मणिपुर में 3 मई 2023 से अब तक क्या-क्या हुआ, हिंसा को लेकर केंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए, जानिए क्या है राज्य की जमीनी हकीकत

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साल था 2023, समय था 3 मई का जब मणिपुर में आरक्षण के मुद्दे पर कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जातीय हिंसा शुरू हुई। दरअसल मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिए जाने की मांग के कारण कुकी समुदाय के लोग नाराज थे। इसके कारण दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ा और हिंसा का रूप लिया। समय के साथ ये हिंसा इतनी बढ़ती जा रही थी कि कुछ ही महीनों में न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार मणिपुर के हालात पर काबू पा सकी। लेकिन हैरानी की बात ये है कि आगजनी, गुंडागर्दी और हिंसा की चपेट में आए मणिपुर में क्या चल रहा था, इसकी राज्य से बाहर की दुनिया को कोई भनक तक नहीं लगी। क्योंकि मीडिया ने इस मुद्दे से मुंह मोड़ रखा था। वहीं मणिपुर हिंसा पहली बार दुनिया की नजरों में तब आई जब 19 जुलाई 2023 को दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने और उनके साथ बदसलूकी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा। लेकिन सबसे शर्मनाक बात ये थी कि ये घटना 4 मई 2023 को हुई थी, यानी की मणिपुर की चीखती पुकार को जनता तक पहुंचने में ढाई महीने लग गए।

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मणिपुर में हिंसा को लेकर 6 हजार मामले दर्ज

वर्तमान की बात करें तो राज्य में अब तक हिंसा के 6 हजार मामले दर्ज हुए हैं और 144 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। इन घटनाओं में अब तक 200 से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 65,000 से ज़्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। लेकिन हिंसा शुरू होने के 16 महीने बाद भी केंद्र और राज्य सरकारें इस हिंसा को रोकने में पूरी तरह विफल रही हैं। आइए आपको बताते हैं कि मणिपुर को लेकर केंद्र ने क्या कार्रवाई की और किस राजनेता ने क्या कहा।

2023 में केंद्र आई ऐक्शन में

पिछले साल जब मणिपुर में हालात बिगड़ने लगे थे तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य के सीएम एन बीरेन सिंह से बात की थी। सितंबर 2023 में, राज्य सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण बनाए रखने के प्रयास में “गंभीर स्थिति” में देखते ही गोली मारने का आदेश भी जारी किया। नियंत्रण बनाए रखने के लिए, असम राइफल्स और सेना ने 55 “कॉलम” भेजी गई। इसके अलावा, केंद्र द्वारा कई ‘रैपिड एक्शन फोर्स’ (RAF) टीमें भेजी गई हैं, जो मणिपुर की स्थिति पर नज़र रख रही हैं।

मणिपुर को लेकर पीएम मोदी का रुख

मई से चल रही हिंसा को लेकर पूरे विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी को घेरा था। क्योंकि पीएम मोदी मणिपुर मुद्दे पर चुप थे। इतना ही नहीं विपक्ष ने केंद्र की बीजेपी नीत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था और प्रधानमंत्री से मणिपुर के हालात पर बयान देने की मांग की थी। मणिपुर पर बोलने के लिए पीएम मोदी पर 70 दिनों से ज्यादा का समय लगा। काफी आलोचना के बाद 20 जुलाई को पीएम मोदी ने आखिरकार संसद के बाहर पहली बार मणिपुर मुद्दे पर टिप्पणी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के मानसून सत्र से पहले मीडिया से बात करते हुए मणिपुर की घटना का जिक्र किया और कहा कि उनका “हृदय पीड़ा से भरा हुआ है।” पीएम मोदी ने कहा था कि देश का अपमान हो रहा है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने नहीं किया मणिपुर का दौरा

मणिपुर हिंसा के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेताओं का मणिपुर दौरा सीमित हो गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2023 में राज्य का दौरा किया, जहां उन्होंने शांति बहाली के प्रयासों का निरीक्षण किया और विभिन्न समूहों से मुलाकात की। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर का दौरा नहीं किया, जिससे वहां के लोग नाराज हैं। इस दौरान राज्य में बीजेपी नेताओं के घरों पर हमले भी हुए। परेशान करने वाली बात यह है कि हिंसा शुरू हुए एक साल से ज़्यादा हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश भर में 162 दौरे किए, लेकिन मणिपुर से दूर रहे।

मणिपुर पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान और आलोचना

मणिपुर में हो रही हिंसा और मानवाधिकार हनन की घटनाओं ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा। मानवाधिकार संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने मणिपुर में चल रहे संघर्ष और उसके प्रभावों पर चिंता जताई और हस्तक्षेप की मांग की। मणिपुर हिंसा को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में व्यापक रूप से कवर किया गया

ब्रिटिश अखबार द गार्डियन ने मणिपुर घटना का शीर्षक दिया है- “नॉर्थ-ईस्ट भारत में जातीय हिंसा में हजारों लोगों के विस्थापित होने की डरावनी कहानी आई”

एक और अमेरिकी मीडिया CNN ने शीर्षक दिया है- “भारत के उत्तरपूर्व के एक राज्य में जातीय संघर्ष क्यों भड़क गया?”

अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने हिंसा की घटना को छापते हुए शीर्षक दिया है- “भारत के मणिपुर राज्य में जातीय संघर्ष में दर्जनों की मौत”

Manipur
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जनवरी 2024 में केंद्र का एक्शन

साल की शुरुआत में इंफाल पहुंचने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम ने मणिपुर के जातीय समूह के एक धड़े के साथ पहली बैठक की थी। इसके अलावा मणिपुर में हिंसा को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन सदस्यीय टीम इंफाल भेजी थी। एके मिश्रा की अध्यक्षता वाली यह टीम मणिपुर में जमीनी हालात का आकलन करने मणिपुर पहुंची थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के लिए मणिपुर से असम राइफल्स की बटालियनें मणिपुर भेजीं, लेकिन हालात देखकर लगता है कि अगर यहां पुलिस ही सुरक्षित नहीं है तो आम जनता कैसे सुरक्षित रहेगी।

मणिपुर में पुलिस पर हुआ हमला

इस साल की शुरुआत में 17 जनवरी को मणिपुर के थौबल जिले में उपद्रवियों ने पुलिस मुख्यालय पर हमला कर दिया था। उपद्रवी भीड़ की फायरिंग में तीन जवान घायल हो गए थे। इसके बाद 4 अगस्त को गृह मंत्रालय ने मणिपुर से असम राइफल्स की दो बटालियनों को कम करके जम्मू-कश्मीर भेजने और उनकी जगह सीआरपीएफ की बटालियनों को तैनात करने का निर्देश दिया। लेकिन इन सब के बावजूद हालात जस के तस बने हुए हैं। इतनी कड़ी सुरक्षा के बावजूद 1 सितंबर को भड़की हिंसा में 12 लोगों की जान चली गई है। 20 से ज्यादा लोग घायल हैं।

वर्तमान सुरक्षा बल की स्थिति

हिंसा और विरोध प्रदर्शनों के बीच गृह मंत्रालय ने मणिपुर में सीआरपीएफ की दो बटालियन तैनात करने का फैसला किया है। इसके तहत मणिपुर में सीआरपीएफ के करीब 2,000 जवान तैनात किए जाएंगे। इन जवानों को आदिवासी बहुल चुराचांदपुर और कांगपोकपी जिलों में तैनात किया जाएगा। इसके साथ ही 3 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और 5 जिलों में पांच दिनों के लिए इंटरनेट पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग ने राज्य में व्याप्त अशांति को देखते हुए सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और निजी कॉलेजों को 12 सितंबर तक बंद कर दिया है।

मणिपुर की सच्चाई मीडिया और जनता से कोसों दूर

मणिपुर हिंसा मुख्य रूप से कुकी और मैतेई समूहों के बीच जातीय संघर्षों से प्रभावित है। जब कुकी आदिवासी समुदाय ने मई 2023 में मैतेई लोगों के अनुसूचित जनजाति की मान्यता के प्रस्ताव का विरोध किया, तो हिंसा भड़क उठी। दोनों समुदायों के बीच कई घातक लड़ाइयों में हज़ारों लोग बेघर हो गए और सैकड़ों लोग मारे गए। सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी के बावजूद भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है।

लेकिन केंद्र सरकार लगातार कह रही है कि अब हालात सुधर रहे हैं। हाल ही में असम ट्रिब्यून को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”राज्य में हालात काफी सुधरे हैं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे गृह मंत्री अमित शाह संघर्ष के दौरान राज्य में रहे और इसे सुलझाने के लिए कई पक्षों के साथ 15 से अधिक बैठकें कीं।

जनता से छुपाई जा रही हकीकत

मणिपुर की जमीनी हकीकत आप इस बात से जान सकते हैं कि मणिपुर की जमीनी हकीकत को जनता और दुनिया को दिखाने की कोशिश करने वाले मीडिया हाउस के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है। मणिपुर के बारे में हाल ही में एडिटर्स गिल्ड ने दावा किया था कि मणिपुर में जातीय हिंसा पर मीडिया की रिपोर्ट एकतरफा थी। उन्होंने राज्य नेतृत्व पर पक्षपात करने का भी आरोप लगाया। इन आरोपों के परिणामस्वरूप, सीएम बीरेन ने कहा, “राज्य सरकार ने एडिटर्स गिल्ड के उन सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है जो मणिपुर राज्य में और अधिक झड़पें पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।”

दंगाइयों को हथियार कहां से मिल रहे?

मणिपुर की असली जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है। दरअसल मणिपुर सीमावर्ती राज्य है, इसलिए मुश्किलें कुछ हद तक गंभीर हैं। दंगाइयों को पड़ोसी देशों से हथियार और गोला-बारूद मिलता है। स्थिति इतनी गंभीर है कि सुरक्षाकर्मियों ने ड्रोन रोधी सिस्टम तैनात कर दिए हैं। मेइती और कुकी दोनों समुदायों के पास घातक हथियारों का भंडार है और वे एक-दूसरे के खिलाफ हवाई हमले कर रहे हैं। वे न केवल पड़ोसी देशों से हथियार प्राप्त करते हैं, बल्कि बंदूकें भी चुराते हैं। ऐसे निराशाजनक माहौल में मणिपुर के निवासियों ने सुरक्षा बलों के अस्तित्व पर अविश्वास करना शुरू कर दिया है। उनका दावा है कि सुरक्षा बल हिंसा के बीच मूक दर्शक बने हुए हैं। वे जानना चाहते हैं कि ऐसी तैनाती का क्या मतलब है।

मणिपुर पर विपक्ष का दौरा

मणिपुर में हिंसा के बाद कई विपक्षी नेताओं ने वहां का दौरा किया है। पिछले साल जुलाई में विपक्षी गठबंधन इंडियन नैशनल डिवेलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A.) के 21 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल जमीनी हकीकत पता लगाने को हिंसा प्रभावित मणिपुर के दो दिवसीय दौरे किया था। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के नेतृत्व में विपक्षी प्रतिनिधिमंडल ने बिष्णुपुर जिले के राहत शिविरों का दौरा किया। इस दौरे में तृणमूल कांग्रेस और अन्य दलों के नेता भी शामिल थे।

इसके अलावा, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी मणिपुर में राहत शिविरों का दौरा किया। यह उनका मणिपुर का तीसरा दौरा था, जिसमें उन्होंने जिरीबाम और सिलचर में हिंसा से प्रभावित लोगों से मुलाकात की

मणिपुर पर विपक्ष का बयान

मणिपुर हिंसा पर विपक्ष का बयान काफी तीखा रहा है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी और अन्य विपक्षी नेताओं ने केंद्र सरकार की निष्क्रियता की आलोचना की और मणिपुर के मुख्यमंत्री पर सभी समुदायों से मिलकर शांति स्थापित करने में विफल रहने का आरोप लगाया। विपक्ष ने मणिपुर में शांति बहाल करने और न्याय प्रदान करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार हिंसा को रोकने में विफल रही है, साथ ही उन्होंने सवाल भी उठाया कि सीबीआई जांच इतनी देरी से क्यों शुरू की गई।

इसके अलावा कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री कुछ नहीं कह रहे हैं और देश को गुमराह कर रहे हैं।

राहुल गांधी का बयान

मणिपुर हिंसा को लेकर राहुल गांधी ने शुरू से केंद्र सरकार की आलोचना की है। मणिपुर को लेकर अपने पिछले बयानों में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री हर जगह जा रहे हैं, लेकिन मणिपुर का दौरा करने से बच रहे हैं, जो मणिपुर के लोगों के साथ अन्याय है। राहुल गांधी ने यह भी कहा कि मणिपुर में हिंसा से लोग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं और सरकार उनकी मदद करने में विफल रही है। उन्होंने संसद में भी इस मुद्दे को उठाया और केंद्र सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए।

हाल ही में राहुल गांधी ने मणिपुर के जिरीबाम इलाके का दौरा किया, जहां उन्होंने राहत शिविरों का दौरा किया और हिंसा से प्रभावित लोगों से मुलाकात की। उन्होंने मणिपुर में जातीय हिंसा को “राष्ट्रीय शर्म” बताया और सरकार से तुरंत शांति बहाल करने की अपील की। ​​इसके अलावा उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की भी आलोचना की और कहा कि उनके नेतृत्व में सरकार कोई ठोस कदम उठाने में विफल हो रही है।

मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान

मणिपुर हिंसा को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने प्रधानमंत्री पर मणिपुर के हालात की अनदेखी करने और हिंसा प्रभावित राज्य का दौरा न करने का आरोप लगाया, जबकि वे दूसरे राज्यों और अंतरराष्ट्रीय दौरों पर जा रहे हैं। खड़गे ने यह भी मांग की कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को बर्खास्त किया जाए और राज्य में शांति बहाल करने की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार को लेनी चाहिए। उन्होंने मणिपुर में जारी हिंसा के प्रति केंद्र सरकार की उदासीनता को अक्षम्य बताया है।

अशोक गहलोत का बयान

मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा को लेकर अशोक गहलोत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बयान जारी कर कहा, ‘ऐसा लगता है कि मणिपुर में हो रही हिंसा के बावजूद वहां का दौरा करने को प्रधानमंत्री ने अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है। वहां राज्यपाल आवास एवं मुख्यमंत्री के घर जैसे सुरक्षित स्थानों तक पर लगातार हमले हो रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार का इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं है। मणिपुर में अत्याधुनिक हथियारों एवं ड्रोन्स का इस्तेमाल कर आम लोगों पर हमले किए जा रहे हैं।’

मणिपुर पर सुप्रीम कोर्ट का रुख

मणिपुर हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद गंभीर रुख अपनाया है। राज्य के हालात पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने हिंसा की जांच और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए सख्त कदम उठाने पर जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा की जांच के लिए विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच आयोग बनाने की दिशा में कदम उठाए, जिसमें सीबीआई और अन्य एजेंसियां ​​शामिल हों।

कोर्ट ने यह भी साफ किया कि जांच निष्पक्ष होनी चाहिए और इस प्रक्रिया में किसी तरह का राजनीतिक या अन्य बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इसके अलावा कोर्ट ने जांच प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया और पीड़ितों के पुनर्वास और राहत कार्यों में देरी के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सभी पक्षों की बात सुनी जानी चाहिए और मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष को शांत करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

शांति प्रक्रिया और संवाद

हालांकि, ऐसा नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने इस हिंसा को रोकने की कोशिश नहीं की। 2024 में केंद्र और राज्य सरकारों ने दोनों समुदायों के बीच समझौता करने के लिए शांति वार्ता शुरू की। हालांकि, शांति प्रक्रिया में भूमि अधिकार, आरक्षण और स्थानीय सरकार की नीतियों पर मतभेद सहित महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ा।

मणिपुर की वर्तमान स्थिति

मणिपुर में मौजूदा स्थिति काफी तनावपूर्ण है, जहां जातीय हिंसा और संघर्ष जारी है। हाल के दिनों में राज्य में रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनेड (RPG) जैसे उन्नत हथियारों का इस्तेमाल देखा गया है, जो हिंसा को और भी गंभीर बना रहे हैं। सितंबर 2024 की शुरुआत में मोइरांग और बिष्णुपुर जिलों में हुए हमलों में कई लोग मारे गए और विस्फोटों से व्यापक दहशत फैल गई। इन घटनाओं के बाद से राज्य में सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई है।

इसके अलावा, हिंसा भड़काने वाली अफवाहों और फर्जी खबरों को फैलने से रोकने के लिए 15 सितंबर तक इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया है।

अभी कौन से इलाके प्रभावित?

मणिपुर में सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र बिष्णुपुर, कांगपोकपी और इंफाल पश्चिम जिले हैं। इन इलाकों में जातीय संघर्ष और हिंसक झड़पों की घटनाएं हो रही हैं। बिष्णुपुर के मोइरांग इलाके में हाल ही में हुए आरपीजी हमलों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है, जिससे स्थानीय लोगों में डर का माहौल है। कांगपोकपी में सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भी हो रही हैं, जबकि इंफाल पश्चिम में विरोध प्रदर्शन और छात्रों द्वारा सरकारी अधिकारियों के घरों का घेराव करने की घटनाएं सामने आई हैं। इंटरनेट बंद होने और सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के बावजूद इन इलाकों में हिंसा की घटनाएं जारी हैं, जिससे स्थिति अस्थिर बनी हुई है।

और पढ़ें: मणिपुर हिंसा पर पीएम मोदी की चुप्पी को लेकर उठे सवाल, जानिए किसने क्या कहा

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