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Karl Bushby: ना ट्रेन, ना प्लेन, ना बाइक… बस पैर! कार्ल बुशबी का 27 साल लंबी पैदल यात्रा, 58,000 KM का वो सफर, जो अब अपने आखिरी मोड़ पर है

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Karl Bushby: दुनिया में आज जहां लोग कुछ किलोमीटर दूर जाने के लिए भी वाहन का सहारा लेते हैं, वहीं इंग्लैंड का एक शख्स ऐसा भी है जिसने तय किया है कि वो पूरी दुनिया का चक्कर सिर्फ पैदल चलकर लगाएगा, वो भी बिना एक बार भी किसी गाड़ी या किसी साधन का इस्तेमाल किए। इस असंभव-सी लगने वाली यात्रा पर निकले हैं कार्ल बुशबी, जो पूर्व ब्रिटिश पैराट्रूपर रहे हैं और आज उनकी उम्र 56 साल है। लेकिन हौसला ऐसा कि पिछले 27 सालों से लगातार चल रहे हैं — सचमुच।

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इस बेहद अनोखी और अद्भुत यात्रा को कार्ल ने नाम दिया है “गोलियथ एक्सपीडिशन”, जो उन्होंने 1 नवंबर 1998 को चिली के पुंटा एरेनास से शुरू की थी। उनका एक ही नियम है कोई भी यांत्रिक या जल परिवहन का उपयोग नहीं करना, चाहे रास्ता कितना ही कठिन क्यों न हो।

कहां से शुरू, कहां तक पहुँचे? (Karl Bushby)

इस 58,000 किलोमीटर की महायात्रा में अब तक कार्ल बुशबी दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, एशिया और अब यूरोप तक का सफर पैदल ही तय कर चुके हैं। वे अभी तुर्की से होते हुए यूरोप में प्रवेश कर चुके हैं और अब अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं – अपने घर हुल, इंग्लैंड

 

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अब बस एक अंतिम बाधा बची है इंग्लिश चैनल, जिसे पार करना आसान नहीं। क्योंकि बुशबी ने ये तय किया है कि वे पैदल ही दुनिया का चक्कर लगाकर घर लौटेंगे, ऐसे में उन्हें न तो नाव का सहारा लेना है और न ही हवाई यात्रा का। और चैनल टनल से पैदल चलना भी कानूनन मना है। इसीलिए अब वे ब्रिटिश और फ्रेंच अधिकारियों से सर्विस टनल से गुजरने की अनुमति मांग रहे हैं।

हर कदम पर मुश्किलें

उनकी इस यात्रा में सिर्फ लंबा रास्ता ही नहीं, बल्कि खतरनाक हालात, राजनीतिक सीमाएं, वीजा समस्याएं, फंडिंग की कमी और कई बार जीवन पर संकट तक आ चुका है। लेकिन कार्ल ने कभी हार नहीं मानी।

डेरियन गैप (कोलंबिया-पनामा बॉर्डर) जैसे गुरिल्ला प्रभावित, दलदली और घने जंगलों को पार करना, बेरिंग स्ट्रेट (अमेरिका और रूस के बीच बर्फ से ढका समुद्र) को पैदल पार करना और अब इंग्लिश चैनल जैसे अद्भुत बाधाएं  ये सभी इस यात्रा को ऐतिहासिक बनाते हैं।

बेरिंग स्ट्रेट पार करते वक्त उन्हें और उनके साथी दिमित्री कीफर को रूसी सेना ने अवैध प्रवेश के कारण हिरासत में ले लिया था। बाद में ब्रिटिश डिप्टी पीएम और रूसी अरबपति रोमन अब्रामोविच की मदद से उन्हें छोड़ा गया।

जब तैरकर पार किया समुद्र

2024 में कार्ल के सामने एक नई समस्या आई – ईरान और रूस में प्रवेश नहीं मिल पा रहा था, ऐसे में उन्होंने एक असंभव सा फैसला किया: कैस्पियन सागर को तैरकर पार करना। 179 मील की यह दूरी उन्होंने सह-यात्री एंजेला मैक्सवेल के साथ मिलकर 31 दिनों में पूरी की। तैरना उनका मजबूत पक्ष नहीं था, लेकिन उन्होंने इसे भी कर दिखाया।

इसके बाद वे अज़रबैजान और फिर तुर्की पहुंचे। तुर्की से यूरोप में कदम रखते हुए उन्होंने 2 मई 2025 को इस्तांबुल के बोसफोरस ब्रिज को पार किया। लेकिन जैसे ही वो यूरोप में दाखिल हुए, वीजा की समय सीमा खत्म होने के कारण उन्हें उसी दिन फ्लाइट से तुर्की छोड़ना पड़ा। फिर तीन महीने का इंतज़ार करके वे दोबारा इस्तांबुल लौटे और अब यूरोप के अंतिम सफर की तैयारी कर रहे हैं।

यूरोप की अंतिम यात्रा

अब कार्ल बुशबी की योजना है कि वे तुर्की से होते हुए बुल्गारिया, रोमानिया, हंगरी, ऑस्ट्रिया, जर्मनी और फ्रांस को पार करके इंग्लैंड लौटेंगे। अनुमान है कि वे सितंबर 2026 तक अपने गृहनगर हुल पहुँच जाएंगे — 27 साल बाद, पूरी दुनिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा को पूरा करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में।

परिवार और भावनाओं की जंग

कार्ल का कहना है कि यह यात्रा न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी बेहद कठिन रही है। उन्होंने BBC से बातचीत में कहा —

“जब मैं 1998 में पहला कदम रखा, तब मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे करूंगा। लेकिन आज, इतने सालों बाद, अब ये सोचकर अजीब लगता है कि जब घर पहुँच जाऊंगा, तो मेरी ज़िंदगी का मकसद जैसे खत्म हो जाएगा।”

वे मानते हैं कि परिवार से दोबारा मिलना एक खुशी और चुनौती दोनों होगा – क्योंकि इतने सालों में बहुत कुछ बदल चुका है।

कौन हैं कार्ल बुशबी?

कार्ल बुशबी का जन्म 30 मार्च 1969 को इंग्लैंड के हल (Hull) शहर में हुआ था। महज 16 साल की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश सेना जॉइन कर ली और पैराशूट रेजिमेंट की तीसरी बटालियन में 11 साल तक सेवा दी। सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी को नए रूप में ढाल लिया एक लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और पेशेवर एडवेंचरर के तौर पर। उनकी सबसे बड़ी पहचान बनी ‘गोलियथ अभियान’, जिसमें वे बिना किसी वाहन के पूरी दुनिया की परिक्रमा पैदल करने का मिशन लेकर निकले हैं। यह यात्रा उनके जीवन का न सिर्फ सबसे बड़ा साहसिक कदम है, बल्कि अब यह उनकी पहचान भी बन चुकी है।

क्या है ‘गोलियथ अभियान’?

इस अभियान का उद्देश्य है बिना एक भी यांत्रिक साधन के दुनिया का पूरा चक्कर लगाना। कार्ल न केवल पैदल चलते हैं, बल्कि अपने सामान को भी एक हाथ से खींचने वाली गाड़ी में रखते हैं, जिसे उन्होंने ‘द बीस्ट’ नाम दिया है।

आखिरी कदम की प्रतीक्षा

अब बस इंग्लिश चैनल पार करना बाकी है और फिर कार्ल बुशबी अपने घर लौटेंगे। लेकिन ये सफर सिर्फ उनका नहीं है, बल्कि उन लाखों लोगों का है जो सपने देखते हैं और उन्हें साकार करने के लिए हर चुनौती का सामना करते हैं।

जैसा कि बुशबी खुद कहते हैं —

“आप जब एक ऐसे रास्ते पर चल रहे होते हैं जिसका कोई अंत नहीं दिखता, तब केवल हिम्मत ही आपका रास्ता बनाती है।”

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