सिखों के लिए सबसे बड़ा तीर्थ स्थल अमृतसर का स्वर्ण मंदिर
जैसा कि हिंदुओं के लिए हरिद्वार(Hindu Haridwar ) है, यहूदियों और ईसाइयों (Jews and Christians) के लिए यरूशलम (Jerusalem), मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना ( muslim Mecca and Medina), वैसे ही सिखों के लिए अमृतसर का स्वर्ण मंदिर (Amritsar’s Golden Temple for Sikhs) सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है. एक सुन्दर सरोवर के बीच बना भक्ति और भावना बिखेरने वाला ये सोने का महल श्री हरमंदिर साहिब गुरूद्वारा (Shri Harmandir Sahib Gurudwara) सिखों की आस्था के साथ-साथ देश-विदेशों के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. आज बात इस खूबसूरत गुरूद्वारे के इतिहस की करेंगे जो की अमृतसर (Amritsar), पंजाब (Punjab) शहर, भारत (Bharat)में स्थित है। भारत के इतिहस में श्री हरमंदिर साहिब गुरूद्वारा की कहानी (Story of Sri Harmandir Sahib Gurdwara) के कुछ अध्यय काले अक्षरों में लीन है. दरअसल, श्री हरमंदिर साहिब गुरूद्वारा यानि स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट करने की कोशिश की गयी लेकिन सिखों की श्रध्दा ने इसे अपनी हिम्मत और बहादुरी से हर बार एक अद्भुत रूप दिया.
जानिए गोल्डन टेम्पल का इतिहास
अमृतसर के गोल्डन टेम्पल (Golden Temple ) का अस्तित्व साढ़े चार सौ साल पुराना है और कहा जाता है कि इस गुरुद्वारे की नींव भी एक मुसलमान ने रखी थी. बात साल 1577 की, जब सिखों के चौथे गुरू, गुरु राम दास जी (Guru Ram Das Ji) ने 1577 में 500 बीघा में लाहौर के एक सूफी सन्त मियां मीर जी (sufi saint mian mir ji) से इस गुरुद्वारे की नींव रखवाई और पांचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी (Guru Arjan Dev Ji) ने इस मंदिर की स्थापना की. वहीं इस मंदिर का निर्माण 1581 में शुरू हुआ और इस मंदिर के पहले संस्करण को पूरा करने में आठ साल लग गए और पहली बार 16 अगस्त, 1604 ई. को श्री गुरु ग्रंथ साहिब को यहाँ पर स्थापित किया गया।
इस वजह से बनाये गये चार दरवाजे
वहीं इस गुरुद्वारे के चारों ओर दरवाजे (4 doors around the gurudwara) हैं, जो चारों दिशाओं में खुलते हैं और ये चारों दरवाजे इस बात का प्रतीक हैं कि इस गुरुद्वारे के दरवाजे समाज के सभी चार जातियों के लिए खुले हैं. यहाँ हर जाति, धर्म, लिंग, भाषा, और देश का नागरिक आ सकता है और दर्शन कर सकता है.
पहले सफेद मार्बल का था ये मंदिर
शुरुआती दिनों में ये मंदिर सुनहरा नहीं था। मंदिर को पहले पत्थर और ईंटो से बनाया गया था और बाद में इसमें सफेद मार्बल का इस्तेमाल किया गया था. वक़्त बितता गया और करीब 2 शताब्दी के बाद सोने की चादर से इसे स्वर्ण मंदिर में तबदिल कर दिया गया श्री हरमंदिर साहिब गुरूद्वारे को स्वर्ण मंदिर बनने से पहले तक कईयों बार नष्ट किया गया लेकिन भक्ति और आस्था के कारण हिन्दूओं और सिक्खों ने इसे दोबारा बनाया।
बात 17वीं सदी से जब हरमंदिर साहिब को किसी उग्र गुट द्वारा नष्ट कर दिया गया तब सदी के महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया (Maharaj Sardar Jassa Singh Ahluwalia) द्वारा दोबारा इस गुरूद्वारे को बनावाया गया।
अफगा़न सेना ने किया पूरी तरह नष्ट
फिर 19वीं शताब्दी में अफगा़न सेना हमलावर (afghan army attackers) हो गयी और इसे पूरी तरह नष्ट कर डाला. जिसके बाद सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह (Sikh ruler Maharaja Ranjit Singh) ने इस मंदिर का फिर से निर्माण किया और इस मंदिर को संगमरमर और सोने की परत से सजा दिया और तब श्री हरमंदिर साहिब गुरूद्वारे को स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा.
महाराजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण मंदिर पर परत चढाने में केवल 7 से 9 परतों का ही इस्तेमाल किया था। लेकिन धीरे-धीरे नए परिवर्तन के दौरान मंदिर पर 24 परतें चढ़ाई गई और 90 के दशक में इसे 500 किलोग्राम से भी अधिक सोने के साथ पुनर्निर्मित किया गया और आज के वक़्त में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा पर चढ़े सोने की कीमत 140 करोड़ से भी अधिक है.
श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा सरोवर के बीच में मानव निर्मित द्वीप पर बना हुआ है। ये मंदिर एक पुल द्वारा किनारे से जुड़ा हुआ है और मंदिर से 100 मी. की दूरी पर स्वर्ण जड़ित, अकाल तख्त हैं जिसे ‘छठे गुरु का सिंहासन कहा जाता है।
1984 में अकाल तख्त को नुकसान
फिर शुरुआत हुई साल 1984 की जब एक बार फिर श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की बेअदबी की गयी. भारत के इतिहास के पन्नों में ये अध्य काले अक्षरों में आज भी दर्ज हैं. वो तारिख थी 3 जून से 6 जून तक की, जब ऑपरेशन ब्लू स्टार (operation blue star )चलाया जिसकी वजह से अकाल तख्त को काफी नुकसान पहुंचा और उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Pm Indira gandhi )को सिख विरोधी मान लिया गया।
गिनीज बुक में दर्ज हुआ नाम
वहीं इस मंदिर को स्वर्ण मंदिर इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारे पर 24 कैरेट सोने की पत्तियों (24 karat gold leaves) से बनायीं गयी है और यही सोने की चादर इस गुरूद्वारे की सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं और सुंदरता देखते हुए श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे का नाम गिनीज बुक (Guinness Book) में भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो चुका है.