पूरी दुनिया में अगर कुछ काफी ज्यादा चर्चाओं में होता है, तो वो है अलग अलग धर्म और अलग अलग तरह की नस्लें। हर धर्म के अपने अलग तरह के रिवाज है अलग तरह के नियम है। जो कि उस धर्म को मानने वालों पर काफी असर डालते हैं। चाहे वो जन्म से संबंधित हो या फिर विवाह या फिर मृत्यु से जुड़ा प्रभाव हो सकता है।
क्यों शिशुओं का नहीं होता अंतिम संस्कार?
एक उदाहरण मृत्यू का ही ले लेते हैं जब मुस्लिम या ईसाई धर्म में मौत हो जाती है, किसी की तो उसका शव जमीन में दफनाया जाता है, लेकिन इसके उल्ट हिंदू धर्म में मौत हो जाने पर व्यक्ति का दाह संस्कार किया जाता है यानि कि व्यक्ति के शव को जला दिया जाता है। लेकिन यहां पर एक कंफ्यूजन है वो ये कि हिंदू धर्म मानने वाले किसी व्यस्क या फिर बूढ़े व्यक्ति की मौत हो जाए तो उसके शव को आग के हवाले किया जाता है, लेकिन वहीं हिंदू धर्म में अगर किसी नवजात शिशु की मृत्यु हो जाए थो उसे जलाया नहीं बल्कि दफनाया जाता है। ऐसा क्यों?
नियम अलग अलग क्यों तो आज हम यही जानेंगे। इसके अलावा ये भी जानेंगे कि आखिर श्मशान में नहीं बल्कि महान भिक्षुओं की क्यों समाधि बनाकर उनको दफनाया जाता है?
क्या हैं मान्यताएं?
दरअसल, हिंदू धर्म में एक धारणा ये है कि एक प्रवेश द्वार है अग्नि जिसके जरिए कोई आध्यात्मिक दुनिया में प्रवेश लिया जा सकता है। लोगों का ये भी मानना है कि अंतिम संस्कार असल में शरीर से अलग होने का एक रूप है। जब शरीर को जलाया जाए तो आत्मा से व्यक्ति को कोई लगाव नहीं होता है। इस तरह से वो शख्स आसानी से आध्यात्मिक दुनिया की ओर जाता है फिर मोक्ष पा लेता है। हिंदू धर्म के मुताबिक 8 घंटे के अंदर एक मृत शख्स के शरीर का अंतिम संस्कार कर देना होता है।
अब आते हैं एक नवजात शिशु के शव को हिंदू धर्म में दफनाने के पीछे की वजह क्या है। दरअसल, ऐसा इस वजह से किया जाता है क्योंकि नवजात शिशु की आत्मा को कम लगाव होता है अपने शरीर से और वो लंबे वक्त तक अपने शरीर के साथ रहते नहीं है। इसी वजह से उनकी आत्माएं इतनी आसक्त नहीं होते हैं और वो शरीर को आसानी से छोड़ देती है। इसी कारण नवजात शिशुओं और संतों को उनकी मृत्यु के बाद हिंदू धर्म में दफनाया जाता है न की जलाया जाता है।
हिंदू धर्म में दो मूल सिद्धांतों को माना जाता है। एक तो पुनर्वास दूसरा पुनर्जन्म। ये नियम उसी पर बेस्ड है। किसी युवा या बूढ़े व्यक्ति के शरीर का जो दाह संस्कार किया जाता है उसके बाद उस अवशिष्ट शरीर की आत्मा की जो आसक्ति खत्म हो जाता है। हालांकि, नवजात शिशु के केस में इसकी जरूरत होती नहीं है क्योंकि आत्मा शरीर से जुड़ी नहीं है।