गुरुनानकदेव से जुड़े गुरुद्वारे – सिख धर्म के संस्थापक प्रथम पातशाह साहिब श्री गुरु नानक देव जी एक महान आध्यात्मिक चिंतक और समाज सुधारक थे. उनका जन्म राय भोईं की तलवंडी में पिता महिता कालू एवं माता तृप्ता के घर सन् 1469 ई. में हुआ. वास्तव में आपका अवतरण बैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया को हुआ परन्तु सिख जगत में परंपरा अनुसार आपका अवतार पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है.
अपनी चार उदासियों के दौरान नानका देव विश्व के अनेक भागों में गए और मानवता के घर्म का प्रचार किया. और सबसे खास बात ये रही है कि नानक देव जी जहाँ भी गए जिस जगह भी रुके वो जगह वो जगह आज के वक़्त में प्रसिद्ध पवित्र गुरूद्वारे में सुशोभित हो गई. आज हम आपको उन्ही गुरुद्वारों से अवगत कराएंगे जहाँ श्री गुरु नानक देव जी गए थे.
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पाकिस्तान स्थित ननकाना साहिब
पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित शहर ननकाना साहिब (Nankana Sahib Details) का नाम ही गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा है. इसका पुराना नाम ‘राय भोई दी तलवंडी’ था. यह लाहौर से 80 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और भारत में गुदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से भी दिखाई देता है. गुरु नानक देव जी का जन्मस्थान होने के कारण यह विश्व भर के सिखों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है. महाराजा रणजीत सिंह ने गुरु नानक देव के जन्म स्थान पर गुरुद्वारे का निर्माण करवाया था.
यहां गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाश स्थान के चारों ओर लंबी चौड़ी परिक्रमा है, जहां गुरु नानकदेव जी से संबंधित कई सुन्दर पेंटिग्स लगी हुई हैं.
बटाला में श्रीकंध साहिब
बटाला स्थित श्रीकंध साहिब (Gurudwara Kandh Sahib Details Hindi) में गुरु जी की बारात का ठहराव हुआ था. इतिहासकारों के अनुसार सम्वत 1544 यानी 1487 ईस्वी में गुरु जी की बारात जहां ठहरी थी वह एक कच्चा घर था, जिसकी एक दीवार का हिस्सा आज भी शीशे के फ्रेम में गुरुद्वारा श्री कंध साहिब में सुरक्षित है. इसके अलावा आज यहां गुरुद्वारा डेरा साहिब है, जहां श्री मूल राज खत्री जी की बेटी सुलक्खनी देवी को गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी से बारात लेकर ब्याहने आए थे.
गुरुद्वारा डेरा साहिब में आज भी एक थड़ा साहिब है, जिस पर माता सुलक्खनी देवी जी तथा श्री गुरुनानक देव जी की शादी की रस्में पूरी हुई थीं. इन गुरुघरों (Gurudwara Kandh Sahib Details Hindi) की सेवा संभाल का काम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी कर रही है. हर साल उनके विवाह की सालगिरह पर सुल्तानपुर लोधी से नगरकीर्तन यहां पहुंचता है.
Gurudwara Gaughat – गुरुनानकदेव से जुड़े गुरुद्वारे
गुरु नानक देव साहिब 1515 ईस्वी में इस स्थान पर विराजमान हुए थे. उस समय यह सतलुज दरिया के किनारे पर स्थित था. उस समय लुधियाना के नवाब जलाल खां लोधी अपने दरबारियों सहित गुरु जी के शरण में आए व गुरु चरणों में आग्रह किया है हे सच्चे पातशाह, यह शहर सतलुज दरियां किनारे स्थित है, इसके तूफान से शहरवासियों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
आप इस पर कृपा करें. उनके जबाव में गुरु महाराज ने कहा कि आप सभी सच्चे मन से पूजा अर्चना करें. इतिहास से संबंधित होने के कारण इसका प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा लोक प्रबंधक कमेटी व लोकल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (Gurudwara Gaughat Details Hindi) के पास है.
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संगरूर में गुरुद्वारा नानकियाना साहिब
संगरूर से 4 किलोमीटर दूर गुरुद्वारा नानकियाना साहिब (Gurudwara Nankiana Sahib Details) को गुरु नानक देव और गुरु हरगोबिंद जी की चरण छोह प्राप्त है. सोलहवीं शताब्दी की शुरुआत में श्री गुरु नानक देव जी यहां आए थे. उस समय मंगवार गांव वर्तमान गुरुद्वारा साहिब के करीब एक तालाब था जहां गुरु जी ने ग्रामीणों को उपदेश दिया था.
करीब एक सदी बाद जब 1616 में गुरु हरगोबिन्द साहिब ने गांव का दौरा किया, तब गुरु नानक देव जी द्वारा पवित्र किए गए सरोवर की पवित्रता बनाए रखने के लिए यहां गुरुद्वारा साहिब का निर्माण कर वचन किए. यहां बीचोंबीच मंजी साहिब तथा थड़ा साहिब हैं. यहां एक पवित्र हथियार भी संरक्षित है, जिसे 1724 के साथ फारसी अंकों में गुर्जिताबार नाम दिया गया है.
फाजिल्का में गुरुद्वारा बड़ तीर्थ
श्री गुरु नानक देव जी उदासियों के दौरान फाजिल्का के गांव हरिपुरा में रुके थे. उनके वहां आगमन के दौरान उनके पैरों की छाप आज भी यहां मौजूद है. जहां गुरुनानक देव जी ठहरे थे, वहां आज एक भव्य गुरुद्वारा बड़ साहिब बना हुआ है. देश के विभाजन से पूर्व बने इस गुरुद्वारे में हर अमावस्या और गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव व अन्य गुरुपर्व श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं.
गुरुनानक देव जी अपनी उदासियों के दौरान मथुरा से पाकपटन जाते हुए वृन्दावन, गोकुल, रिवाड़ी, हिसार, सिरसा से होते हुए फाजिल्का तहसील के गांव हरिपुरा में पहुंऐ थे. यहां गांव के बाहरी इलाके में एक बड़ वृक्ष के नीचे बैठकर ईश्वर भक्ति में लीन हो गए. उनके साथ उनके शिष्य भाई बाला जी और मरदाना जी भी थे.
सुल्तानपुर लोधी में श्रीबेर साहिब – गुरुनानकदेव से जुड़े गुरुद्वारे
गुरु नानक देव जी ने अपने भक्ति काल का सबसे अधिक समय सुल्तानपुर लोधी में बिताया. यहां उनसे संबंधित अनेक गुरुद्वारे सुशोभित हैं. इनमें से प्रमुख हैं श्रीबेर साहिब (Gurudwara Sri Ber Sahib) जहां उनका भक्ति स्थल था. गुरु जी ने यहां 14 साल 9 महीने 13 दिन तक भक्ति की. यहीं उनके बैठने के स्थल को भोरा साहिब कहते हैं. भोरा साहिब के निकट ही बेरी का एक पेड़ है जिसके बारे में मान्यता है कि गुरु जी ने अपने भक्त खरबूजे शाह के निवेदन पर उसे यहां लगाया था. 550 साल बाद भी यह हरीभरी है और अब काफी बड़े क्षेत्र में फैल गई है.
गुरु साहिब की उदासियां
13 वर्ष तक मोदीखाने में नौकरी करने के बाद गुरु नानक देव जी ने लोक कल्याण के लिए चारों दिशाओं में चार यात्राएं करने का निश्चय किया जो चार उदासियों के नाम से प्रसिद्ध हुईं. सन् 1499 ई. में आरंभ हुई इन यात्राओं में गुरु जी भाई मरदाना के साथ पूर्व में कामाख्या, पश्चिम में मकका-मदीना, उत्तर में तिब्बत और दक्षिण में श्रीलंका तक गए. मार्ग में अनगिनत प्रसंग घटित हुए जो विभिन्न साखियों के रूप में लोक-संस्कार का अंग बन चुके है. सन् 1522 ई. में उदासियां समाप्त करके आपने करतारपुर साहिब को अपना निवास स्थान बनाया.
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