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‘डॉ. अंबेडकर की पूजा करना बंद करें’, सद्गुरु ने अंबेडकर को लेकर ऐसा क्यों कहा?

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Sadhguru remarks on Ambedkar – धर्म और आध्यात्मिकता पर बात करने वाले सद्गुरु अक्सर अपनी बातों में बाबा साहब अंबेडकर का जिक्र करते रहे हैं। वह अक्सर अंबेडकर की जीवन शैली और उनके द्वारा किए गए कार्यों की प्रशंसा करते नजर आते हैं। उनका कहना है कि अंबेडकर ने हमारे देश को आकांक्षा और आकार दिया है। हालांकि, सद्गुरु ने यह भी माना है कि अम्बेडकर ने पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए जो काम किया है, उसका अनुसरण करना लोग भूल गए हैं। लोग अंबेडकर की पूजा करने लगे हैं जो पूरी तरह से गलत है। सद्गुरु अंबेडकर की पूजा के ख़िलाफ़ हैं। आइए आपको बताते हैं डॉ. अंबेडकर पर सद्गुरु के विचार।

और पढ़ें: अंग्रेजों से मिलने वाली पूरी आज़ादी के खिलाफ थे अंबेडकर, भारत छोड़ो आंदोलन में भी नहीं लिया हिस्सा

लोगों को अंबेडकर को प्रेरणा मानने की जरूरत

अंबेडकर के बारे में सद्गुरु कहते हैं कि,‘भारत को यह याद दिलाने की जरूरत है कि अंबेडकर वास्तव में कौन थे। वर्तमान समय में लोग अंबेडकर को केवल दलित प्रतीक के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि नेताओं को किसी न किसी पार्टी ने अपने कब्जे में ले लिया है। अगर आप सरदार पटेल के बारे में बात करेंगे तो कांग्रेस कहेगी कि वह तो कांग्रेसी थे, आप उनके बारे में क्यों बात कर रहे हैं। अगर हम अंबेडकर की बात करें तो लोग कहते हैं कि वह दलित थे, आप उनके बारे में क्यों बात कर रहे हैं? जिन लोगों ने इस देश के लिए काम किया है, उनके लिए देशभक्ति की प्रेरणा बनना जरूरी है।’ खासकर अंबेडकर।’

लोकतंत्र पर अंबेडकर के विचार – Sadhguru remarks on Ambedkar

सद्गुरु ने आगे कहा, ‘अंबेडकर ने कभी भी लोकतंत्र को सरकार का एक रूप नहीं माना, बल्कि यह लोगों के प्रति सम्मान और भक्ति दिखाने का एक तरीका है। ये उनके (अंबेडकर) शब्द हैं। अंबेडकर ने सामाजिक लोकतंत्र की बात की थी, राजनीतिक लोकतंत्र की नहीं,’ सद्गुरु के मुताबिक, राजनीतिक लोकतंत्र मौजूद है। कागजों में सब लोग बराबर हैं लेकिन हकीकत में हम सब बराबर नहीं हैं, और न ही कोई समाज हर किसी को बराबर लाने में सफल हुआ है। लेकिन सभी को बराबर का दर्जा देना बहुत जरूरी है। भले ही लोगों के बीच समानता न हो, समान अवसर अवश्य होने चाहिए।

कानूनी और सामाजिक रूप से लोगों के बीच अभी भी अंतर

Sadhguru remarks on Ambedkar – सद्गुरु कहते हैं कि कानून में सभी लोगों को समान माना गया है लेकिन समाज में अभी भी लोगों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता है। कई लोग इस मुकाम को हासिल करना चाहते हैं लेकिन ऐसा करने में असफल हो जाते हैं। साथ ही, गैर-आध्यात्मिक प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए, सद्गुरु ने कहा कि, ‘जब आप अपने भौतिक स्वरूप से पहचाने नहीं जाते हैं तो आपका वंश महत्वपूर्ण नहीं है। वंशवाद को ख़त्म करना होगा तभी समाज में लोकतंत्र आ पायेगा। कई मायनों में हम लोकतांत्रिक व्यवस्था से जागीरदारी चला रहे हैं। जब भी चुनाव होते हैं तो जाति और धर्म एक अहम मुद्दा बन जाता है। क्योंकि हम लोकतांत्रिक तरीकों से जागीरदारी चला रहे हैं।’

वहीं अंबेडकर के बारे में बात करते हुए सद्गुरु ने कहा, ‘अंबेडकर का दृष्टिकोण केवल सामाजिक लोकतंत्र का था, राजनीतिक लोकतंत्र का नहीं। हालांकि, कुछ हद तक, यह राजनीतिक लोकतंत्र के कारण है कि सामाजिक लोकतंत्र विकसित नहीं हो रहा है। हालांकि, राजनीतिक लोकतंत्र के माध्यम से हम सामाजिक लोकतंत्र तक पहुंच सकते हैं। लेकिन 70 साल में भी हम इस ओर बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं। दुर्भाग्यवश, दलितों के पास कानूनी अधिकार तो हैं लेकिन बौद्धिक अधिकार अभी भी उपलब्ध नहीं हैं।’

अंबेडकर की पूजा करना गलत – Sadhguru remarks on Ambedkar

सद्गुरु ने आगे कहा, अंबेडकर ने अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में ली। वे जिस तरह की पृष्ठभूमि से आये थे। उन्होंने जी प्रतिभा दिखाई वह हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने सामाजिक परिस्थितियों के कारण हार स्वीकार नहीं की। अंबेडकर ने जो काम किया उसका अनुसरण करने के बजाय लोग उनकी पूजा करने लगे। हालांकि, अंबेडकर इस विचार के सख्त खिलाफ थे कि अगर कोई नेता आपके लिए कुछ अच्छा करता है, तो उसे आधा भगवान बना देना गलत है।

Sadhguru remarks on Ambedkar – सद्गुरु ने इस बात पर जोर दिया है कि, ‘हमें अंबेडकर की पूजा करने की जरूरत नहीं है। बल्कि उनकी तरह अपना जीवन जीने की जरूरत है। अंबेडकर का अनुकरण नहीं बल्कि उनकी पूजा की जा रही है। हमें अंबेडकर के जीवन का अनुकरण करने की जरूरत है। चाहे समाज आपके साथ कुछ भी करे, आप नहीं रुकेंगे, आप अपना जीवन अपने हाथों में लेकर चलेंगे।’

और पढ़ें: अंबेडकर ने क्यों आजादी की लड़ाई में भाग लेने से मना कर दिया? 

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