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अर्थशास्त्री के रुप में डॉ अंबेडकर के योगदानों को भूला क्यों दिया गया?

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बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को आप क्या मानते हैं….कानूनविद, भाषाविद या अर्थशास्त्री. वह ऑलराउंडर थे…हर क्षेत्र में उनकी पकड़ कमाल की थी. ज्ञान के अथाह सागर थे हमारे बाबा साहेब…दलितों के उत्थान की राह पर वह इतने आगे निकल गए कि उनसे जुड़े कई तथ्य…उनकी काबिलियत और उनसे जुड़ी तमाम चीजों पर एक पर्दा सा लग गया…या यूं कहें उनसे जुड़ी तमाम चीजें आंखों से ओझल हो गईं. इस लेख में हम आपको बाबा साहेब के उस रुप के बारे में बताएंगे, जिस पर ज्यादा चर्चा नहीं होती..

और पढ़ें : डॉ भीमराव अंबेडकर क्यों मानते थे कि भारत में ‘लोकतंत्र छलावा’ है ? 

अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा था कि डॉ अंबेडकर अर्थशास्त्र में मेरे जनक हैं. वे दलितों के सच्चे और जाने-माने महानायक थे. उन्हें जो भी मान-सम्मान मिला उससे कहीं ज्यादा के वो अधिकारी थे. अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उनका योगदान बेहद शानदार है उसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा.

जी हां, कानूनविद और तमाम विषयों के ज्ञाता होने के अलावा, बाबा साहेब एक बहुत बड़े अर्थशास्त्री भी थे. अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उनका योगदान सराहनीय है. उन्होंने भारतीय कृषि व्यवस्था में छोटी और बिखरे हुए जोतों की समस्या, वित्तीय प्रणाली, मुद्राविनिमय प्रणाली और रुपये की समस्या का गहन अध्ययन किया.
उन्होंने अपने अकादमिक कार्यों के माध्यम से इन तमाम समस्याओं के समाधान के लिए क्रांतिकारी विचार पेश किए. आपको बता दें कि डॉ अंबेडकर के शोध द प्रोब्लम ऑफ द रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन ने भारत के केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
एडमिनिस्ट्रेशन एंड फाइनेंस ऑफ द ईस्ट इंडिया कंपनी, इवल्यूशन ऑफ प्रोविंशियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया, स्मॉल होल्डिंग्स इन इंडिया एंड देयर रेमिडिज आदि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में बाबा साहेब के सराहनीय और महत्वपूर्ण कार्य हैं. वहीं, सार्वजनिक वित्त के संबंध में बाबा साहेब ने एक आदर्श स्थापित किया, जिसे बाबा साहेब के सार्वजनिक व्यय के सिद्धांत के रूप में जाना जाता है.

भारतीय कृषि में छोटी और बिखरी हुई जोतों की समस्या पर विचार करते हुए बाबा साहेब ने ‘ स्मॉल होल्डिंग्स इन इंडिया एंड देयर रेमिडिज’ नामक शोध लिखा. इसमें उन्होंने भारतीय कृषि से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए ज़मीनी और व्यावहारिक समाधान सामने रखे. उन्होंने उत्पादन के अन्य कारकों पर ध्यान दिलाते हुए भूमि, श्रम, पूंजी और बचत के बीच के असंतुलन की बात की. वह शुरुआती अर्थशास्त्रियों में से एक थे जिन्होंने ‘छिपी बेरोज़गारी’ की तरफ सभी का ध्यान आकर्षित किया था.
आपको बता दें कि बाबा साहेब द्वारा सुझाई गई आर्थिक नीतियों और सुधारों में समाजवाद और औद्योगीकरण का मिश्रण है. वह राज्य की समाजवादी प्रकृति के सहारे औद्योगीकरण की प्राप्ति के समर्थक थे. एक अर्थशास्त्री के रुप में बाबा साहेब को किसी भी विचारधारा से बांधकर नहीं देखा जा सकता है. वो परिस्थितियों के अनुसार नीति निर्माण में विश्वास करते थे. कृषि, वित्त और मौद्रिक नीति पर बाबा साहेब के विचार क्रांतिकारी हैं.

और पढ़ें : डॉ भीमराव अंबेडकर अंग्रेजों को भारत से क्यों जाने नहीं देना चाहते थे ? यहां समझिए 

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