17 बार तबाह होने के बाद भी गर्व से लहरा रहा है सोमनाथ मंदिर का पताका

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Somnath Darshan – गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित सोमनाथ मंदिर की गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है. इस मंदिर की भव्यता ही कुछ ऐसी है कि यहां लाखों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालुओं के साथ विभिन्न धर्मों से संबंध रखने वाले विदेशी सैलानी भी आते हैं. इसी वजह से मंदिर में सिर्फ हिंदुओं को प्रवेश देने का मामला विवाद का कारण भी बन रहा है. इसी क्रम में हम आज हम बात कर रहे हैं, भव्य सोमनाथ मंदिर के इतिहास की.

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इतिहासकारों की मानें तो इसे 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण कराया गया. प्राचीन भारतीय इतिहास और आधुनिक भारत के इतिहास में सोमनाथ मंदिर को वर्ष 1024 में महमूद गजनवी ने तहस-नहस कर दिया था. मूर्ति को तोड़ने से लेकर यहां पर चढ़े सोने-चांदी तक के सभी आभूषणों को लूट लिया गया था. इतना ही नहीं वह हीरे-जवाहरातों को भी लूटकर अपने देश गजनी लेकर चला गया था. साथ ही गजनबी ने यहां के शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास भी किया था. हालांकि, शिवलिंग के न टूटने पर गजनबी ने आस-पास आग लगवा दी थी.

सरदार पटेल ने करवाया था पुनर्निर्माण

स्वतंत्र भारत की एक प्रमुख परियोजना में से सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण भी एक रही है. मौजूदा मंदिर का पुनर्निर्माण स्वतंत्रता के बाद लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1951 में करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था. बता दें कि जूनागढ़ रियासत को भारत का हिस्सा बनाने के बाद तत्कालीन भारत के गृहमंत्री सरदार पटेल ने जुलाई 1947 में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया था.

जनता से इकठ्ठा किये थे पैसे – Somnath Darshan

सोमनाथ मंदिर को फिर से बनवाने का प्रस्ताव लेकर सरदार पटेल महात्मा गांधी के पास गए थे. गांधी जी ने इस प्रस्ताव की तारीफ की और जनता से धन इकट्ठआ करने का सुझाव दिया. सरदार पटेल की मृत्यु के बाद मंदिर पुनर्निर्माण का काम के एम मुंशी के निर्देशन में पूरा हुआ था. मुंशी उस समय भारत सरकार के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री थे.

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सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, स्वतंत्र भारत की सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित परियोजना के रूप में जाना जाता है. जिसे सोमनाथ महा मेरू प्रसाद के नाम से जाना जाता है, के काम को पारंपरिक भारतीय नागर शैली के मंदिरों के डिजाइन बनाने में महारत हासिल सोमपुरा परिवार ने ही अंजाम दिया था.

सोमनाथ मंदिर के टूटने और बनने का  इतिहास

सबसे पहले इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व यह अस्तित्व में था। इसी जगह पर दूसरी बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था। फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया।

इसके बाद महमूद गजनवी ने सन् 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। तब मंदिर की रक्षा के लिए निहत्‍थे हजारों लोग मारे गए थे। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे।

महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था.

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Somnath Darshan – सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्‍फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया

बाद में मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया.

मंदिर देख गजनबी भी रह गया था दंग

कहते हैं कि सोमनाथ (Somnath Darshan) के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। यह एक कौतुहल का विषय था. जानकारों के अनुसार यह वास्तुकला का एक नायाब नमूना था. इसका शिवलिंग चुम्बक की शक्ति से हवा में ही स्थि‍त था. कहते हैं कि महमूद गजनबी इसे देखकर दंग रह गया था.

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