केआर नारायणन: गरीबी की गोद से उठ कर बने देश के पहले दलित राष्ट्रपति

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देश में कई राष्ट्रपति ऐसे रहे है जिनकी कहानी किसी राजकुमार से कम नहीं लगती है. वैसे तो हमारे देश में राष्ट्रपति के पास नाम की शक्तियां होती है. लेकिन एक राष्ट्रपति ऐसे भी है, जिन्होंने नाम का राष्ट्रपति बनाना मंजूर नहीं किया. आज हम एक ऐसे ही राष्ट्रपति की कहानी बताने जा रहे है. यह कहानी है, 1997 में बने पहले दलित राष्ट्रपति कोचेरिल रमन नारायणन की, जिन्होंने अपने कामों से कई बार दिखाया है कि वह नाम के राष्ट्रपति नहीं है.

दलित परिवार में पैदा होने की वजह से उनके साथ जातिगत भेदभाव हुए थे, उनकी बहन का कहना है कि के आर नारायण बचपन में उत्पीडन सेबच गए गए थे. लेकिन त्रावणकोर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने पहली बार जातिवाद का सामना किया. जब वह कॉलेज के बाद नौकरी करना चाहते थे, तो उनकी जाति की वजह से उनको उनकी काबिलियत के हिसाब से नौकरी नहीं मिल रही थी.

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गरीबी की गोद से उठ कर देश के पहला नागरिक (राष्ट्रपति) तक का सफ़र

कोचेरिल रमन नारायणन ने गरीबी की गोद से उठ कर देश का पहला नागरिक (राष्ट्रपति) तक का सफ़र तय किया है. इनकी कहानी आज लाखो करोड़ो के लिए आदर्श है. के आर नारायणन जी बेसक से दलित परिवार में पैदा हुए हो लेकिन उनकी स्कूली शिक्षा से लकरे लंदन में स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स तक की पढाई में कहीं भी उनकी जाति का योगदान नहीं रहा है. इन्होने भारतीय विदेश सेवा से रिटायर्ड होकर भारतीय राजनीति में आए थे. के आर नारायणन तीन बार केरल के सांसद रहे, उसके बाद राजीव गांधी की सरकार में उपराष्ट्रपति रहे. जिसके बाद 1997 में वह देश के पहले दलित  राष्ट्रपति बने.

इंडिया टाइम्स की अनुसार के आर नारायणन जी ने विदेश में नौकरी पूरी करने के बाद कांग्रेस की राजनेता इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय राजनीति में आए थे. और कांग्रेस में शामिल हो गए थे. के आर नारायणन जी ने 64 साल की उम्र में पहला चुनाव लड़ा था. यह केरल की ओट्टापलल सीट से लोकसभा के लिए चुने गए थे. के आर नारायणन जी ने इस सीट पर तीन बार चुनाव जीता था. जिसके बाद वह कैबिनेट मंत्री बने. नारायणन जी ने कांग्रेस सरकार में विदेश मंत्रालय के साथ ही विज्ञान एवं तकनीकी विभाग भी संभाला. जिसके बाद 1989 में कांग्रेस पार्टी सत्ता से चली गयी.

दलित होने की वजह से उच्च पद नहीं मिला

राजीव गांधी की सरकार में जब के आर नारायणन जी को उपराष्ट्रपति बनाया गया था तो चुनाव के दौरान उनकी जाति की वजह से के आर नारायणन चर्चा में बने हुए थे. के आर नारायणन ने पत्रकारों को कहा की “मेरी कास्ट बैकग्राउंड पर ज्यादा जोर ना दे”. वहीं दूसरी तरफ केआर नारायणन उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद उनके भाई का कहना था कि “दलित होने की वजह से उच्च पढ़ नहीं मिला” बल्कि उनकी काबिलियत की वजह से मिला है. उन्होंने कहा कि उनका भाई ईमानदारी, सच्चाई और न्याय का रोल मॉडल है.

ऐसे ही एक बार विश्व हिंदू परिषद् ने के आर नारायणन जी के दलित होने को लेकर सवाल उठाए थे. उनका कहना था कि नारायणन ने जीवन भर दलितों के लिए कुछ नहीं किया है. के आर नारायणन जी ना तो वह डॉ. भीमराव अंबेडकर और ना ही महात्मा गांधी के अनुयायी हैं. उस समय के आर नारायण जी का विरोध करने वालों में SCST सांसद भी शामिल था. 150 सांसदों ने इसको लेकर एक प्रस्ताव भी पास किया . उस दौरान रामविलास पासवान ने केआर नारायणन का समर्थन किया था.

वह देश के पहले दलित राष्ट्रपति होने के साथ पहले ऐसे राष्ट्रपति भी थी इन्होने अपनी शक्तियों का उपयोग किया था, बिना केंद्र सरकार के दबाव में आए अपने काम किए थे.

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