Uttarakhand ends Patwari system: उत्तराखंड में 200 साल पुरानी पटवारी पुलिस व्यवस्था खत्म, 1,983 गांवों में अब रेगुलर पुलिस के हवाले

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Uttarakhand ends Patwari system: उत्तराखंड में करीब दो सौ साल पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था अब इतिहास बनने की ओर बढ़ रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने एक बड़ा और लंबे समय से अटका फैसला लागू करते हुए राज्य के 1,983 राजस्व गांवों को नियमित पुलिस के दायरे में लाने की मंजूरी दे दी है। इसे राज्य की कानून व्यवस्था में सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जा रहा है। हालांकि, यह कदम अचानक नहीं उठा। इसकी पृष्ठभूमि में अदालत के पुराने आदेश, बढ़ते अपराध, संसाधनों की कमी और कई विवादित केस शामिल हैं जिन्होंने राजस्व पुलिस व्यवस्था की कमजोरी एक-एक कर सामने रख दी थी।

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कैसे बदलेगा उत्तराखंड का पुलिस मैप? (Uttarakhand ends Patwari system)

सरकार के मुताबिक अब इन गांवों में किसी भी अपराध की जांच, रिपोर्ट दर्ज करना, कार्रवाई करना और केस को आगे बढ़ाना सब कुछ सीधे रेगुलर पुलिस करेगी। यानी अब गांवों में एफआईआर लिखवाने के लिए पटवारी के चक्कर नहीं लगाने होंगे, न ही राजस्व कर्मचारियों पर निर्भर रहना पड़ेगा।

धामी ने फैसले पर मुहर लगाते हुए कहा, “यह ऐतिहासिक निर्णय है। इससे पुलिस पर जनता का भरोसा बढ़ेगा और कानून व्यवस्था ज्यादा मजबूत होगी।”

क्यों खत्म की जा रही है 200 साल पुरानी पटवारी पुलिस व्यवस्था?

राजस्व पुलिस सिस्टम असल में अंग्रेजों की देन है। पहाड़ी इलाकों में कम आबादी और कम संसाधनों की वजह से अंग्रेजों ने पटवारियों को ही पुलिस की भूमिका दे दी थी। लेकिन समय बदल गया, अपराध बदल गए, तकनीक आगे बढ़ गई पर यह व्यवस्था जस की तस रह गई।

  • पटवारियों के पास न आधुनिक जांच कौशल
  • न वायरलेस सिस्टम
  • न फॉरेंसिक सपोर्ट
  • न साइबर क्राइम की समझ
  • और कई बार न समय, क्योंकि उन्हें राजस्व का काम भी देखना होता था।

ऐसे में अपराधियों को बच निकलने का मौका मिलता रहा और कई मामलों में जांच कमजोर पड़ती गई।

हाईकोर्ट का आदेश 7 साल बाद लागू

आपको बता दें, इस फैसले का बीज 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने बोया था। अदालत ने साफ कहा था कि राजस्व पुलिस सिस्टम अपराध नियंत्रण में फेल हो रहा है। लेकिन सरकार ने संसाधनों की कमी का हवाला देकर इसे रोक दिया। आपको बता दें, अंकिता भंडारी हत्याकांड (2022) के बाद जनता का दबाव बढ़ा। लोगों ने बार-बार पूछा,“जब क्राइम मॉडर्न हो गया है तो पुलिसिंग पुराने जमाने की क्यों?” अंततः सरकार ने इसे लागू करने का फैसला ले लिया।

1,983 गांव पुलिस के हवाले, क्या बदलने वाला है?

1. अपराधी अब बच नहीं पाएंगे

अब हर केस की जांच ट्रेनिंग प्राप्त पुलिस अधिकारी करेंगे। इससे केस में तेजी और निष्पक्षता की उम्मीद है।

2. ग्रामीण इलाकों में सीधे एफआईआर

पहाड़ों में कई बार छोटी शिकायतें सिर्फ इसलिए दर्ज नहीं होती थीं क्योंकि पटवारी की उपलब्धता नहीं होती थी। अब हर रिपोर्ट थाने में दर्ज होगी।

3. पुलिस की जवाबदेही और बढ़ेगी

सरकार अब पूरे पहाड़ी क्षेत्र में एक समान पुलिस सिस्टम लागू करने जा रही है।

4. आधुनिक तकनीक की पहुंच गांवों तक

फॉरेंसिक, साइबर सेल और डिजिटल ट्रैकिंग जैसी सुविधाएँ अब गांव स्तर पर भी जांच का हिस्सा बनेंगी।

5. सीमांत इलाकों की सुरक्षा और मजबूत

चीन सीमा लगे इलाकों में भी अब आधुनिक पुलिसिंग को बढ़ावा मिलेगा।

पूर्व डीजीपी का बयान- “देर से सही, पर फैसला सही”

उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी एबी लाल ने इस कदम को मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा, “राजस्व पुलिस प्रणाली पुरानी और अप्रभावी हो चुकी थी। अब अपराधों का स्वरूप बदल गया है, इसलिए आधुनिक पुलिसिंग ही समाधान है।” उन्होंने माना कि राजस्व पुलिस की सीमाएं अपराधियों को मौके देती थीं कि वे सबूत मिटाकर बच निकलें।

जानकारों का मत ‘बहुत पहले हो जाना चाहिए था’

वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड मामलों के जानकार जय सिंह रावत कहते हैं, “राजस्व पुलिस के पास न तकनीक थी, न कौशल। इस वजह से जांचें लंबी चलीं, केस कमजोर हुए और कभी-कभी न्याय तक नहीं मिल पाया। यह बदलाव देर से आया लेकिन बेहतर है कि आया।”

नुकसान और चुनौतियाँ भी कम नहीं

यह फैसला जितना बड़ा है, उतनी ही बड़ी चुनौतियाँ भी साथ लेकर आता है:

1. पुलिस फोर्स पर बढ़ेगा दबाव

नए गांवों में पुलिस की तैनाती, गाड़ियाँ, चौकियाँ और तकनीक सब कुछ चाहिए होंगे।

2. पहाड़ी इलाकों में थानों की दूरी

कई गांव अभी भी थाने से कई किलोमीटर दूर हैं। ऐसे में पुलिस के पहुँचने में समय लग सकता है।

3. पटवारी सिस्टम का सीमित होना

इससे पटवारियों की परंपरागत भूमिका कम हो जाएगी। इससे राजस्व कामकाज प्रभावित होने का खतरा भी है।

4. पुराने केसों का ट्रांजिशन

कौन सा केस किसके पास जाएगा? पुराने दस्तावेज कैसे ट्रांसफर होंगे? यह भी एक बड़ी प्रक्रिया है।

जनता की उम्मीदें- “अब असली पुलिसिंग गांवों तक आएगी”

ग्रामीण इलाकों में लोग मानते हैं कि अब कार्रवाई तेजी से होगी, भ्रष्टाचार कम होगा। साथ ही, जांच में पारदर्शिता आएगी और अपराधियों का डर बढ़ेगा

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