स्वामी प्रणवानंद: 15 वर्षों तक हिमालय में पिस्तौल लेकर घूमने वाले 'भारत के पहले जासूस' की कहानी

By Shashank Dubey | Posted on 16th Mar 2023 | इतिहास के झरोखे से
PRANAVANAND

इस बात को किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है कि भारत एक ऐसा देश है, जहां शुरू से ही साधु/स्वामी-संतों का बहुत महत्व रहा है. वैसे तो साधु(सन्यासी) का मूल उद्देश्य समाज का पथ प्रदर्शन करके उनको धर्म के मार्ग पर चलाना होता है लेकिन भारत में एक ऐसे भी साधु हुए जिन्होंने आजादी से पहले देश की रक्षा के लिए सुदूर हिमालय पर जाकर देश का जासूस बनने का भी काम किया था. जी हां, हम बात कर रहे हैं ‘स्वामी प्रणवानंद’ की. ये एक ऐसे साधु हुए जिन्होंने लोगों का भला तो किया ही साथ ही देश का भी भला किया. एक ऐसे साधु जो एक वैज्ञानिक, एक लेखक, एक वन्यजीव संरक्षक होने के साथ-साथ एक गुप्तचर भी थे? एक ऐसे संत  जो अपने पास रिवॉल्वर भी रखा करते थे? आइए उनके बारे में इस लेख के माध्यम से विस्तार से जानते हैं.

आंध्र प्रदेश से पाकिस्तान के लाहौर में नौकरी तक का सफर

स्वामी प्रणवानंद का जन्म साल 1896 में आन्ध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के एक गाँव में हुआ था उनके बचपन का नाम कनकदंडी वेंकट सोमयाजुलु था.12वीं तक की पढाई पूरी करने के बाद  उन्होंने लाहौर के एंग्लो वैदिक कॉलेज में अपना एडमिशन लिया. जिसे अब सरकारी इस्लामिया कॉलेज के नाम से जाना जाता है.जहाँ कॉलेज की पढाई पूरी होने के बाद लाहौर में ही रेलवे अकाउंट दफ्तर में नौकरी करने लगे. अपने देश भारत वापस आने के बाद वो गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गए. अपने जिले में कांग्रेस पार्टी के एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहे. धीरे-धीरे उनके जीवन में आध्यात्मिक चेतना बढ़ने लगी. स्वामी ज्ञानानंद की प्रेरणा से उन्हें हिमालय के बारे में जानकारी हुई. स्वामी ज्ञानानंद को उस दौर में भारत के प्रमुख परमाणु भौतिकशास्त्रियों में से एक माना जाता है. यहीं से KVS के जीवन में एक नया मोड़ आया. ऋषिकेश में उन्हें नया नाम मिला और वह ब्रह्मचारी प्रणवानंद कहलाए.

ALSO READ: स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग, कोहली-अनुष्का हैं जिनके भक्त, नीमकरोली बाबा की अलौकिक कहानी...

गुरु के पदचिन्हों के किया अनुसरण

अपने गुरु के पदचिह्नों पर चलकर स्वामी प्रणवानंद ने पैदल ही अपनी यात्रा आरम्भ कर दी थी. कश्मीर के रास्ते वह कैलास मानसरोवर के लिए निकले थे, जहां कुछ दूरी उन्होंने घोड़े पर सवार होकर भी तय की थी. प्रणवानंद ने अपनी पहली हिमालय यात्रा 1928 में की थी. साल 1935 से लगातार हर साल 1950 तक प्रणवानंद कैलास की यात्रा करते रहे थे. अपनी यात्राओं के समय उन्होंने खनिज, भूविज्ञान, जलवायु, पक्षियों, झरनों, नदियों जैसे जलस्रोतों आदि के बारे में व्यापक जानकारी जुटाई थी. आपको ये जानकर हैरानी ही कि स्वामी प्रणवानंद ने ही सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और करनाल नदियों के अलग-अलग उद्गम स्थल के विषय में जानकारी दी थी. इससे पहले लोगों का मानना था कि ये सभी कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील से उत्पन्न हैं. उनके सभी निष्कर्षों को साल 1941 के बाद से सर्वे ऑफ इंडिया ने अपने सभी मानचित्रों में भी सम्मिलित कर लिया था.

ALSO READ: अमरिंदर सिंह का 'राजनीतिक स्वार्थ' उनकी राजनीति लील गया.

आजादी के बाद चीन की साजिशों का किया भंडाफोड़

भारत की आजादी के बाद स्वामी प्रणवानंद के कार्यों को सरकार ने मान्यता दी. पूरे देश ने उनकी असहयोग आंदोलन में उनकी सक्रियता और दुर्गम हिमालयी क्षेत्रों में उनके मौलिक शोध को खूब सराहा. उनके लाजवाब कार्यों के चलते  भारत की आजादी के बाद उनको स्वतंत्रता सेनानी पेंशन भी प्राप्त होने लगी थी. हालांकि स्वामी प्रणवानंद ने अपने हिमालय भ्रमण को बंद नहीं किया. वह 1950 से 1954 के दौरान लगातार कैलास मानसरोवर यात्रा करते रहे. उस समय चीन में माओ का राज था और इस क्षेत्र पर कम्युनिस्ट देश की सेना PLA का कब्जा हो चुका था तब भी वह एक गुप्त एजेंट के तौर पर काम करते रहे.

ALSO READ: कैसे दलित बहुजन समाज परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी बने बाबा गाडगे?

ईसाई ख़ुफ़िया एजेंट का निकाला था कला चिटठा

ऐसा कहाँ जाता है कि स्वामी प्रणवानंद की जासूसी के बारे में चीनी खुफिया एजेंट्स को पता चला गया था .जिसके बाद स्वामी साल 1955 में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिला लोट आए थे. जानकारी के अनुसार,  उन्होंने भारत-तिब्बत सीमा पर पाकिस्तान और ईसाई मिशन एजेंटों की भी खुफिया गतिविधियों के विषय में 4000 पेज की सूचना एकत्र की थी.

ALSO READ: PFI के खिलाफ NIA की पहली चार्जशीट, भारत को 'इस्लामिक देश' बनाने वाले इस समूह का किया पर्दाफाश.

रक्षा कोष में दान की रिवाल्वर

कैलाश पर्वत के आसपास का क्षेत्र अधिक खतरनाक था. वहां के लुटेरों को डराने के लिए स्वामी प्रणवानंद हमेशा ही अपने पास 0.25 बोर की रिवॉल्वर रखते थे. इसके बाद उन्होंने 0.30 माउजर पिस्तौल रखना भी आरम्भ कर दिया था. हालांकि साल1962 में उन्होंने चीन के साथ के युद्ध के समय इसे रक्षा कोष में दान में दे दिया था. उस दौर में बड़े ही अवैध तरीके से वनों को काटा जा रहा था. जिस कारण पशु-पक्षियों को भी अधिक परेशानी हो रही थी. दांत, हड्डी, खाल के लिए बाघों को जहर तक दिया जा रहा था. उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से बेजुबान जानवरों के संरक्षण पर बहुत जोर दिया था. उनका ख़ास योगदान इस तरह से रहा कि उन्होंने भारत-तिब्बत और भारत-नेपाल सीमा पर पर्यटन और अनुसंधान के नाम पर विदेशियों की नापाक साजिश के बारे में सरकार को अगाह भी किया था. एक गुप्तचर की तरह ही वो साल 1955 तक खुफिया जानकारियां भारत सरकार तक पहुंचाते रहे थे.   साल 1980 में वह अपनी जन्मभूमि आंध्र प्रदेश लोट गए.

क्या था पैंथर आन्दोलन? दलितों की सामाजिक आजादी से कैसे जुड़ा है यह आन्दोलन...

सरकार ने पद्मश्री से किया सम्मानित

स्वामी प्रणवानंद को साल 1976 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था। साल 1989 में हैदराबाद में 93 वर्ष की आयु में स्वामी प्रणवानंद का निधन हो गया था। भारत के लोगों के साथ-साथ उन्होंने यहां के जीवों की भी रक्षा की थी लेकिन  दुर्भाग्य की बात तो ये है कि आज की पीढ़ी को उनके योगदानों के विषय में कोई विशेष जानकारी ही नहीं हैं.

स्वामी प्रणवानंद हिमालय में घूमने वाले कोई सामान्य साधु नहीं थे, वो वास्तव में एक वैज्ञानिक, लेखक, वन्यजीव संरक्षक आदि थी। जब-जब देश के जासूसों की कहानियों का जिक्र आएगा तब-तब उनका नाम गर्व के साथ लिया जाएगा.

Shashank Dubey
Shashank Dubey
शशांक एक समर्पित लेखक हैं, जो किसी भी विषय पर लिखना पसंद करते हैं। शशांक पॉलिटिक्स, एंटरटेनमेंट, हेल्थ, विदेश, राज्य की खबरों पर एक समान पकड़ रखते हैं। यह नेड्रिक न्यूज में बतौर लेखक काम करते हैं।

Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

अन्य

प्रचलित खबरें

© 2022 Nedrick News. All Rights Reserved.