मनमोहन, खड़गे से लेकर नड्डा तक, भारत की राजनीति में 'रोबोट' का खेल

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‘मैं भी रोबोट, तुम भी रोबोट. मैं भी पिंच करने पर चलता हूं तुम भी पिंच करने पर चलते हो. मैं भी अपने मालिकों के इशारे पर दुम हिलाता हूं, तुम भी अपने मालिकों के इशारे पर ही दुम हिलाते हो.’ अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर हम लोग रोबोटिक्स की बातचीत क्यों कर रहे हैं. दरअसल, विदेश के साथ-साथ भारत की राजनीति में भी रोबोट की चर्चा जोरों पर है. लेकिन मजे की बात यह है कि पूरी चर्चा मशीनी रोबोट नहीं बल्कि इंसानी रोबोट पर है. इस लेख में हम आपको विस्तार से भारतीय राजनीति (Indian Politics) के रोबोट्स के बारे बताएंगे, जिनकी चर्चा आजकल जमीनी स्तर पर भी हो रही है.

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भारतीय राजनीति और रोबोट

भारतीय राजनीति में रोबोट का प्रचलन काफी पहले से है. देश में लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार रही और गांधी परिवार से इतर जो भी कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बना या देश का प्रधानमंत्री बना, उसे रोबोट कहा गया. यह तथ्य है और कांग्रेस के जिन नेताओं ने गांधी परिवार (Gandhi Family) की नहीं सुनी, उन्हें रास्ते से हटाया गया. लेकिन इस शब्द का अधिक प्रचलन हुआ लोकसभा चुनाव 2004 के बाद मनमोहन सिंह की ताजपोशी से.  

लोकसभा चुनाव 2004 (Lok Sabha Election 2004) में कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की और पीएम पद के लिए सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के नाम की चर्चा होने लगी थी. लेकिन पार्टी की अंदरुनी चीजों को देखते हुए सोनिया गांधी ने अपने खासमखास मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) को पीएम की कुर्सी पर बिठाया और ऐसा कहा जाता है कि पद पर न रहते हुए भी प्रधानमंत्री के हिस्से का सारा काम किया. 

पिछले लंबे समय से मीडिया में ये चीजें चर्चा में रही हैं कि प्रधानमंत्री पद पर बैठे मनमोहन सिंह को कब,कहां,क्या बोलना है, वह पहले से तय होता था. कई मुद्दों पर उन्हें बोलने तक नहीं दिया जाता था. यानी कांग्रेस पार्टी उन्हें अपने हिसाब से हैंडल करती थी. देश की सुरक्षा का मामला हो, विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से बातचीत करनी हो या कुछ और…मनमोहन सिंह हर जगह साइडलाइन किए जाते रहे. उनके दूसरे कार्यकाल में भी चीजें कुछ ऐसी ही रहीं, जिसे लेकर समय समय पर बवाल मचता रहा. विपक्षी पार्टियों की ओर से मनमोहन सिंह की चुप्पी या यूं कहें कि उनकी रोबोट वाली छवि को लेकर सवाल उठाए जाने लगे. 

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मनमोहन सिंह की शक्तियों का गलत इस्तेमाल

लोकसभा चुनाव 2014 (Lok Sabha Election 2014) में भाजपा ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया, मनमोहन सिंह की शक्तियों का गलत इस्तेमाल करने के मुद्दे को उठाया और इसमें काफी हद तक सफल भी रही. हालात ऐसे बने कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और तब से लेकर अब तक पार्टी बिखरते ही जा रही है. राहुल गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस पार्टी अपने गिरने के स्तर के सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई. उसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथों में आ गई. हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव कराकर मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को पार्टी का अध्यक्ष बनाया है. लेकिन अन्य राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ लोग भी यही कह रहे हैं कि खड़गे भी रोबोट ही हैं.

हालांकि, अब खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने रोबोट वाले आरोपों पर चुप्पी तोड़ते हुए स्पष्ट किया है कि वो रोबोट नहीं हैं. उन्हें रोबोट कहने वाले लोग ही रोबोट हैं. दरअसल, खड़गे ने कहा है कि मोदी बेलगावी आए और कहा, खड़गे अध्यक्ष (कांग्रेस) बन गए हैं, लेकिन ‘रिमोट कंट्रोल’ किसी और के पास है. ठीक है, मेरा ‘रिमोट कंट्रोल’ किसी और के पास है, लेकिन नड्डा का ‘रिमोट कंट्रोल’ कहां है? खड़गे ने कहा, नड्डा किसके रिमोट के नियंत्रण में बोलते हैं? हमारे (कांग्रेस) लिए आपके (भाजपा) बारे में बोलने के लिए आपकी (भाजपा की) कई कमजोरियां हैं. आपमें साहस की कमी है.

भाजपा में रोबोट!

देखा जाए तो खड़गे की बातों में सच्चाई भी है. क्योंकि राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) के भाजपा अध्यक्ष (BJP President) पद से हटने के बाद भाजपा की अंदरुनी चीजों में जबरदस्त परिवर्तन आया. हम ही नहीं…पहले भी कई विश्लेषक ऐसी बातें बोल चुके हैं. अमित शाह के हाथ में जब से भाजपा की कमान आई यानी शाह जब भाजपा के अध्यक्ष बने, उन्होंने पार्टी की दिशा और दशा दोनों बदलकर रख दी. भाजपा में अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्षों का होता है और अमित शाह (Amit Shah) के गृहमंत्री बनने के बाद अध्यक्ष पद पर किसे बिठाया जाए, उसे लेकर काफी मंथन हुआ था.

कुछ समय बाद जेपी नड्डा (JP Nadda) का नाम सामने आया और उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में आपने देखा होगा कि पार्टी से जुड़े तमाम मुद्दों पर नड्डा से अधिक अमित शाह सक्रिय रहे हैं. पार्टी से जुड़े तमाम फैसलों में अमित शाह का हस्तक्षेप सीधा दिखता है. पार्टी किसके साथ गठबंधन करेगी, किसके साथ अब नहीं जाएगी, किसका विरोध करेगी, किसे समर्थन देना है, किस क्षेत्रीय नेता को आगे लाना है…..ऐसी तमाम चीजों में अमित शाह हर जगह नजर आते हैं! जिसका असर यह होता है कि नड्डा बैकग्राउंड प्लेयर के रूप में दिखते हैं या फिर इनके इशारे पर चलते हुए प्रतीत होते हैं. इसी चीज को लेकर अब खड़गे ने भाजपा को भी लपेटने का काम किया है.

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