जानिए हिममानव से जुड़ी सभी जानकारी
साल 2019 में भारतीय सेना (Indian Army) ने हिमालय में ‘येती’ (Yeti) की मौजूद होने का दावा किया था. उनके पैरों के निशान भी पुख्ता सबूत के तौर पर साझा किये थे. सेना ने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से फोटो शेयर करते हुए इस बात की जानकारी दी थी. हमे ‘हिममानव’ की मौजूदगी का एहसास हुआ है. लेकिन इस फोटो को ही एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया था. कुछ लोग इन्हें हनुमान जी का रूप कहते हैं और कुछ ने इन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा बना दिया और ये उसी चुनाव में दबी रह गई उसके बाद इनपर कोई आधिकारिक रिसर्च नहीं हुई. इस ट्वीट में कहा गया था की ‘पहली बार भारतीय सेना की पर्वतारोहण टीम ने 9 अप्रैल 2019 को मकालू बेस कैंप के नजदीक 32×15 इंच वाले हिममानव ‘येति’ के रहस्यमय पैरों के निशान देखे हैं. यह मायावी हिममानव इससे पहले केवल मकालू-बरून नेशनल पार्क में देखा गया था.
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कैसे होते है येती?
ऐसा कहा जाता है कि इन ‘हिममानव’ का इतिहास करीब 900 साल पुराना है. इनके शारीरिक संरचना और आकार को लेकर बहुत सारे किस्से और कहानियां हैं लेकिन इनकी असल कहानी क्या है आजतक किसी को नहीं पता है. लद्दाख में कई सारे मठो के मोंक्स ने इनको देखने का दावा किया था. इसके अलावा नेपाल और तिब्ब्त में भी इन्हें देखे जाने का दावा किया जा चुका है. इनके बारे में ये भी कहा जाता है कि ये विशाल वानर(बन्दर) जैसे होते हैं , जिनके पूरे शरीर में बाल होते हैं. बन्दर की तरह की आकृति वाले ये ‘येती’ दो पैरों से चलते हैंऔर हिमालय की गुफाओं में रहते हैं .
पहली बार 1832 में देखने का दावा
सबसे पहले हिम मानव के बारे जानकारी तब मिली जब 1832 में बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में एक पर्वतारोही बीएच होजशन ने येति के बारे में जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि जब वह हिमालय में ट्रेकिंग कर रहे थे तब उनके गाइड ने एक विशालकाय प्राणी को देखा. जो इंसानों की तरह दो पैरों पर चल रहा थ. जिसके शरीर पर घने लंबे बाल थे. पर्वतारोही बीएच होजशन खुद उस प्राणी को नहीं देखा था लेकिन उन्होंने इस घटना का जिक्र करते हुए उस जीव को येति नाम दिया था. इस तरह की कई सबूत सामने आए हैं.
क्या कहती है डेनियल टेलर की रिपोर्ट
डेनियल टेलर, जिन्होंने पौराणिक येति की खोज में वर्षों बिताए हैं और एक पुस्तक ‘येती: द इकोलॉजी ऑफ ए मिस्ट्री’ लिखी है, का मानना है कि सेना द्वारा लगाए गए पैरों के निशान भालू के भी हो सकते हैं, या फिर एक फुटप्रिंट दूसरे पर ओवरलैप हो सकता है. टेलर ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “यह लगभग निश्चित रूप से हिमालयन ब्लैक बियर है, जिसमें फ्रंटफुट पर हिंद पैर के ओवरप्रिंट हैं, “पैरों के निशान का आकार असाधारण है. यदि केवल एक फुटप्रिंट है, तो यह एक डायनासोर का आकार है. इसलिए यह एक ओवरप्रिंट (ओवरलैप) होना चाहिए, लगभग निश्चित रूप से उर्सुस थिबेटनस (एशियाई काला भालू) हो सकता है, एक मां भालू जिसके पीछे एक बच्चा बच्चा हो.
नेपाल की लोककथाओं में ‘येती’
नेपाल की लोककथाओं में, येति एक “घृणित स्नोमैन” है, जो एक वानर की तरह दिखता है, एक औसत मानव से लंबा है और माना जाता है कि वह हिमालय, साइबेरिया, मध्य और पूर्वी एशिया में रहता है.
क्या कहता है शोध ?
प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी भी पत्रिका में प्रकाशित शोध में हिमालय और तिब्बती पठार में एकत्र किए गए हड्डी, दांत, त्वचा, बाल और मल के नमूनों सहित नौ येती नमूनों का विश्लेषण किया गया. उनमें से एक कुत्ते से निकला. अन्य आठ एशियाई भालू से थे – एक एशियाई काले भालू से, एक हिमालयी भूरे भालू से, और अन्य छह तिब्बती भूरे भालू से. बफेलो कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज में विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक शार्लोट लिंडक्विस्ट ने कहा, “हमारे निष्कर्ष दृढ़ता से सुझाव देते हैं कि येती किंवदंती के जैविक आधार स्थानीय भालू में पाए जा सकते हैं, और हमारा अध्ययन दर्शाता है कि आनुवंशिकी को अन्य, समान रहस्यों को उजागर करने में सक्षम होना चाहिए. लिंडक्विस्ट की टीम येती डीएनए पर शोध करने वाली पहली नहीं थी, लेकिन पिछली परियोजनाओं ने सरल आनुवंशिक विश्लेषण (genetic analysis) चलाया, जिसने महत्वपूर्ण सवालों को अनसुलझा छोड़ दिया. लिंडक्विस्ट और उनके सह-लेखकों ने अपने रिपोर्ट में में लिखा है कि यह अध्ययन असंगत या पौराणिक होमिनिड जैसे प्राणियों से प्राप्त होने वाले नमूनों के अब तक के सबसे कठोर विश्लेषण का प्रतिनिधित्व करता है.
येती के नाम से बिकते हैं ये प्रोडक्ट्स
जैसा कि पहले कहा गया येति हिमालय की संस्कृति का हिस्सा है. आप येति के नाम से हिमालय के आस-पास के क्षेत्रों में कई चीजें बिकती हुई देख सकते हैं. वहां आपको याक और येति नाम के होटल मिलेंगे, बल्कि येति एयरलाइंस नेपाल की बेहतरीन एयरलाइंस में से एक है.
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