साहिर लुधियानवी का पंजाब से क्या था कनेक्शन

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Sahir Ludhianvi Punjab Connection – साहिर लुधियानवी को न तो किसी पहचान की जरूरत है और न ही कोई ऐसा शख्स होगा, जिन्हें यह न पता हो कि वे कहां के रहने वाले थे. हालांकि काफी लोग इससे अनजान होंगे कि साहिर लुधियानवी शहर के सबसे पुराने सतीश चंद्र धवन (एससीडी) सरकारी कालेज में पढ़े हैं. इस कालेज ने साहिर की यादों को बखूबी संजोकर रखा हुआ है. मशहूर शायर साहिर लुधियानवी आजादी से पूर्व साल 1942-43 में इस कालेज में पढ़ा करते थे. उनका पूरा नाम अब्दुल हया साहिर था. बचपन से ही शायरी लिखने के शौकीन साहिर कालेज में दोस्तों को शायरी सुनाया करते थे.

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“मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे,
बज़्म- ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या माने.
सबत जिन राहों पर है सतबते शाही के निशां
उसपे उल्फत भरी रूहों का गुज़र क्या माने?”

Sahir Ludhianvi Punjab connection
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Sahir Ludhianvi Punjab connection – साहिर की शायरी का सफर इसी कालेज से शुरू हुआ था, जो उन्हें प्रसिद्धियों तक लेकर गया. इस कालेज ने साहिर की यादों को बखूबी संजोकर रखा हुआ है. मशहूर शायर साहिर लुधियानवी आजादी से पूर्व साल 1942-43 में इस कालेज में पढ़ा करते थे. उनका पूरा नाम अब्दुल हया साहिर था. बचपन से ही शायरी लिखने के शौकीन साहिर कालेज में दोस्तों को शायरी सुनाया करते थे. साहिर की शायरी का सफर इसी कालेज से शुरू हुआ था, जो उन्हें प्रसिद्धियों तक लेकर गया.

साहिर का पंजाब कनेक्शन

साहिर का जन्म पंजाब स्थित लुधियाना में लाल पुष्पहार हवेली करीमपुरा में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनकी माता और पिता के बीच रिश्ते कुछ खास अच्छे नहीं थे. जिसकी वजह से साहिर के जमन के बाद ही दोनों अलग अलग हो गए. हालांकि, उन्होंने अपनी शिक्षा से समझौता नहीं किया. साल 1934 में, उनके पिता ने दूसरी शादी की और साहिर की मां पर मुक़दमा दायर किया. जिसके चलते साहिर की मां को पैसे की समस्या का सामना करना पड़ा. जबकि उस समय उन्हें साहिर के पिता से सुरक्षा की जरूरत थी.

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उन्होंने लुधियाना (Sahir Ludhianvi Punjab connection) के “सतीश चंदर धवन गवर्नमेंट कॉलेज फॉर बॉयज” में अध्ययन किया, जिसके चलते कॉलेज के सभागार का नाम उनके नाम पर रखा गया. कॉलेज के दिनों में, वह “गज़ल” और “नज़्मों” के लिए बहुत लोकप्रिय थे. हालांकि, कॉलेज के पहले साल में उन्हें प्रिंसिपल के ऑफिस लॉन में एक महिला सहपाठी के साथ मैत्रीपूर्ण होने के लिए निष्कासित कर दिया गया. वर्ष 1943 में, वह लाहौर गए, जहां उन्होंने दयाल सिंह कॉलेज में प्रवेश लिया. वह छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए और वहां उन्होंने साल 1945 में अपनी पहली पुस्तक “तल्खियां” (कविताओं का संग्रह) को प्रकाशित किया.

इन घटनाओ ने साहिर को लुधियाना छोड़ने पर किया मजबूर

एक रोमांटिक क्रांतिकारी, साहिर, जो चार साल से रोल पर थे, को 1941 में कॉलेज छोड़ने के लिए कहा गया था. उर्दू कवि केवल धीर का कहना है कि दो घटनाओं ने कॉलेज के अधिकारियों को साहिर को छोड़ने के लिए कहा. 1941 में साहिर छात्र संघ के अध्यक्ष थे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनकी कविताओं ने अधिकारियों को चिढ़ा दिया. एक अन्य संस्करण यह है कि साहिर को एक लड़की, ईशर कौर के साथ संबंध बनाने और उसके साथ कॉलेज के लॉन में बैठने के लिए कॉलेज से वापस लेने के लिए कहा गया था, प्रिंसिपल हर्वे की असहमति के लिए.

“कल और आयेंगे नगमो की खिलती कलियाँ चुनने वाले,
मुझसे बेहतर कहनेवाले,
तुमसे बेहतर सुननेवाले;
कल कोई उनको याद करे,
क्यूँ कोई मुझको याद करे?
मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यूँ
वक़्त अपना बर्बाद करे?”

धीर का कहना है कि साहिर लुधियाना छोड़कर लाहौर चला गया. “उन्हें फिर से कॉलेज द्वारा दो बार आमंत्रित किया गया – एक बार 1943 में जब उन्होंने एक कविता, नज़र-ए-कॉलेज का पाठ किया, जिसमें उन्होंने अपने निष्कासन को याद किया, जबकि 1970 में कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह में तत्कालीन प्रिंसिपल प्रीतम सिंह, साहिर को एक स्वर्ण पदक प्रदान किया और उन्होंने एक कविता सुनाई, ऐ नई नासल,” धीर कहते हैं.

बॉलीवुड में उठी साहिर की मांग

Sahir Ludhianvi Punjab connection – आपको ये बात जानकर बड़ा ताज्जुब होगा कि हिंदी फिल्मों में धुन पर गीत लिखने का चलन साहिर लुधियानवी ने शुरू किया. देश के पहले ऐसे फिल्मी गीतकार हैं, जिन्होने संगीतकार की धुनों पर गीतों की रचना की. फिल्मी दुनिया में यह चलन साहिर ने ही शुरू किया. इससे पहले गीतकार गाना लिखता था और बाद में संगीतकार उस पर धुन की रचना करते थे. पचास के दशक से पहले इंडस्ट्री में इसी रिवाज का चलन था. लेकिन जब 1951 में एसडी बर्मन ने उनसे संपर्क किया और कहा- ”जनाब एक धुन है जिस पर एक गीत लिखना है”.

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पहले तो साहिर लुधियानवी थोड़ा हैरत में पड़ गए, लेकिन बाद में उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और फिल्म ‘नौजवान’ के लिए ऐसा गीत लिखा, जो अमर गीत बन गया. ये गीत था ”ठंडी हवाएँ लहरा के आए”. इसके बाद साहिर की मांग बढ़ गई. लेकिन उनके बारे में एक रोचक बात यह भी है कि उन्हें फिल्मों में गीत लिखना कतई पसंद नहीं था. ये बात वे अक्सर मुशायरों और बैठकों में खुलकर कहा भी करते थे.

महान शायर के नाम से है आडिटोरियम

कालेज ने अपने इस पूर्व छात्र की फोटो प्रिंसिपल कार्यालय के सामने बरामदे में लगाई हुई है. इसके अलावा कालेज के आडिटोरियम का नाम भी साहिर लुधियानवी के नाम से रखा गया है. इस आडिटोरियम में 400 लोगों के बैठने की व्यवस्था है.

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कालेज के अधिकतर बड़े कार्यक्रम इसी आडिटोरियम में होते थे. हर वर्ष 8 मार्च को साहिर के जन्मदिन पर कालेज में शायरी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जहां पर विभिन्न राज्यों के शायर पहुंचते हैं. इसके अलावा कई बार एक शाम साहिर के नाम गीतों भरी शाम का भी आयोजन किया जाता है.

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