Chhattisgarh High Court decision: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला- पत्नी की सहमति के बिना यौन संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं

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Chhattisgarh High Court decision: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पति द्वारा अपनी वयस्क पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति एन.के. चंद्रवंशी की एकल पीठ ने यह निर्णय देते हुए जगदलपुर निवासी एक व्यक्ति को बलात्कार, अप्राकृतिक यौन कृत्य और गैर-इरादतन हत्या के आरोपों से बरी कर दिया।

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मामले का विवरण: Chhattisgarh High Court decision

घटना 11 दिसंबर 2017 की है, जब आरोपी ने अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित किया। इस कृत्य के बाद पीड़िता को असहनीय पीड़ा हुई और इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। निचली अदालत ने आरोपी को IPC की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या), 376 (दुष्कर्म) और 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य) के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल के कारावास की सजा सुनाई थी।

Chhattisgarh High Court decision
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उच्च न्यायालय का निर्णय

आरोपी ने इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की। सुनवाई के बाद, उच्च न्यायालय ने माना कि IPC की धारा 375 के अपवाद 2 के अनुसार, यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक है, तो पति द्वारा उसके साथ किए गए किसी भी यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसी परिस्थितियों में पत्नी की सहमति का प्रश्न महत्वहीन हो जाता है। इसके आधार पर, न्यायालय ने आरोपी को IPC की धारा 376 और 377 के आरोपों से बरी कर दिया।

गैर-इरादतन हत्या के आरोप पर न्यायालय की राय

IPC की धारा 304 के तहत, उच्च न्यायालय ने पाया कि निचली अदालत ने इस संबंध में कोई विशेष निष्कर्ष नहीं दिया था। इसलिए, न्यायालय ने आरोपी को इस आरोप से भी मुक्त कर दिया और उसकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया।

कानूनी दृष्टिकोण

यह निर्णय IPC की धारा 375 के अपवाद 2 पर आधारित है, जो पति-पत्नी के बीच यौन संबंधों को दुष्कर्म की परिभाषा से बाहर रखता है, बशर्ते पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक हो। हालांकि, यह मुद्दा कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से विवादास्पद रहा है, और marital rape (वैवाहिक बलात्कार) को अपराध की श्रेणी में शामिल करने की मांग समय-समय पर उठती रही है।

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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह फैसला कानूनी प्रावधानों की व्याख्या पर आधारित है, लेकिन यह विषय सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से गंभीर चर्चा का विषय है। वर्तमान में, भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल करने के लिए कानूनी सुधारों की मांग जारी है, और इस पर अंतिम निर्णय विधायिका और न्यायपालिका के संयुक्त प्रयासों से ही संभव होगा।

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