित्र मंदिर हैं.

गुरुद्वारा पत्थर साहिब कब जा सकते हैं?

नवंबर से मई तक भारी हिमपात श्रीनगर और मनाली में लद्दाख की ओर जाने वाली सड़कों को अवरुद्ध कर देता है. इसलिए, यदि कोई अभी भी इस दौरान गुरुद्वारा जाना चाहता है, तो लेह पहुंचने के लिए हवाई यात्रा ही एकमात्र विकल्प है. इसलिए, गुरुद्वारा पत्थर साहिब जाने का सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक है जब लेह लद्दाख के रास्ते खुले होते हैं.

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