कहानी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी लाल बहादुर शास्त्री की

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लाल बहादुर शास्त्री की कहानी 

नेहरू जी की मृत्यु के कारण प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किये गए लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे जिनका कार्यकाल(teanure) तो मात्र 18 महीने का था लेकिन उनके कार्य किसी महान पुरुष से कम नहीं थे। आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले वो एक महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने “जय जवान, जय किसान” (Jai Jawan Jai Kisan)  दिया था। 1965 में शास्त्री जी ने भारत-पाक युद्ध  (Indo-Pak War) का नेतृत्व भी किया था, उन्हें मरणोपरान्त (Posthumously) 1966 में  “भारत रत्न” (Bharat Ratan) पुरस्कार मिला था।  

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शुरूआती जिंदगी और संघर्ष 

लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का जन्म 2 October 1904 को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी (Varanasi) में एक छोटे से गाँव मुगलसराय में हुआ था उनकी माता का नाम राम दुलारी था. पढ़ाई लिखाई में अच्छा होने के बावजूद भी स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) में भाग लेने के लिए उन्होंने स्कूल की शिक्षा छोड़ दी। इनके पिता पेशे से एक शिक्षक (Teacher) थे इसलिए लोग उन्हें मुंशी जी कहकर बुलाते थे। लाल बहादुर शास्त्री के सर से पिता का साया तभी उठ गया गया जब इनकी उम्र (Age) केवल 1 वर्ष थी ऐसे में पिता की गैर- मौजूदगी में इनकी माता राम दुलारी ने ही अपनी दो बेटियों के साथ शास्त्री का जैसे-तैसे पालन पोषण किया। शुरुआत की पढ़ाई भी गांव के ही एक स्कूल से की थी और अपनी स्नातक की पढ़ाई उन्होंने हरिश्चंद्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ से संस्कृत से की, जिसके बाद उन्हें शास्त्री की उपाधि मिली और तभी  से उनके नाम के बाद शास्त्री लगाया जाने लगा। 1928 में इनकी शादी ललिता शास्त्री से हुई जिनकी 6 संताने पैदा हुई। 

Dominant राजनैतिक (Political) करियर

जिस उम्र में आज के युवा अय्याशी और मौज-मस्ती में लगे रहते हैं उस उम्र (17) में इस महान नेता ने असहयोग आंदोलन (Asahyog Andolan) का नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार(British Government) का जमकर विरोध किया था जिसमे महात्मा गाँधी उपनिवेशवाद (Colonialism) को खत्म करने की मांग कर रहे थे। सन 1921 में बनायीं गई ” द सर्विस ऑफ द पीपल सोसाइटी” (The Service of the People Society) से जुड़ गए और 1930 में महात्मा गांधी के साथ दोबारा सविनय अवज्ञा(Savinay Awagya) आंदोलन  से जुड़े और ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जबरन लगाए गए करों (TAX) का भरपाया न करने की मांग उठाई थी

जानकारी के लिए बता दें कि इस सविनय अवज्ञा आंदोलन की 1942 के “भारतीय छोड़ो आंदोलन” में अहम् भूमिका थी. इस भारत छोड़ो आंदोलन में ही युवा लाल बहादुर शास्त्री ने “करो या मारो” के नारे को “मरो या मारो’ में बदल दिया फिर क्या था आंदोलन में एक चिंगारी की जरूरत थी जिसे इस नारे ने पूरी कर दी और फिर क्या अब ये आंदोलन अपने हक और अपनी विरासत की मांग में बदल गया, हालांकि इस आंदोलन के बाद Shastri  को 1 साल के लिए जेल (Jail) की भी हवा खानी पड़ी थी। देश आजादी के बाद जब उत्तरप्रदेश में गोविन्द बल्लभ पंत(Govind Ballabh Pant) को यूपी का मुख्यमंत्री (Chief Minister) बनाया गया तो इनके बहादुरी को देखते हुए इन्हे संसदीय सचिव (Parliamentary Secretary)  बनाया गया था और फिर उसी के ठीक कुछ वक़्त बाद उन्ही के मंत्रिमंडल में पुलिस विभाग और परिवहन का मंत्री बनाया गया था। 

मंत्रिमंडल से प्रधानमंत्री तक का सफर 

लाल बहादुर शास्त्री शुरू से ही कांग्रेस पार्टी का हिस्सा थे क्योंकि आजादी के बाद अस्तित्व (Existence) में सिर्फ कांग्रेस थी। शास्त्री उस वक्त पार्टी में रहकर आम चुनाव (General election) में महासचिव की भूमिका निभा रहे थे और उसमे कांग्रेस ने एक ऐतिहासिक जीत हासिल की थी उसके बाद साल 1952 में हुए आम चुनाव में उन्हें मंत्रिमंडल में इन्हे नियुक्त (Appointed) कर दिया गया. मंत्रिमंडल में रहकर उन्होंने रेलवे मंत्री (Railway Minister) के रूप में कार्यभार संभाला था लेकिन साल 1926 में हुई एक दुर्घटना की जिम्मेदारी लेते हुए इस पद से शास्त्री ने इस्तीफ़ा(resignation) दे दिया। कुछ वक़्त बाद जब दोबारा पार्टी में वापस लौटे तो इन्हे गृहमंत्री(Home Minister) का पद सौंपा गया और 1962 में होने वाले आम चुनाव के लिए जमकर प्रचार प्रसार किया था। 1962 में मिली जीत के बाद पार्टी के जाने माने नेता Pandit Jawaharlal Nehru को  प्रधानमंत्री पद का जिम्मा सौंपा गया लेकिन साल 1964 में अचानक मृत्यु के बाद तत्कालीन (contemporaneous) लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया था. पीएम बनने के अगले साल ही 1965 में ही पाक ने भारत पर हमला किया था तो शास्त्री ने ही भारत की ओर से युद्ध का नेतृत्व किया था 

भारत के पक्ष में लिए ऐतिहासिक फैसले 

भारत के खाद्य उत्पादन (food production) को बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित(Underline) करते हुए, शास्त्री ने 1965 में भारत में हरित क्रांति (Green Revolution) को भी बढ़ावा दिया। इससे खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई, विशेष रूप से पंजाब(Punjab), हरियाणा(Hariyana) और उत्तर प्रदेश में। इन्होने प्रधानमंत्री बनने के समय ही शपथ (Pledge) ली थी की उनका सबसे पहला कर्त्तव्य यह रहेगा की भारत में खाद्यान मूल्यों (food grain prices) में कमी लाएंगे जिससे की आम जिंदगी आसान हो सके और ऐसा करने में वो सफल भी रहे। आजादी के बाद भारत की आर्थिक स्थिति (economic condition) बहुत कमजोर थी ऐसे में पूँजीपति (capitalist) देश पर हावी होना चाहते थे और दुश्मन देश हम पर आक्रमण (Attack) करने की फिराक में रहते थे ऐसे में मजबूती से खड़े होकर उनका सामना करने वाले प्रधानमंत्री कोई और नहीं लाल बहादुर शास्त्री थे .

भारत के सबसे बड़े नागरिक 

देश के लिए उनकी असाधारण सेवाओं (extraordinary services) के लिए उन्हें वर्ष 1966 में भारत रत्न से  सम्मानित किया गया, मरणोपरांत सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति थे. परिवहन मंत्री रहते शास्त्री ने महिलाओं के प्रोत्साहन के लिए पहली बार देश में महिला कंडक्टर (Lady Conducter) की नियुक्ति करके एक नई पहल शुरू की थी।

मौत अभी भी बनी है रहस्य 

11 जनवरी 1966 यानि की आज ही के दिन लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु (Death) हुई थी और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था लेकिन इनकी मृत्यु का राज (Mystery) भी उन्ही के साथ दफ़न (buried) हो गया क्योंकि इनकी मृत्यु कैसे हुई किसी को नहीं पता कुछ कहते हैं की दिल का दौरा (heart attack) पड़ने से मृत्यु हुई और कुछ कहते हैं की इनके दुश्मनों ने इन्हें जहर (Poison) देकर मारा था और इस बात की पुष्टि को मजबूती तब मिली जब इनकी मृत्यु के बाद उनकी बॉडी (Body) का पोस्टमार्टम (post mortem) भी नहीं हुआ था। ऐसे में आज भी इनकी मौत को लेकर जनता के अलग अलग मत हैं। इस मामले में आपकी क्या राय है  कमेंट करके जरूर बताएं।

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