Day-Night In Space: अंतरिक्ष में दिन में 16 बार निकलता है सूरज, जानें कैसी होती है एस्ट्रोनॉट्स की नींद पूरी?

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Day-Night In Space: भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला ने देश का नाम रोशन करते हुए अंतरिक्ष में कदम रख दिया है। 28 घंटे की लंबी अंतरिक्ष यात्रा पूरी कर वे गुरुवार को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में सफलतापूर्वक दाखिल हुए। यह उपलब्धि न सिर्फ उनके लिए गर्व का क्षण है बल्कि पूरे भारत के लिए भी एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। ISS में उनका मिशन अब शुरू हो चुका है, जहां उन्हें वैज्ञानिक रिसर्च, तकनीकी मेंटेनेंस और शरीर की फिटनेस बनाए रखने जैसे कई ज़िम्मेदार कार्य निभाने हैं।

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अंतरिक्ष में नींद और शेड्यूल कैसा होता है? (Day-Night In Space)

ISS धरती से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर स्थित है और लोअर अर्थ ऑर्बिट में 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से परिक्रमा करता है। इसका मतलब है कि हर 90 मिनट में यह धरती का एक चक्कर पूरा कर लेता है और अंतरिक्ष यात्री दिन में करीब 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुभव करते हैं। यह स्थिति नींद और समय की धारणा को चुनौती देती है।

इसलिए ISS पर काम का शेड्यूल ‘कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम’ (UTC) के अनुसार तय किया जाता है। अंतरिक्ष यात्री सुबह 6 बजे दिन की शुरुआत करते हैं और एक निर्धारित समय पर ही सोते हैं। नींद के लिए वे विशेष स्लीपिंग बैग्स का उपयोग करते हैं जो स्टेशन की दीवारों पर लगाए जाते हैं, क्योंकि वहां गुरुत्वाकर्षण नहीं होता, इसलिए पारंपरिक बेड काम नहीं करते। खिड़कियों पर शेड्स लगाकर तेज़ रोशनी को रोका जाता है ताकि नींद में बाधा न आए।

कड़ी मेहनत का हिस्सा है अंतरिक्ष

ISS पर काम का समय आमतौर पर 8 से 10 घंटे का होता है जिसमें वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ-साथ स्टेशन की निगरानी और सुधार का कार्य किया जाता है। साथ ही हर दिन दो घंटे की एक्सरसाइज अनिवार्य होती है ताकि शून्य गुरुत्वाकर्षण का शरीर पर नकारात्मक असर न हो—जैसे मसल्स का कमजोर होना या हड्डियों की ताकत कम होना।

इनके अलावा एस्ट्रोनॉट्स की दिनचर्या में ग्राउंड कंट्रोल से बातचीत, डाटा रिपोर्टिंग और आपसी समन्वय भी शामिल होता है। यह एक टीम प्रयास है जिसमें अनुशासन और समय का कठोर पालन बहुत जरूरी होता है।

खानपान और मनोरंजन की व्यवस्था

अंतरिक्ष में खाना भी खास होता है। वहां मिलने वाला भोजन फ्रीज-ड्राइड और वैक्यूम पैक्ड होता है, जैसे सूखे फल, चावल या प्रोटीन से भरपूर स्नैक्स। इन्हें विशेष ओवन में गर्म किया जाता है। पानी की व्यवस्था रिसाइक्लिंग सिस्टम के ज़रिए की जाती है, ताकि सीमित संसाधनों में भी पर्याप्त जल उपलब्ध रहे।

तनाव और अकेलेपन से बचने के लिए एस्ट्रोनॉट्स किताबें पढ़ते हैं, म्यूजिक सुनते हैं, और धरती की खूबसूरत तस्वीरें खींचते हैं। वे समय-समय पर अपने परिवार से भी संपर्क करते हैं ताकि भावनात्मक संतुलन बना रहे और मानसिक थकान कम हो।

भारत के लिए गर्व का क्षण

विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला की यह उपलब्धि सिर्फ एक अंतरिक्ष मिशन नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी क्षमता और अंतरिक्ष विज्ञान में बढ़ते कदमों का प्रमाण है। उनका यह योगदान आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देगा कि सीमाएं चाहे धरती की हों या आकाश की, भारतीय युवा उन्हें पार करने का माद्दा रखते हैं।

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