6 August 2023 : आज की मुरली के ये हैं मुख्य विचार

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6 August ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट एक जरिये हम आपको 6 अगस्त 2023 (6 august ki Murli) को दिये ये सन्देश की जानकारी देने जा रहे हैं.

परमात्म मिलन मेले की सौगात – ताज, तख्त और तिलक

आज बेहद का बाप बेहद में सभी बच्चों को देख रहे हैं। बेहद का बाप है और आप सभी भी बेहद के मालिक सो बालक हो। बापदादा सभी स्नेही सहयोगी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं और बच्चे बाप को देखकर हर्षित हो रहे हैं। बाप को ज्यादा खुशी है वा बच्चों को ज्यादा खुशी है – क्या कहेंगे? दोनों को! इसको कहा जाता है परमात्म मिलन मेला। मेले तो बहुत होते ही हैं लेकिन परमात्म मिलन मेला एक ही संगमयुग पर होता है। सारे कल्प में नहीं हो सकता है। अब हो रहा है और होगा। आप सबको भी मेला अच्छा लग रहा है ना! बापदादा तो बच्चों के भाग्य को देख हर्षित होते हैं और दिल में गीत गाते हैं – वाह बच्चे वाह! जो भाग्य स्वप्न में भी न था, संकल्प में भी नहीं था लेकिन अब साकार में श्रेष्ठ भाग्य अनुभव कर रहे हैं। हर एक के मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर चमक रही है। सभी चमकते हुए सितारे हो ना? अपना ये श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है ना! क्यों श्रेष्ठ भाग्य है? क्योंकि भाग्य विधाता द्वारा आप भाग्यवान आत्माओं का दिव्य ब्राह्मण जन्म हुआ है। बाप को भी भाग्य विधाता कहते हैं और ब्रह्मा को भी भाग्य विधाता कहते हैं। और आप सबका जन्म बापदादा द्वारा हुआ है। तो जिसका बाप स्वयं भाग्य विधाता है उसका भाग्य कितना श्रेष्ठ होगा! परमात्म मिलन मना रहे हो ना! (डबल फॉरेनर्स से) ये भी मना रहे हैं! बेहद के मेले में अगर डबल विदेशी नहीं होते तो बेहद का नहीं कहा जाता। तो आप लोगों का भी विशेष पार्ट है, जो बाप और सर्व बच्चे देख-देख हर्षित होते हैं। भाग्य विधाता द्वारा जन्म होना – ये सबसे नम्बरवन भाग्य है। साथ-साथ सारे कल्प में किसी भी जन्म में एक ही परमात्मा बाप भी बने, शिक्षक भी बने, सतगुरू भी बने और सर्व सम्बन्ध भी निभाये – ऐसा सतयुग से कलियुग तक किसको भाग्य मिला है? और अभी आपको मिला है! अभी आप निश्चय और नशे से कहते हो कि हमारा पालनहार परम आत्मा है। दुनिया वाले कहने मात्र कहते हैं कि परमात्मा ही पाल रहा है लेकिन आप प्रैक्टिकल अनुभव से कहते हो कि परमात्मा बाप है और बाप ही पालनहार है, पालना कर रहे हैं! नशा है ना या थोड़ा-थोड़ा भूल जाते हो? चलते-चलते अपने श्रेष्ठ भाग्य को साधारण समझ लेते हो, है श्रेष्ठ लेकिन समझ साधारण लेते हो। इसलिए जो नशा और खुशी की झलक सदा होनी चाहिये, वह नहीं रहती। वैसे एक सेकेण्ड भी भूल नहीं सकते लेकिन कॉमन समझ लेते हो कि बाप मिल गया, हमारा हो गया, हम भी बाप के हो गये… जब हमारा है तो नशा (फ़खुर) होना चाहिये ना? लेकिन कभी ऊंचा तो कभी मध्यम, कभी साधारण हो जाता है। सोचो, हमारा बाप परम आत्मा है! और फिर शिक्षक डायरेक्ट परम आत्मा है! क्या शिक्षा दी? आपको क्या बना दिया? त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ। ऐसी कोई पढ़ाई पढ़ता है! अभी तक ये डिग्री सुनी है? जज बैरिस्टर, डॉक्टर, इंजीनियर ये तो सब डिग्रीज़ देखी हैं लेकिन त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, नॉलेजफुल… ऐसी डिग्री देखी है? द्वापर से कलियुग तक किसको मिली है? आपको मिली थी? आपने भी तो 63 जन्म लिये हैं। तो न किसको मिली है, न मिलनी है। ऐसा शिक्षक हमारा है। साइंस वाले साइंस की कितनी भी योजना करें तो भी त्रिलोक तक नहीं पहुँच सकते। तीनों लोकों का नॉलेज प्राप्त हो नहीं सकता। और आपमें तो 5 वर्ष का बच्चा भी तीन लोकों की नॉलेज देता है! वो भी फ़लक से कहेगा – हाँ, सूक्ष्म वतन है, मूल वतन है। तो परम आत्मा शिक्षक भी है। श्रेष्ठ शिक्षा से ये डिग्री तो प्राप्त कराई लेकिन दुनिया में सबसे बड़े ते बड़ा पद राज्य पद होता है। तो पढ़ाई से पद भी मिलता है ना! तो आपको राजा बनाया है? अभी राजा हो या बनना है? हो राजा और बैठे पट में हो! पक्का मकान भी नहीं, टेन्ट में बैठे हो! तो देखो श्रेष्ठ में श्रेष्ठ पद राज-पद है। अभी भी स्वराज्य अधिकारी हो और भविष्य में भी विश्व राज्य अधिकारी बनना ही है। ये पक्का है ना? किसको राज्य करना है? आप राज्य करेंगे कि आपके ऊपर कोई राजा राज्य करेगा? नहीं। ये सब इतने राजा बन जायेंगे! इतने सब राज्य करेंगे! प्रजा भी तैयार की है या अपने ऊपर ही राज्य करेंगे? तो अपना भाग्य देखो – परम आत्मा मेरा शिक्षक है, राज्य पद देने वाला। और फिर सतगुरू बन… गुरू क्या करते हैं? मंत्र देते हैं ना। तो सतगुरू ने क्या मंत्र दिया? मनमनाभव। सतगुरू द्वारा महामंत्र भी मिला और सर्व वरदान भी मिले। कितने वरदान मिले हैं? वरदानों की लिस्ट देखो कितनी लम्बी है! रोज़ वरदान मिलता है ना! कितने समय से मिल रहे हैं! इतने वरदान कोई भी फॉलोअर को कोई गुरू दे ही नहीं सकते। ऐसा सतगुरू जो रोज़ वरदान दे, ऐसा देखा? अभी नशा है ना! (हाँ जी) बहुत अच्छा। सदा रखना। ऐसे नहीं, यहाँ से बस में जाओ तो नशा उतरना शुरू हो जाये। सदा बढ़ता रहे।

बापदादा सभी बच्चों को सदा ही हर सब्जेक्ट में नम्बरवन देखना चाहते हैं। तो नम्बरवन हो कि अभी बनना है? नशे से कहो कि हम नहीं होंगे तो कौन होगा! विदेशियों को डबल नशा है ना! अच्छा है। बाप भी खुश होते हैं कि एक-एक मेरा बच्चा राजा बच्चा है। प्रजा नहीं है। प्रजा तो पीछे आने वाली है। आप तो फिर भी लक्की हो जो इतना भी मिलने का चांस मिला है। टेन्ट में रहना पड़ा तो क्या हुआ। मिट्टी पर तो नहीं सो रहे हो ना, गदेले पर सो रहे हो। ब्रह्मा भोजन तो अच्छा मिलता है ना? मिट्टी वाला तो नहीं मिलता? प्यार से खाते हो ना? थोड़ा बहुत तो होता ही है, होना ही है। क्यों? माया और प्रभु का खेल साथ-साथ चल रहा है। अगर परमात्मा द्वारा मेला हुआ तो माया भी झमेला जरूर करती है। आपका काम है मेला करना, उसका काम है झमेला करना। तो झमेला भी हुआ और मेला भी हुआ। (किसी ने कहा आंधी चली) कोई बात नहीं। आपके पुरुषार्थ की आंधी है और ये हवा की आंधी है। घबराते तो नहीं हो ना कि क्या हो गया? नहीं, आंधी आये या बरसात आये, कितनी भी हलचल हो लेकिन आपका मन अचल है ना? मातायें घबरा तो नहीं गई, टेन्ट उड़ गया, क्या करें? थोड़ा-थोड़ा घबराये, क्या होगा, तबियत अच्छी रहेगी, नहीं रहेगी? कुछ भी हो भक्ति से तो धक्के और मेहनत कम ही है ना। भक्ति के धक्के तो नहीं खाते हो ना, मजे में रहते हो ना! तो ये मेला अच्छा लगा या झमेला देखकर घबरा गये? नहीं, कोई नहीं घबराये? एक-दो तो घबराये होंगे? मजा आ रहा है? और भी दो दिन रखें? अच्छा। बापदादा भी माया का झमेला देख चक्कर लगाते रहते हैं। खेल देखते हैं – बच्चे क्या करते हैं और माया क्या करती है?

बापदादा को बच्चों का स्नेह देख खुशी है। स्नेह ने मेला रचाया है। बाप का भी स्नेह है तो बच्चों का भी स्नेह है, दोनों मिल गये तो क्या हो गया? मेला। दृश्य भी कितना अच्छा लग रहा है। ऐसा कभी सोचा था – इतना बड़ा परिवार मिलेगा और इतना परिवार किसको होगा? आपके घर कितने हैं? (एक है) और आपके सेवा के स्थान कितने हैं? (अनेक हैं) तो उसको भी तो बाबा का घर कहते हो ना! तो बाबा का घर आपका घर है। दुनिया कहती है घरबार छोड़ते हैं और आपने कितने घर बनाये हैं! गिनती नहीं कर सकते हो, याद रखना पड़ता है। तो ये छोड़ना नहीं है, बनाना है। और परिवार को छोड़ा है या परिवार इतना बड़ा बनाया है जो मिलना ही मुश्किल होता है। सारे ब्राह्मण जितने भी जहाँ भी हैं, एक स्थान पर मिल सकते हैं? मुश्किल होगा ना। क्योकि दूसरे का राज्य है ना, अपना राज्य तो नहीं है। लेकिन बाप मिला, बेहद का परिवार मिला। तो बेहद को याद करने से बेहद की खुशी, बेहद का नशा होगा। अगर हद में समझते हैं – मैं तो फलाने देश में हूँ, फलाने देश का हूँ, फलाने ज़ोन का हूँ तो हद होती है लेकिन ये तो निमित्त मात्र निशानी के लिये कहते हैं – ये फलाना ज़ोन, ये फलाना स्थान। बाकी अपने को बेहद का समझते हो ना। नियम भी रखने पड़ते हैं। कई ऐसे भी सोचते हैं कि ये क्या बैज लगाओ तभी खाना मिलेगा। आपको खाने पर तंग करते हैं ना? लेकिन ये करना ही पड़ता है क्योंकि कायदे में फायदे हैं। ये बंधन नहीं है लेकिन विघ्नों से निर्बन्धन बनाने का साधन है। ये क्या नई बात निकाली – ये नहीं सोचना। संकल्प तो बाप के पास पहुँचते हैं ना। लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम आप ही हो ना। या सिर्फ बड़ी दादियां मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, आप फ्री हो? मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात् मर्यादा के अन्दर रहने वाले, चलने वाले। हाँ जी का पाठ पक्का है ना? अच्छा! और जब कोई बात हो जाती है तो हाँ जी होता है या ना जी भी होता है? जब कोई ऐसी बात करते हैं तो हाँ जी के बदले फिर ना जी में इतने पक्के हो जाते हैं जो बाप भी कहे तो भी नहीं सुनेंगे। जैसे स्थापना में जब छोटे-छोटे बच्चे आये तो बापदादा उन्हों को पाठ पक्का कराने के लिये हमेशा कहते रहे कि ना करना माना नास्तिक, हाँ करना माना आस्तिक। तो आप सब कौन हो? आस्तिक हो। नास्तिक तो नहीं हो ना! कभी-कभी बन जाते हो। खेल करते हैं! माया के भी नॉलेजफुल हो गये! क्योंकि माया भी नॉलेजफुल है। गिराने में माया नॉलेजफुल है और उड़ने में आप नॉलेजफुल हो। तो माया भी देखती है कि इसकी उड़ान थोड़ी नीचे-ऊपर हो गई है तो देख करके वार करती है। और आप नॉलेजफुल होने के कारण जान जाते हो, तो हार नहीं खाते हो लेकिन विजय का हार गले में पड़ा। सबके गले में विजय की माला है या कभी-कभी उतार देते हो? अच्छा।

पीछे वाले मौज़ में हो? यह भी मधुबन की ही एरिया हुई ना, तो सिवाए मधुबन के और कहाँ इतना बड़ा मेला हो सकता है? नहीं हो सकता ना। तो मधुबन है बेहद का घर। यहाँ सब बेहद है और और जगह फिर भी सब देखना पड़ता है और यहाँ संकल्प किया और हो गया। तो सभी अपने भाग्य द्वारा परमात्म मेले में पहुँच गये। जो पहले बारी इस कल्प में आये हैं वो हाथ उठाओ। (करीब 13-14 हजार भाई बहिनों की सभा है, उसमें बहुत से नये भाई-बहिनें हैं) अच्छा है, टी.वी. में देख रहे हो। ये भी देखो मैजारिटी साइन्स के साधन अभी-अभी निकले हैं। कुछ वर्ष पहले ये साइन्स के साधन भी नहीं थे। लेकिन किसके लिये निकले हैं? आपके लिये। बापदादा भी साइन्स वाले बच्चों को मुबारक देते हैं क्योंकि बाप के बच्चे उससे सुख तो ले रहे हैं ना। तो कितना अच्छा लग रहा है। लेकिन बापदादा अब क्या चाहते हैं? स्थापना हुए कितने वर्ष हो गये? डायमण्ड जुबली मनाने की तैयारी कर रहे हो। तो बापदादा ने अभी सभी बच्चों को राजा बच्चे कहा ना, सब राजा हैं। राजा तख्त नशीन होता है ना? राज्य की निशानी ताज, तख्त और तिलक होता है। तो बापदादा इस वर्ष में चाहे नये हो, चाहे पुराने – अगर नये भी हो तो समाप्ति का समय तो नयों के लिये भी समीप है तो पुरानों के लिये भी समीप है। ऐसे नहीं समझना कि हमारे को भी 60 वर्ष शायद मिलने हैं। नहीं, आपको मेकप करना है। अगर लास्ट आये हो तो फास्ट जाना है। लेकिन सम्पन्न होने का, समाप्ति का समय सबका एक ही है इसलिये चाहे नये हो या पुराने हो लेकिन मैं स्वराज्य अधिकारी आत्मा हूँ – सदा स्मृति का तिलक लगा हुआ ही है। कभी मिट जाये, कभी लगा हुआ हो…। नहीं, राज्य अधिकारी अर्थात् तिलकधारी – इस स्मृति का तिलक अविनाशी रहे, साधारण नहीं। मैं तिलकधारी हूँ, मैं विश्व कल्याण के जिम्मेवारी का ताजधारी हूँ। कितना बड़ा विश्व है और आप सभी विश्व कल्याणकारी हो। अकेला बाप नहीं है। बाप के साथी आप सभी हो। तो विश्व कल्याण की जिम्मेवारी के ताजधारी और सदा बाप के दिलतख्तनशीन। नीचे नहीं आना। सदा तख्तनशीन। वैसे भी देखो जो बहुत प्यारे होते हैं, लाडले बच्चे होते हैं तो माँ-बाप उनको मिट्टी में जाने नहीं देते, धरनी पर पांव रखने नहीं देते। तो आप कितने लाडले हो! लाडले हो या और आने वाले हैं? आप हो। तो तख्त को छोड़ करके साधारण स्वरूप, साधारण संकल्प… इस मिट्टी में या धरनी में पांव नहीं रखो। बुद्धि रूपी पांव सदा तख्तनशीन हो। परमात्म बाप के बच्चे हो। महात्मा, धर्मात्मा के नहीं हो, परम आत्मा के हो। अभी तो सब नशे में ठीक हो, वो तो दिखाई दे रहा है लेकिन सदा रहेगा ना? कि थोड़ा-थोड़ा रहेगा फिर युद्ध करेंगे, फिर विजय प्राप्त करेंगे – ऐसे तो नहीं? ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो? ब्राह्मण हो। क्षत्रिय नहीं हो, युद्ध नहीं करते हो? कि कभी ब्राह्मण बन जाते हो, कभी क्षत्रिय बन जाते हो? अगर माया से युद्ध करनी पड़ती है तो क्षत्रिय हुए। ब्राह्मण माना विजयी और क्षत्रिय माना युद्ध करने वाले। बापदादा को तो कभी-कभी बच्चों पर बहुत रहम आता है, बैठते योग में हैं और करते युद्ध हैं! कहेंगे एक घण्टे योग लगाया लेकिन एक घण्टे में युद्ध कितना समय चली और योग कितना समय रहा? अगर किसी भी कारण से अनुभूति नहीं होती है तो अवश्य ही युद्ध की स्टेज है। बापदादा कहते हैं – योगी बच्चे हैं और बन जाते हैं योद्धे बच्चे! कब तक युद्ध करेंगे? अन्त तक युद्ध करेंगे! छुट्टी दे दें – भले युद्ध करो। छुट्टी चाहिए? नहीं चाहिये? फिर करते क्यों हो? कमजोर हो जाते हो तो माया इतना अधीन बना देती है जो चाहते नहीं हो लेकिन कर लेते हो। जैसे कोई-कोई सर्वेन्ट बहुत भोले होते हैं तो मालिक उसे अधीन बना लेते हैं, सर्वेन्ट जो नहीं कर सकता उसके लिए भी मालिक कहता है करो, नहीं तो नौकरी क्यों करते हो। माया भी ऐसे करती है, आप चाहते नहीं हो लेकिन कमजोर होने के कारण माया के अधीन बनना पड़ता है। तो उस समय योगी हो या योद्धे हो? योगी तो नहीं कहेंगे ना? तो बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक बच्चा योगी बच्चा हो, युद्ध वाला नहीं। बापदादा को बच्चों के युद्ध की मेहनत अच्छी नहीं लगती। परमात्म बच्चे तो सदा मौज में रहने वाले हैं, मजे में रहने वाले हैं, युद्ध की मेहनत वाले नहीं। तो क्या बनेंगे? योगी बच्चे या योद्धे बच्चे? योगी बनेंगे या थोड़ा-थोड़ा युद्ध करना अच्छा है? कहने में तो हाँ-हाँ करते हो और जब करते हो तो उस समय फोटो निकलता है। तो इस वर्ष सभी का चार्ट हो – सदा राज्य अधिकारी। अधीनता समाप्त। अच्छा।

सर्व तरफ के देश-विदेश के सर्व सूक्ष्म स्वरूप से दृश्य देखने वाली आत्मायें, चारों ओर के सदा श्रेष्ठ पालना में पलने वाली, श्रेष्ठ पढ़ाई से राज्य पद पाने वाली आत्मायें, सद्गुरू द्वारा सर्व वरदान प्राप्त करने वाली आत्मायें, सदा मायाजीत विजयी रत्न, सदा युद्ध को छोड़ राजयोगी स्थिति में स्थित रहने वाली सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

वरदान:-एकान्त और एकाग्रता के अटेन्शन द्वारा तीव्रगति से सूक्ष्म सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
दूर बैठे बेहद विश्व के आत्माओं की सेवा करने के लिए मन और बुद्धि सदा फ्री चाहिए। छोटी-छोटी साधारण बातों में मन और बुद्धि को बिजी नहीं करो। तीव्रगति की सूक्ष्म सेवा के लिए एकान्त और एकाग्रता पर विशेष अटेन्शन दो। बिजी होते भी बीच-बीच में एक घड़ी, दो घड़ी निकाल एकान्त का अनुभव करो। बाहर की परिस्थिति भल हलचल की हो लेकिन मन-बुद्धि को जिस समय चाहो एक के अन्त में सेकण्ड में एकाग्र कर लो तब सच्चे सेवाधारी बन बेहद सेवा के निमित्त बन सकेंगे।स्लोगन:-ज्ञानी तू आत्मा वह है जो ज्ञान के हर राज़ को समझकर राजयुक्त, युक्तियुक्त और योगयुक्त हो कर्म करे।

और पढ़ें: प्रेमानंद जी के प्रवचन : नौकरी,व्यापार करने वाले इस तरह करें अपना काम. 

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