कहाँ से आया ISKCON का concept और ISKCON का असल मतलब क्या है?

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History of ISKCON Temple: महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने धर्मं की रक्षा करने के लिए और अधर्मियों का नाश करने लिए अर्जुन का सारथी बनकर मार्गदर्शन किया था. इसी भगवान कृष्ण के मंदिर को इस्कॉन मंदिर भी कहा जाता है. भगवान कृष्ण ने जब यह अवतार लिया था उन्होंने कई सारी लीला रची थी. उनके जीवन की लीला में कुछ ना कुछ ना कुछ सिख छिपी रहती है. दुनिया भर में इनके ढेरों मंदिर हैं, अनेकों संस्थाएं हैं, जो कृष्ण की भक्ति और भगवद गीता के संदेश को दुनिया भर में पहुंचाने का काम करती हैं. इन्हीं में से एक संस्था है इस्कॉन.

इस्कॉन का पूरा नाम इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉनशियस्नेस है. इस्कॉन के दुनिया भर में 1 हजार से अधिक केंद्र हैं. अकेले भारत में इसके 400 केंद्र हैं और यहां तक कि पाकिस्तान में भी इस्कॉन के 12 मंदिर बने हुए हैं. आइए आज इस लेख में जानते हैं इस मंदिर के बारे में सब कुछ…

क्या है इस्कान मंदिर?

इस्कॉन मंदिर पूरे विश्व में भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का सबसे बड़ा मंदिरो का संगठन है. इस्कॉन का मतलब इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णा कांशसनेस है. ये संगठन दुनिया भर में कृष्ण भक्ति को प्रचारित और प्रसारित करता है. इस्कॉन मंदिर की स्थापना श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने न्यूयॉर्क सिटी में 1966 में की थी.

एक छोटे से समूह से प्रारंभ हुआ ISKCON आज भक्ति का एक बहुत ही सुंदर और बड़ा आंदोलन बन चुका है. इस्कॉन के अनुयायी आज पूरी दुनिया में मौजूद है और वे विश्व में गीता और हिन्दू धर्म एवं हिन्दू संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं. इस्कॉन मंदिर से जुड़े लोगो का सबसे बड़ा मं‍त्र है…

हरे रामा-हरे रामा, राम-राम हरे हरे,
हरे कृष्ण-हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे’

History of ISKCON Temple

इस्कॉन भक्त गौड़ीय वैष्णवों की एक शिष्य रेखा का पालन करते हैं और गौड़ीय वैष्णववाद की सबसे बड़ी शाखा हैं. वैष्णववाद का अर्थ है ‘ विष्णु की पूजा ‘, और गौड़ा उस क्षेत्र को संदर्भित करता है जहां वैष्णववाद की इस विशेष शाखा का जन्म हुआ, पश्चिम बंगाल के गौड़ा क्षेत्र में.  गौड़ीय वैष्णववाद का पिछले पांच सौ वर्षों से भारत, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अनुसरण किया गया है.

गौड़ीय वैष्णववाद की स्थापना चैतन्य महाप्रभु ने भगवान के एक छिपे हुए अवतार द्वारा की थी, जिन्होंने तेजी से पूरे बंगाल में अपनी परमानंद भक्ति (भक्ति) का प्रसार किया. उन्होंने संकीर्तन की स्थापना की, जिसे सार्वजनिक रूप से नृत्य और गीत के माध्यम से, सर्वोच्च भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति व्यक्त करने का अभ्यास. इसे आप दिल्ली की सड़कों पर आमतौर पर देख सकते हैं. सांप्रदायिक पूजा के इस रूप ने जाति और पंथ की परवाह किए बिना सभी लोगों को पूजा में शामिल करके कठोर जाति संरचनाओं का जवाब दिया. श्री चैतन्य महाप्रभु ने हरे कृष्ण महामंत्र (‘महान मंत्र’) का जप करने पर जोर दिया. उन्हें गौड़ीय वैष्णवों द्वारा स्वयं कृष्ण का अवतार माना जाता है.

कब हुई इस्कॉन की स्थापना?

History of ISKCON Temple – इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस अर्थात इस्कॉन की स्थापना 1966 में स्वामी प्रभुपादजी ने न्यूयॉर्क सिटी में की थी. इसे “हरे कृष्ण आन्दोलन” के नाम से भी जाना जाता है जिसकी शुरुआत श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने की थी. आज देश-विदेश में इसके 400 से अधिक मंदिर और विद्यालय मौजूद हैं

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क्यों हुई मंदिर की स्थापना

भगवान कृष्ण के संदेश को पूरे विश्व में पहुंचाने के लिए स्वामी प्रभुपाद ने इस्कॉन मंदिर की स्थापना की थी. स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1896 में कोलकाता में हुआ था. साल 1968 में प्रयोग के तौर पर वर्जीनिया, अमेरिका की पहाड़ियों में नव-वृन्दावन की स्थापना की गई थी. 14 नवंबर 1977 में उनका निधन प्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा के वृन्दावन धाम में हो गया था.

कौन है इस्कॉन मंदिर की स्थापना वाले स्वामी प्रभुपादजी? 

इस्कॉन मंदिर की स्थापना करने वाले स्वामी प्रभुपादजी का पूरा नाम श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी था. इनका जन्म 1 सितम्बर 1896 को भारत के कोल्कता शहर में हुआ था. स्वामी प्रभुपादजी ने 49 साल की उम्र में संन्यास ले लिया. सन्यास लेने के बाद स्वामी जी ने पूरे विश्व में घूम-घूम कर हरे रामा हरे कृष्णा का प्रचार किया.

इनका स्वर्गवास 14 नवम्बर 1977 को वृंदावन में 81 वर्ष की उम्र में हुआ. एक बार प्रभुपाद महाराज के गुरू भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने उनसे कहा कि तुम युवा हो, तेजस्वी हो जाओ कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों. अपने गुरु की आज्ञा का पालन करने के लिए उन्होंने 49 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने के लिए भगवान कृष्णा की भक्ति का प्रचार प्रसार करने लगे.

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कहां बना था इस्कॉन का पहला मंदिर

दुनिया का पहला इस्कॉन मंदिर भारत में नहीं बल्कि विदेश में बनाया गया था. ये मंदिर अंग्रेजों ने बनवाया था. दुनिया के पहले इस्कॉन मंदिर का निर्माण न्यूयॉर्क में 1966 में हुआ था. इस मंदिर की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभय चरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने की थी.

इस्कॉन मंदिर के सिद्धान्त

History of ISKCON Temple – आज पूरी दुनिया में इस्कॉन के इतने ज्यादा अनुयायी होने की सबसे खास वजह इस्कॉन मंदिर में मिलने वाली असीम शांति है. आज दुनिया भर से इसी शांति की तलाश में लोग आते है. आज कृष्णा की गीता का उपदेश पश्चिम यानि अंग्रेज लोगो के लोगों के लिए बरदान साबित हो रही है. ISKCON Temple की पूरी जानकारी के अनुसार इस्कॉन मंदिर में आस्था रखने वालों को चार सरल नियमों का पालन करना होता है, जो निम्न है.

  • तप
  • दया
  • सत्य
  • मन की शुद्धता

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इस्कॉन मंदिर के नियम
  • अपने सिद्धान्त के अलावा इस्कॉन के अनुयायी मुख्यत: चार नियमों का पालन करते हैं और वो है ये 4 बातें
  • इस्कॉन के अनुयायी को तामसिक भोजन त्यागना होता है. इसके तहत उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि से दूर रहना होता है.
  • अनैतिक आचरण से दूर रहना जैसे की जुआ, पब, वेश्यालय जैसे स्थानों पर जाना अनैतिक आचरण के अंतर्गत आता है.
  • इस्कॉन के अनुयायी को रोजाना एक घंटा शास्त्राध्ययन में बिताना होता है. इसमें गीता के साथ साथ भारतीय धर्म और इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन करना होता है.
  • सबसे महत्वपूर्ण सभी को रोजाना हरे कृष्णा-हरे कृष्णा’ नाम की 16 बार माला जपनी होती है.

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