भारत शुरू से ही अध्यात्मिक गुरुओं का देश रहा है. और सदियों से भारत दुनिया के कुछ सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक नेताओं का घर रहा है. इन आध्यात्मिक नेताओं ने देश की संस्कृति और समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस के शिष्यों में से एक, प्रमुख भारतीय आध्यात्मिक नेता थे, जिनका आधुनिक हिंदू धर्म पर बड़ा प्रभाव था. उन्होंने ही वेदांत के विचार को आम जनता तक पहुँचाया. आध्यात्मिकता, आत्म-साक्षात्कार और ध्यान की शक्ति पर उनकी शिक्षाओं को लाखों हिंदुओं द्वारा व्यापक स्तर पर स्वीकार किया गया और उनका पालन किया गया. ठीक ऐसे ही अध्यात्मिक गुरुओं कि परंपरा का अनुपालन करते हुए आज के समय के जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य हैं. जो अत्यधिक सम्मानित शिक्षक, विद्वान और लेखक हैं. जिन्हें उनके विशाल ज्ञान और हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों की गहरी समझ के लिए जाना जाता है. वह राष्ट्रीय संत समिति के संस्थापक हैं, जो धार्मिक और सामाजिक कल्याण के लिए एक संगठन है. उन्होंने अयोध्या राम मंदिर के फैसले में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
बीमारी के चलते खो दी आंखें
स्वामी भद्राचार्य ने 24 मार्च 1950 को ट्रेकोमा के संक्रमण के कारण अपनी दृष्टि खो दी. उनके पिता बंबई में काम करते थे, इसलिए उनके दादा ही थे जिन्होंने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा प्रदान की. वह अक्सर उन्हें दोपहर में रामायण और महाभारत जैसे हिंदू महाकाव्यों की कहानियां सुनाते थे. उनकी दादी उन्हें ‘गिरिधर’ कहती थीं जो भगवान कृष्ण के नामों में से एक है.
3 साल की उम्र में लिखी पहली कविता
रामभद्राचार्य का जन्म मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शांडीखुर्द गांव में हुआ था. उनके माता-पिता पंडित राजदेव मिश्र और शचीदेवी मिश्र भी कृष्ण के भक्त थे. जब रामभद्राचार्य तीन वर्ष के थे, तब उन्होंने अपनी प्रारंभिक कविता अवधी भाषा में लिखी थी, जिसे उन्होंने अपने दादाजी को सुनाया था. कविता कृष्ण की पालक माँ यशोदा के बारे में थी, जो कृष्ण को नुकसान पहुँचाने के लिए एक गोपी (दूधवाली) के साथ बहस कर रही थी.
कहते हैं कि जब गिरिधर मात्र 5 साल के थे तभी अपने के पड़ोसी पंडित मुरलीधर मिश्र की मदद से भगवत गीता के 700 श्लोक याद कर लिए थे जिसमे सबसे चौकाने वाली बात ये थी कि वो व्यक्ति जो जन्म से अँधा है उसे इतना ज्ञान और बिना देखे अध्ययन करने की क्षमता कहाँ से मिली ? सात साल की उम्र में, गिरिधर अपने दादा की सहायता से 60 दिनों में तुलसीदास के रामचरितमानस के 10,900 श्लोकों को याद करने में सक्षम थे. 1957 में रामनवमी के दिन उन्होंने उपवास किया और संपूर्ण महाकाव्य का पाठ किया.
राम मंदिर का दिया था सटीक अनुमान
रामभद्राचार्य, जगद्गुरु, श्री राम जन्मभूमि के पक्ष में एक मुकदमेबाज के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने ऋग्वेद से जैमिनीय संहिता का आह्वान किया. उनके उद्धरण विवादित स्थल के संबंध में सरयू नदी से दिशा और दूरी के संबंध में सटीक और विस्तृत थे. ग्रंथों को खोलने के बाद, सभी विवरण सही पाए गए और यह पता चला कि विचाराधीन स्थल ठीक उसी स्थान पर स्थित था, जहां रामभद्राचार्य ने संकेत दिया था. भारतीय ज्ञान के इस चमत्कारी पराक्रम ने जज को चकित कर दिया और परिणामस्वरूप फैसले में बदलाव आया.
इसे परमात्मा की एक ऐसी शक्ति माना जाता है जिसे बचपन से देख न सकने वाला व्यक्ति वेदों और शास्त्रों के विशाल संसार से उद्धृत कर सकता है. मंदिर बनाने की अनुमति देने के अदालत के फैसले में उनके तर्क और इनपुट महत्वपूर्ण थे. जगद्गुरु के बयान ने फैसले का रुख मोड़ दिया. सुनवाई करने वाले जस्टिस ने भी इसे भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार माना. एक व्यक्ति जो देख नहीं सकते, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल संसार से उद्धहरण दे सकते हैं, इसे ईश्वरीय शक्ति ही मानी जाती है.
मैं वही अभागा व्यक्ति हूं… जिसे घर की शादी में रोका गया
गिरिधर, जब वे ग्यारह वर्ष के थे, उन्हें अपने परिवार के साथ बारात में शामिल होने से रोका गया. उनके कारण उनकी उपस्थिति पर विश्वास करना दुर्भाग्य का संकेत होगा. इसने उन पर एक स्थायी प्रभाव डाला और उनकी आत्मकथा की शुरुआती पंक्तियों में परिलक्षित होता है, “मैं वही व्यक्ति हूं जिसे शादी में होने के लिए अशुभ माना जाता था, फिर भी मैं वह हूं जो शादी के सबसे बड़े समारोहों का उद्घाटन करता हूं और कल्याण कार्य. यह सब केवल ईश्वर की दिव्य कृपा से ही संभव है, जो किसी भी चीज को एक तिनके से शक्तिशाली वज्र में बदल सकते हैं और इसके विपरीत. भारत की पवित्र भूमि में जन्म लेने वाली दिव्य आत्मा को ईश्वर दीर्घायु प्रदान करें.
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जगद्गुरु रामभद्राचार्य को बहुभाषाविद कहा जाता है. वे 22 भाषाओं में पारंगत हैं. संस्कृत और हिंदी के अलावा अवधि, मैथिली सहित अन्य भाषाओं में कविता कहते हैं. अपनी रचनाएं रची हैं. अब तक उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों की रचना की है. इसमें दो संस्कृत और दो हिंदी के महाकाव्य भी शामिल हैं. तुलसीदास पर देश के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में से उन्हें एक माना जाता है. जगद्गुरु रामभद्राचार्य न लिख सकते हैं. न पढ़ सकते हैं. न ही उन्होंने ब्रेल लिपि का प्रयोग किया है. वे केवल सुनकर शिक्षा हासिल की. बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं. उनकी इस अप्रतिम ज्ञान के कारण भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2015 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था.
तुलसीपीठ के संस्थापक, रामानंद संप्रदाय के जगद्गुरु
रामभद्राचार्य एक भारतीय हिंदू आध्यात्मिक नेता के तौर पर माने जाते हैं. वे शिक्षक, संस्कृत विद्वान, बहुभाषाविद, कवि, लेखक, पाठ्य टीकाकार , दार्शनिक, संगीतकार, गायक, नाटककार के में भी जाने जाते हैं. उन्होंने संत तुलसीदास के नाम पर चित्रकूट में एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान तुलसी पीठ की स्थापना की है. चित्रकूट के जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन चांसलर हैं. यह विशेष रूप से चार प्रकार के विकलांग छात्रों को स्नातक और पीजी पाठ्यक्रम करता है. रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु में से वे एक हैं. वर्ष 1988 में उन्होंने यह पद धारक हैं. उनके प्रवचन और दर्शन के लाखों-करोड़ों फॉलोअर्स देश में मौजूद हैं. उनकी विलक्षण प्रतिभा का हर कोई कायल है.
बड़ी-बड़ी हस्तियों का मिला सम्मान
2015 में, रामभद्राचार्य को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम, सोमनाथ चटर्जी, शीलेंद्र कुमार सिंह और इंदिरा गांधी जैसी कई प्रमुख हस्तियों और राजनेताओं के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों द्वारा सम्मानित किया गया है.