“जिनके पेट भरे होते है वह चुनाव के बारे में सोचते है” हमारे देश के व्यक्तियों को भौतिक साधन जैसे रोटी, कपड़ा, मकान की ज्यादा जरूरत है, उन्हें चुनाव से फर्क नहीं पड़ता. पेट भरा हो तो सब अच्छा लगता है.
इससे अलग हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, जिसमे एक समूह बड़े समूह के हित की परवाह किए बिना आपने हित के बारे में सोच रहे है. बाबा साहेब ने हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था का हमेशा विरोध दिया था. बाबा साहेब का जन्म एक महार जाति में हुआ था, जिसके चलते उन्हें भी हिन्दू धर्म में जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था. बाबा साहेब ने अपना पूरा जीवन जातिगत व्यवस्था का विरोध करने में लगा दिया था. जिसके कारण उन्होंने काफी कुछ झेलना पड़ा. बाबा साहेब ने एक लोकतांत्रिक देश के लिए संविधान तो लिखा था लेकिन उन्होंने महसूस किया था कि नैतिक लोकतंत्र ऐसे जाति व्यवस्था वाले देश में नहीं चलेगा. उन्होंने कहा था कि हमारे देश की ऐसी सामाजिक संरचना के कारण भारत में लोकतंत्र नहीं चलेगा. हमारे देश में जिस लोकतंत्र की बात करते है वह एक छलावा मात्र है.
दोस्तों, आईये आज हम आपको बताएंगे कि बाबा साहिब कि क्यों ऐसा लगता है कि हमारे देश कि सामाजिक संरचना के कारण भारत में लोकतंत्र नहीं चलेगा ? बाबा साहेब को क्यों लगता है कि हिन्दू धर्म में जातिव्यवस्था के रहते चुनाव नहीं चलेंगे ?
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सामाजिक संरचना के कारण भारत में लोकतंत्र नहीं चलेगा
बाबा साहेब देश में जाति व्यवस्था को लेकर हमेशा से चिंतित थे, उन्हें पता था कि हिन्दू धर्म में जाति व्यवस्था हमारे देश के लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. क्यों कि जाति व्यवस्था के चलते देश का एक समूह दूसरे बड़े समूह की परवाह किए बिना अपने हितों के बारे में सोचता है, उसके लिए ही काम करता है. बाबा साहेब ने अपने जीवन में महसूस किया था कि हमारे देश में नैतिक लोकतंत्र जाति व्यवस्था के रहते नहीं चलेगा.
हमारे देश में पारम्परिक जाति सरचना कुछ पदानुक्रम नियमों पर आधारित है जिसके चलते हमारे देश का एक समूह दूसरे बड़े समूह के हितों, अधिकारों के बारे में नहीं सोचता है. उन्हें बीएस अपने हित से मतलब होता है. एक इंटरव्यू के दौरान जब बाबा साहेब से पुछा गया कि ‘क्या हमारे देश में चुनाव चल सकता है ?’ तो बाबा साहेब ने कहा था कि ‘नहीं’.
बाबा साहेब के यह भी कहा था कि हमारे देश के व्यक्तियों को भौतिक साधन जैसे रोटी, कपड़ा, मकान की ज्यादा जरूरत है, उन्हें ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि कौन चुनाव में जीत रहा है या हर रहा है. हमारे देश के लोगो को उनकी भूख की चिंता है. और जिस देश के लोगो को पेट भरा नहीं होता वहां क्या चुनाव ? क्या लोकतंत्र ? एक लोकतंत्र देश के लिए सबसे जरूरी समानता और चुनाव होता है, जो हमारे देश के लोगो के पास नहीं है.
साल 1953 में, बाबा साहेब ने बीबीसी को एक इंटरव्यू में कहा कि जातिगत असमानता लोकतंत्र में बाधा बनेगी, और कहा कि संसदीय लोकतंत्र के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक संरचना को ठीक करना होगा.
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