50 हजार हिंदुओं का धर्मांतरण कराने वाले इस ‘स्वयं सैनिक दल’ के बारे में कितना जानते हैं आप?

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स्वयं सैनिक दल – संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब अंबेडकर की जयंती के मौके पर 14 अप्रैल यानि आज, गुजरात की राजधानी गांधीनगर में 50,000 से अधिक अनुसूचित जाति के लोग हिन्दू धर्म का परित्याग कर बुद्ध धम्म का स्वीकार करेंगे. यह अब तक का सबसे बडा धर्मांतरण समारोह होगा. गांधीनगर के रामकथा मैदान में प्रस्तावित इस आयोजन में गुजरात के विभिन्न गांव, कस्बों व शहरों के अलावा अन्य प्रांतों से करीब 1 लाख लोगों के भाग लेने की संभावना है.

समारोह का आयोजन स्वयं सैनिक दल (SSD) नामक संगठन द्वारा किया है रहा है जो इस मौके पर महारैली और महासभा का आयोजन करेंगे. हरे रंग के ड्रेस कोड में शामिल हजारों स्वयं सैनिकों का यह दल बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण कर बाबासाहब अम्बेडकर द्वारा बताई 22 प्रतिज्ञाओं की पालन का संकल्प लेंगे.

कैसे हुई इस आयोजन की शुरुआत?

दरअसल, इस कहानी की शुरुआत होती है साल 2006 से जब राजकोट में 50 समान विचारधारा वाले दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा स्थापित स्वयं सैनिक दल द्वारा इस भव्य सामूहिक दीक्षा समारोह के आयोजन में जुटा.  पोरबंदर में महान अशोक बौद्ध विहार के बौद्ध भिक्षु प्रज्ञा रत्न समारोह की अध्यक्षता करेंगे और हजारों प्रतिभागियों को दीक्षा देंगे.

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SSD के अनुमान के मुताबिक साल 2028 तक दलित समुदायों के 1 करोड़ लोग बौद्ध धर्म को अपना सर्वोपरि धर्म बना लेंगे. आयोजकों के अनुसार, लगभग 15,000 लोगों ने अपने-अपने जिलों में कलेक्टर कार्यालयों में पहले ही धर्म परिवर्तन के लिए आवेदन दायर किया है. आवेदक बिना किसी लालच, प्रलोभन या धमकी के स्वैच्छिक धर्मांतरण का विकल्प चुन रहे हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए पुलिस सत्यापन की प्रक्रिया वर्तमान में प्रगति पर है. धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया में राज्य के गजेट में विवरण का प्रकाशन भी शामिल है.

क्या है स्वयं सैनिक दल?

SSD का असली मकसद भारतीय समाज में व्याज सामाजिक कुरीतियों को लेकर जनता को जागरूक करना . और जातिवाद की बेड़ियों से समाज को मुक्त करते हुए मानवतावादी राष्ट्र की स्थापना करना. नशा, शराब आदि व्यसनों से दूर रहकर इंसान दुसरे के प्रति घृणा को छोड़कर अपने परिवार और समुदाय में मानवीय मूल्यों का पालन करते हुए एक सम्मानित जीवन व्यतीत करें.

यही SSD का ध्येय है. संगठन ने कोई पद या पोस्ट नहीं होकर सभी अपने आप को ‘स्वयं सैनिक’ मानते हैं. संगठन से जुड़े कार्यकर्ता सुदूर ग्रामीण इलाकों में जाकर वंचित समुदायों को अपने अधिकारों को लेकर जागरूक करने का प्रयास करते हैं और ऐसे आयोजनों को ‘चिन्तन शिविर’ कहते हैं.

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“SSD सक्रिय रूप से अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में समुदायों के बीच जागरूकता पैदा करने और हिंदू समुदायों के बीच बड़े पैमाने पर विभाजन में योगदान देने वाले कर्मकांडों के बारे में जागरूकता पैदा करने में लगा हुआ है. “हम लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों के बारे में शिक्षित करके और उन्हें अपने भाग्य का स्वयं निर्माता बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें सशक्त बनाना चाहते हैं,” नाम नहीं बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ सदस्य ने यह जानकारी दी.

क्यों अपना रहे हैं बौद्ध धर्म?

हाल के वर्षों में, भारत में दलित समुदायों के सदस्यों में हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाने की प्रवृत्ति में काफी तेज़ी से बढ़ोत्तरी देखने को मिली है. 14 अप्रैल को प्रस्तावित महारैली के आयोजकों में सैनिक दल एक सदस्य रमेश भाई के अनुसार, “एसएसडी के अनुयायियों के लिए बौद्ध धर्म को अपनाने का निर्णय मुख्य रूप से समानता की खोज में निहित है. इस संदर्भ में, बौद्ध धर्म को अपनाने को जाति व्यवस्था को अस्वीकार करने, सम्मान और समानता हासिल करने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है.”

एसएसडी के सदस्यों के लिए, बौद्ध धर्म अपनाने का निर्णय किसी विशिष्ट अनुष्ठान या पूजा पद्धति से बंधा नहीं है. बल्कि, वे गौतम बुद्ध और बाबा साहेब की शिक्षाओं के प्रति आकर्षित होते हैं और इन शिक्षाओं को अपने दैनिक जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं. तैंतीस वर्षीय रमेश भाई स्वयं गौतम बुद्ध और बाबा साहब के जीवनियों और शिक्षा से प्रेरित होकर अपने पूरे परिवार और कई मित्र जनों के साथ दीक्षा ग्रहण करने को उत्सुक हैं. रमेश भाई कहते हैं कि वे बुद्ध या अम्बेडकर की आराधना नहीं करेंगे बल्कि उनके प्रति असीम आदर और श्रद्धा की भावना रखेंगे.

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महारैली के लिए इतनी व्यवस्था

एसएसडी आयोजक दीक्षा समारोह के सुचारू और सुरक्षित प्रबंधन को सुनिश्चित करने के अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. ड्रेस कोड के रूप में प्रतिभागियों को ग्रीन ड्रेस कोड का पालन करना होगा. इस आयोजन में भाग लेने वाले अनुयायियों  के लिए यातायात प्रबंधन, परिवहन व्यवस्था और चिकित्सा सुविधाओं सहित हर महीन से महीन बातों का ध्यान रखा जा रहा है. समारोह में भाग लेने वाले हजारों प्रतिभागियों के परिवहन के लिए लगभग 800 बसों के गुजरात के विभिन्न हिस्सों से गांधीनगर में कार्यक्रम स्थल तक पहुंचने की उम्मीद है.

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इसके अलावा, रैली में लगभग 5,000 फोर व्हीलर वाहन होंगे, जो विधानसभा भवन परिसर के बाहर अंबेडकर की प्रतिमा के समक्ष एकत्र होंगे. इस स्थान पर बाबा साहेब की 22 प्रतिज्ञाओं को अनुशासित अनुयायियों द्वारा दोहराया जाएगा. एसएसडी के एक अन्य सदस्य जगदीश भाई ने बताया कि आयोजन मे महिलाओं की टीम ‘झलकारी ब्रिगेड’ महिला प्रतिभागियों का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी निभाएंगी.

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2028 तक 1 करोड़ दलित अपनाएंगे बौद्ध धर्म

भारत में दलित के मौलिक अधिकार्रों का हनन सदियों पहले से होता चला आ रहा है. हाल के सालों में दलित समाज में आई खास प्रगति के बावजूद जाति आधारित भेदभाव और असामनता की जंग अभी भी जारी है. और हिंदू राष्ट्रवाद के उदय से स्थिति और भी गंभीर हो गई है. इस संदर्भ में दलित संगठनों द्वारा हिंदू धर्म में व्याप्त मनुवादी सिद्धांतों का खुलकर विरोध किया जाता रहा है.

धर्मांतरण का यह कार्य केवल एक धार्मिक या व्यक्तिगत पसंद नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक वक्तव्य है जो सामाजिक न्याय के लिए चल रहे संघर्ष और दमन की गहरी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई को दर्शाता है जो भारत में लाखों लोगों के जीवन और आजीविका को प्रभावित करता है. एक अनुमान के अनुसार, 2028 तक 1 करोड़ से अधिक दलित आबादी के बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने की उम्मीद है.

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