आजादी से 45 साल पहले ही 'अपने देश' में आरक्षण लागू करने वाले शाहूजी महाराज की कहानी...

By Shashank Dubey | Posted on 15th Mar 2023 | इतिहास के झरोखे से
SHAHUJI MAHARAJ

ग्रीक दार्शनिक प्लेटो ने अपनी चर्चित किताब ‘रिपब्लिक’ में एक ऐसे राजा की कल्पना की है जिसमें दार्शनिक जैसी मानवीय गरिमा, साहस और राजनीतिक श्रेष्ठता एवं बौद्धिकता का मेल हो. उसका कहना था कि ऐसा राजा मानव जाति को तमाम अभिशाप से मुक्त कर सकता है और अंधेरे से निकाल कर रोशनी की ओर ले जा सकता है. और भारत में ऐसे राजाओं की गिनी-चुनी मिसालें ही हैं. ऐसे ही एक राजा का नाम है- छत्रपति शाहूजी महाराज (26 जून, 1874- 6 मई, 1922), जिन्होंने अपने राज्य कोल्हापुर की करीब 90 प्रतिशत आबादी को उन सभी अभिशापों से मुक्त करने के लिए ऐसे ठोस एवं निर्णायक उपाय किए, जो अभिशाप उनके ऊपर जाति व्यवस्था ने लाद रखे थे. शाहूजी महाराज की एक ख्याति ये भी है कि वे छत्रपति शिवाजी महाराज की वंश परंपरा से थे और प्रजापालक राजा होने की विरासत उन्हें शिवाजी महाराज से हासिल हुई थी. डॉ. बी.आर. आंबेडकर के सामाजिक अभियान में भी शाहूजी महाराज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी .

सामाजिक आरक्षण के जनक राजा महाराज

आज से करीब 121 वर्ष पूर्व यानी 26 जुलाई, 1902 में उन्होंने राजकाज के सभी क्षेत्रों में उच्च जातियों का एकछत्र वर्चस्व तोड़ने के लिए पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था. लेकिन यहां ये ध्यान देना जरूरी है कि पिछड़े वर्ग में मराठा, कुनबियों और अन्य समुदायों के साथ दलितों एवं आदिवासियों को भी उन्होंने शामिल किया था. उन्होंने इससे से सम्बंधित जो आदेश जारी किया था, उसमें साफ लिखा है कि पिछड़े वर्ग में ब्राह्मण, प्रभु, शेवाई और पारसी को छोड़कर सभी शामिल हैं.

ALSO READ: क्या था पैंथर आन्दोलन? और दलितों की सामाजिक आजादी से कैसे जुड़ा है ये आन्दोलन...

आरक्षण के फैसले का कई राज्यों ने किया अनुसरण

शाहूजी द्वारा असमानता को खत्म करने एवं न्याय के लिए उठाए गए इस कदम का अनुसरण करते हुए 1918 में मैसूर राज्य ने, 1921 में मद्रास जस्टिस पार्टी ने और 1925 में बाम्बे प्रेसीडेंसी (अब मुंबई) ने आरक्षण लागू किया. ब्रिटिश शासन से आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को लागू संविधान के बाद सिर्फ एससी-एसटी समुदाय को आरक्षण मिल पाया. आजादी के बाद कई राज्यों में पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया गया लेकिन केंद्र सरकार की नौकरियों (1993) और शैक्षणिक संस्थाओं (2006) में पिछड़े वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण का अधिकार काफी देर से मिला.

ASLO READ: सिखों के लिए क्यों सबसे महत्वपूर्ण है जपजी साहिब.

आखिर क्यों लागू किया आरक्षण?

शाहूजी ने आरक्षण क्यों लागू किया इसका सही और सटीक जवाब आपको राजा द्वारा बाम्बे के तत्कालीन गवर्नर लार्ड सिडेनहम को लिखे पत्र में मिलता है. करीब 3 हजार शब्दों के इस पत्र में उन्होंने कोल्हापुर राज्य में जीवन के सभी क्षेत्रों में नीचे से ऊपर तक ब्राह्मणों के पूर्ण वर्चस्व और गैर-ब्राह्मणों की अनदेखी का वर्णन किया. उन्होंने पुरजोर तरीके से यह तर्क दिया है कि गैर-ब्राह्मणों को पृथक प्रतिनिधित्व एवं आरक्षण दिए बिना कोल्हापुर राज्य में न्याय का शासन स्थापित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि गैर-ब्राह्मणों के हित में उठाए जाने वाले हर कदम को नीचे से लेकर ऊपर तक (गांव से लेकर ऊपर के शीर्ष पद तक) नौकरशाह एवं कर्मचारी के रूप में कब्जा जमाए ब्राह्मण लागू नहीं होने देते हैं.


1894 में शाहूजी जब राजा बने तो सामान्य प्रशासन के कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी मौजूद थे. शाहूजी महाराज के निर्देश पर 1902 में अन्य जातियों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू हुआ और 20 वर्षों में स्थिति बदल गई. 1922 में सामान्य प्रशासन के कुल 85 पदों में से 59 पदों पर गैर-ब्राह्मणों अधिकारी नियुक्त थे. शाहूजी द्वारा आरक्षण लागू करने का उद्देश्य न्याय एवं समता आधारित समाज का निर्माण करना था और इसके लिए सामाजिक विविधता जरूरी थी.

ALSO READ: कैसे दलित बहुजन समाज परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी बने बाबा गाडगे?

शिक्षा ही है सामजिक बदलाव का मूल आधार

शाहूजी इस बात से भली भांति अवगत थे कि बिना शिक्षा के पिछड़े वर्गों का उत्थान नहीं हो सकता है. उन्होंने 1912 में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और नि:शुल्क बनाने का निर्णय लिया. 1917-18 तक नि:शुल्क प्राथमिक स्कूलों की संख्या दोगुनी हो गई. इसने शिक्षा के मामले में ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों के अनुपात में निर्णायक परिवर्तन ला दिया.

आरक्षण एवं शिक्षा के साथ जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए शाहूजी ने अनेक कानून बनाए, प्रशासनिक आदेश जारी किए और उनको पूरी तरह लागू कराया, जिसने कोल्हापुर राज्य के सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक संबंधों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया. इसी के चलते शाहूजी के जीवनीकार धनंजय कीर उन्हें एक क्रांतिकारी राजा के रूप में संबोधित करते हैं और अधिकांश अध्येता उन्हें सामाजिक लोकतंत्र का एक आधार स्तंभ कहते हैं.

ALSO READ: बाबा साहेब अंबेडकर और महात्मा गाँधी के 5 विवाद, जिन्हें छिपाने का किया गया प्रयास.

सरकार से 10 कदम आगे की सोच रखते थे शाहूजी महाराज

जिस बंधुआ मजदूरी प्रथा को पूरे भारत के स्तर पर भारत सरकार 1975 में जाकर कर खत्म कर पाई, उस प्रथा को 3 मई 1920 के एक आदेश से शाहूजी ने कोल्हापुर राज्य में खत्म कर दिया. इसके पहले उन्होंने 1919 में महारों से दास श्रमिक के रूप में काम कराने की प्रथा को समाप्त कर दिया था.

इतना ही नहीं, उन्होंने मनु संहिता की मूल आत्मा को उलटते हुए अन्तरजातीय विवाह की अनुमति प्रदान करने के लिए भी कानून पारित कराया. महिलाओं को समता का अधिकार दिलाने के लिए जो हिंदू कोड बिल डॉ. आंबेडकर ने प्रस्तुत किया था, उसका आधार शाहूजी ने 15 अप्रैल 1911 को प्रस्तुत कर दिया था. इसमें उन्होंने विवाह, संपत्ति एवं दत्तक पुत्र-पुत्री के संदर्भ में महिलाओं को समता का अधिकार प्रदान करने की दिशा में ठोस कदम उठाए थे.

छुआछूत का किया उन्मूलन

शाहूजी महाराज ने दलितों और स्त्रियों के अधिकारों के लिए ठोस क़दम उठाए. 1919 में उन्होंने अछूतों को इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल होने का अधिकार दिया. इसके पहले अन्य सार्वजनिक स्थानों की तरह किसी अछूत का अस्पताल में भी प्रवेश वर्जित था.

इसी साल उन्होंने एक आदेश द्वारा प्राइमरी स्कूल से लेकर कॉलेजों तक में दलितों के साथ होने वाले अन्याय और दुर्व्यवहार को समाप्त कर दिया. अब जाति के आधार पर स्कूल में बच्चों के साथ भेदभाव नहीं हो सकता था. इसी तरह उन्होंने सरकारी नौकरियों में दलितों के साथ होने वाले अन्याय और छुआछूत को समाप्त किया. इस निर्णय के पीछे एक घटना मानी जाती है. 

ALSO READ: बाबा साहेब के '7 हाथ', भारत के संविधान के बनने की कहानी.

सामजिक क्रांति के प्रणेता

कोल्हापुर राज्य से अस्पृश्यता का नामो-निशान मिटाने का तो शाहूजी ने संकल्प ही ले लिया था. छुआछूत खत्म करने की अपनी कोशिशों के तहत 15 जनवरी 1919 को उन्होंने आदेश जारी किया कि यदि किसी भी सरकारी संस्थान में ‘अछूत’ कहे जाने वाले लोगों के साथ अस्पृश्यता और असमानता का व्यवहार किया है, और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाया जाता है तो ऐसे अधिकारी-कर्मचारियों को 6 सप्ताह के अंदर इस्तीफा देना होगा.

ALSO READ: PFI के खिलाफ NIA की पहली चार्जशीट, भारत को 'इस्लामिक देश' बनाने वाले इस समूह का किया पर्दाफाश.

विशाल ह्रदय एवं व्यापक विजन: सुप्रीम कोर्ट रिटायर्ड जज पी. बी. सावंत

शाहूजी को विशाल ह्रदय एवं व्यापक विजन वाले एक महान व्यक्तित्व के रूप में याद करते हुए पी बी सावंत कहते हैं कि वे एक असाधारण राजा थे और बुनियादी तौर पर सामान्य जन के साथ खड़े थे. उनका यह भी कहना है कि उनके जीवन, चिंतन एवं कार्यों का सिर्फ एक लक्ष्य था, वह यह कि कैसे दबे-कुचले एवं उत्पीड़ित लोगों की जीवन स्थितियों को बेहतर बनाया जाए. कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने शाहूजी को डॉक्टर ऑफ लॉ (एलएलडी) की मानद उपाधि से सम्मानित किया.

Shashank Dubey
Shashank Dubey
शशांक एक समर्पित लेखक हैं, जो किसी भी विषय पर लिखना पसंद करते हैं। शशांक पॉलिटिक्स, एंटरटेनमेंट, हेल्थ, विदेश, राज्य की खबरों पर एक समान पकड़ रखते हैं। यह नेड्रिक न्यूज में बतौर लेखक काम करते हैं।

Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

अन्य

प्रचलित खबरें

© 2022 Nedrick News. All Rights Reserved.