भाषाओं का भी हुआ था बंटवारा
1947 में सिर्फ दो देशों के बीच लकीर नहीं खींची गई थी, बल्कि कई घरों, कई परिवारों, कई गांवों, कई भाषाओँ का भी बंटवारा हुआ था। ऐसा ही एक राज्य पंजाब भी है जिसे दो धर्मों के आपसी तना-तनी के कारण दो हिस्सों में विभाजित होना पड़ा था। पंजाब के इस विभाजन से उनकी भाषाएं, उनकी संस्कृति, उनकी परंपरा यहाँ तक की सिख धर्म भी बंट गया। आपको आज ऐसे बहुत सारे उदाहरण मिल जायेंगे जिससे आपको यह पता चल जायेगा की भारत के सरदारों का तौर-तरीका, रहन-सहन, बोली-भाषा सब कुछ पाकिस्तानी पंजाबियों से भिन्न है, अलग है।
गुरुमुखी और शाहमुखी आजादी के बाद बन गई अलग-अलग लोगों की पहचान
आज हम बात करेंगे भारत-पाकिस्तान में सिख समुदाय के भिन्न बोली के बारे में, और उनके द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे अलग लिपि के बारे में। आज हम बात करेंगे सिख समुदाय के गुरुमुखी और शाहमुखी लिपि के बारे में, जो भारत के बंटवारे के साथ-साथ अलग-अलग लोगों की पहचान बन गई है।
- प्राचीन भारत में दोनों लिपियों का होता था इस्तेमाल
सिख धर्म वैसे तो सभी धर्मों, सभी भाषाओं को एक साथ लेकर चलने पर विश्वास रखता है, इसी कारण हिंदू सुरक्षा के लिए बना यह पंथ अपनी भाषा में उर्दू का इस्तेमाल करता था। उर्दू भाषा के बारे में यह भी कहा जाता है कि उर्दू बोली तो पंजाबी बोलने के लिए इस्तेमाल की गई थी। आपने अक्सर ध्यान दिया होगा की सरदार हिंदी के देवनागरी लिपि में नहीं बल्कि गुरुमुखी लिपि में पंजाबी लिखते हैं। पंजाबी भाषा में केवल गुरुमुखी लिपि ही नहीं है, इसके अलावा पंजाबी लोग अपनी भाषा में, अपनी लेखन में शाहमुखी लिपि का भी इस्तेमाल करते थे। प्राचीन भारत के सरदार इन दोनों लिपि का इस्तेमाल करते हुए पंजाबी बोलते थे।
शाहमुखी ईरानी लिपि का है पंजाबी संस्करण
आपको यहाँ एक चीज सबसे पहले clear कर दे की जो सिख समुदाय में गुरु ग्रंथ साहिब है वो गुरुमुखी लिपि में लिखी गई है और सिक्खों के गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि की खोज की थी। हाँ, लेकिन यहां पर एक बात गौर करने वाली है की गुरुमुखी लिपि से कई सौ साल पहले शाहमुखी लिपि की खोज हो चुकी थी। इस लिपि के बारे में कहा जाता है कि यह सूफियों द्वारा चलाई गई ईरानी लिपि का पंजाबी संस्करण है। शायद इसी कारण से गुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी और सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि की खोज की थी।
पाकिस्तानी सिखों ने चुना शाहमुखी
भारत के विभाजन के बाद जिन सिख समुदाय के लोगों ने यानी की सरदार ने भारत में रहना चुना उनकी भाषा, बोली, लिखावट में गुरु अंगद देव जी द्वारा खोजी गई लिपि, गुरुमुखी लिपि का इस्तेमाल दिखेगा। जबकि दूसरी तरफ यानी की पाकिस्तान में जिन सरदारों ने रहना विकल्प चुना था, उनकी भाषा में आपको शाहमुखी लिपि का प्रयोग ज्यादा दिखेगा। इसका एक प्रमुख कारण यह भी हो सकता है की पाकिस्तान के विभाजन के बाद वहां की सिख समुदाय इस्लाम धर्म के ज्यादा करीब रही हैं, इसलिए वह सूफियों द्वारा चलाई गई ईरानी लिपि का पंजाबी संस्करण का प्रयोग ज्यादा करते हैं। इससे उन्हें इस्लामिक देश में रहने में सरलता होती है आसानी होती है। इसका एक कारण यह भी है की पाकिस्तान के मुस्लिम इस ईरानी लिपि के पंजाबी संस्करण के कारण शायद वहां के पंजाबियों के साथ ज्यादा घुला मिला महसूस करते है, ज्यादा आराम से एक साथ रहते हैं।
इसका एक विशेषता यह भी है की जब शाहमुखी लिपि में पंजाबी लिखी जाती है तो वो उर्दू लिखावट से ज्यादा मेल खाती है, इस वजह से वो लिखावट मुसलमानों को समझने में ज्यादा आसानी होती है।
- भारतीय सिखों ने चुना गुरुमुखी लिपि
भारत की बात करे तो यहाँ खालसा पंथ, मतलब की सिख धर्म हिन्दू धर्म की ही एक शाखा है। वैसे भी जब आप सिख समुदाय के गुरुओं को सुनेंगे तो आपको यह अनुभव हो जायेगा की खालसा पंथ की स्थापना ही हिन्दू रक्षा के लिए हुई थी। इस कारण यहां के सरदार अपनी बोली, भाषा और लिखावट में गुरुमुखी लिपि का इस्तेमाल करते हैं। भारत के सरदारों के मुताबिक गुरुमुखी, गुरु के मुख से निकली हुई लिपि है और श्रद्धा के साथ यहां के सिख इसी लिपि का इस्तेमाल करते हैं। यह लिपि पंजाबी लिखने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है।
दोनों लिपियों में है अंतर
इन दोनों लिपियों में सबसे बड़ा अंतर यह है कि जहां शाहमुखी लिपि में पंजाबी, उर्दू भाषा की तरह राइट से लेफ्ट लिखी जाती है, वहीं गुरुमुखी लिपि में पंजाबी भाषा लेफ्ट से राइट यानि की हिंदी, इंग्लिश भाषा की तरह लिखी जाती है। वर्तमान में इसी कारण भारत में पंजाबी गुरमुखी में लिखी जाती है और पाकिस्तान में पंजाबी शाहमुखी में लिखी जाती है। लिपि में भिन्नता के कारण इन दोनों देशों के पंजाबियों के भाषा में भी आपको अंतर मिलेगा।