जानें क्या कहती है IPC की धारा 47, जीवजन्तु को लेकर कही गयी है ये बात

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भारतीय दंड संहिता (IPC) हमारे देश का एक बहुत ही मजबूत हिस्सा है। इस वजह से देश में कानून को महत्व दिया जाता है और लोग देश के कानून का सम्मान भी करते हैं। देश में होने वाले अपराधों की व्याख्या और सजा का प्रावधान सब कुछ भारतीय दंड संहिता में वर्णित है। ऐसे में आज हम आपको IPC की धारा 47 के बारे में बताएंगे जिसमें ‘जीवजन्तु’ शब्द का वर्णन किया गया है।

और पढ़ें: जानिए क्या कहती है IPC की धारा 44, क्षति शब्द को लेकर कही गई है ये बात 

IPC की धारा 47 का विवरण

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 47 (Section 47) हमें कानूनी तौर पर जीवजन्तु (Animal) की परिभाषा बताती है। IPC की धारा 47 के मुताबिक जीवजन्तु शब्द मानव से भिन्न किसी जीवधारी का द्योतक है।

सरल शब्दों में कहें तो जब भी कानूनी तौर पर जीव-जंतु शब्द का उल्लेख किया जाएगा, तो यह माना जाएगा कि इसमें पक्षी, कीड़े-मकोड़े और जानवर शामिल हैं। कानून में पक्षी, सांप, चूहा जैसे किसी भी जीव को किसी भी मामले में जीव-जंतु के नाम से संदर्भित किया जा सकता है। लेकिन इस खंड में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि इस धारा में केवल जानवरों को ही जीव-जंतु के साथ जोड़ा जा सकता है, किसी भी इंसान को इसके साथ नहीं जोड़ा जा सकता। इस धारा में केवल जानवर शब्द को ही कानूनी तौर पर परिभाषित किया गया है।

क्या है भारतीय दंड संहिता

भारतीय दंड संहिता भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए विशिष्ट अपराधों को निर्दिष्ट और दंडित करती है। आपको बता दें कि यह बात भारतीय सेना पर लागू नहीं होती है। पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी। हालांकि, धारा 370 ख़त्म होने के बाद आईपीसी वहाँ भी लागू हो गया। पहले वहां रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) लागू होती थी।

भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश काल में लागू की गई थी। आईपीसी की स्थापना 1860 में ब्रिटिश भारत के पहले विधि आयोग के प्रस्ताव पर की गई थी। इसके बाद 1 जनवरी, 1862 को इसे भारतीय दंड संहिता के रूप में अपनाया गया। वर्तमान दंड संहिता, जिसे भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जाना जाता है, से हम सभी परिचित हैं। इसका खाका लॉर्ड मैकाले ने तैयार किया था। समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं।

अगर पुलिस अधिकारी FIR लिखने से करें मना

वहीं अगर कोई पुलिस अधिकारी कभी भी आपकी कोई FIR लिखने से इनकार करता है तो यह सीधे तौर पर गैरकानूनी होगा। अगर FIR दर्ज नहीं हुई तो आप एसपी से शिकायत कर सकते हैं। अगर आपकी शिकायत को नजरअंदाज किया जाता है तो आप कोर्ट में किसी भी मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते हैं। क्योंकि यदि कोई लोक सेवक कानूनी गलती करता है तो वह न्यायालय द्वारा क्षमा योग्य नहीं है।

और पढ़ें: जानें क्या कहती है IPC की धारा 11, कंपनी और एसोसिएशन को लेकर कही गयी है ये बात

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