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जानिए सिख धर्म के दिलचस्प रिवाज 'दस्तार सजौनी' के बारे में, समझिये इसके धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण  

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क्या पगड़ी पहनना सिख धर्म में अनिवार्य है? 

“जो पगड़ी बांधना जानते हैं वो पगड़ी संभालना भी जानते हैं”, यह डॉयलोग आपने कही-न-कही जरूर सुना होगा। क्या पगड़ी पहनना सिख धर्म (sikhism) में अनिवार्य है? सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक सुनवाई के दौरान यह सवाल किया था। मामला दिल्ली (DELHI) के एक साइकलिस्ट जगदीप सिंह पुरी से जुड़ा था जिन्होंने स्थानीय साइकलिंग एसोसिएशन के नियमों के खिलाफ याचिका दायर की थी। हमारे संविधान (Constitution of India) के नजरिये से सिखों का पग पहनना अनिवार्य हो या नहीं हो लेकिन खालसा पंथ (Khalsa Panth) में यानी की सरदार बनने की राह में पगड़ी का बहुत ज्यादा महत्व है। 

सिख पगड़ी को पारंपरिक भाषा में दस्तार और दुमाला के नाम से जाना जाता है। खालसा सिखों के बीच पगड़ी को पहनना धार्मिक तौर पर जरूरी माना गया है।  सिख समुदाय के 10वें गुरु गोविंद सिंह जी (Guru Gobind Singh) द्वारा सिखों में पगड़ी पहनना कंपल्सरी किया गया था। आज हम आपको सरदारों या फिर कह ले सिख समुदाय के पग रस्म के बारे में बताएंगे। 

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लम्बे केशों को बांधने में सिख करते हैं पगड़ी का इस्तेमाल 

पगड़ी कह ले या फिर दस्तार सिख धर्म के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं और धार्मिक कारण भी। पग की महत्ता वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझना ज्यादा आसान है। सरदारों  को लम्बे बाल रखना अनिवार्य है। इन लम्बे केशों को सही से बांधने में सिख पगड़ी का इस्तेमाल करते हैं। सिखों के पगड़ी का धार्मिक रूप से और अधिक अहमियत है। धार्मिक तौर पर सरदारों को पगड़ी पूरे नियम और रसम के साथ पहनाया जाता है। 

गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति  है यह रस्म 

एक तरफ जहाँ कई सिख परिवारों में, जब एक लड़का निश्चित आयु  तक पहुंचता है, तो उसे एक गुरुद्वारों में ले जाया जाता है और वहां गुरु ग्रंथ साहिब (Guru granth  की उपस्थिति में और अरदास के बाद, उसकी पहली पगड़ी को ग्रंथि द्वारा औपचारिक रूप से बांधा जाता है। इसके बाद ग्रंथी लंबे बाल और पगड़ी पहनने के महत्व को बताएगा। लगभग पांच वर्ष की आयु में, लड़कों के लिए दस्तार सजौनी (पगड़ी बांधने) की रस्म निभाई जाती है। “दस्तार सजौनी” समारोह मनाने के लिए संगत की उपस्थिति में अखंड पाठ या खुल्ला पाठ किया जाता है। एक चीज यहां पर गौर करने लायक है की यह समारोह सभी सिखों द्वारा नहीं किया जाता है। सिखों में यह सिर्फ इकलौती पगड़ी की रस्म नहीं है। 

पगड़ी-बांधने की रस्म, जिसे हम दस्तार बंदी या दस्तार साजनी कहते है उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सिख मान्यताओं के अनुसार, पुरुष और महिलाएं अपने बाल नहीं काट सकते हैं और उन्हें अपने सिर को ढक कर रखनी होती है।

  • अमृत चखने के बाद महिलाएं भी बांधती हैं पग 

यह पगड़ी रस्म सिख धर्म में इतना महत्वपूर्ण है की सिख समुदाय की महिलाएं भी इस पगड़ी को धारण करती हैं। सिख धर्म की महिलाएं जब अमृत चख लेती हैं यानि की पांच ककार धारण कर लेती है तब उन्हें दस्तार पहनने की अनुमति दी जाती है। सिख महिलाओं का भी सिख पुरुष और बच्चे की तरह ही पग रस्म किया जाता है। महिलाओं को पग धारण करने के बाद खुले बाल रखने की अनुमति नहीं होती। 

‘पग’ खुद को साबित करने के लिए पहनते हैं, ना की दूसरों को 

युवाओं को, आमतौर पर अपनी किशोरावस्था में, यह समझना चाहिए कि वे अपने सिर पर जो बांध रहे हैं, वह केवल पगड़ी नहीं है बल्कि सिख दस्तार है, जिसका सम्मान उन्हें हमेशा रखना होता है। पंजाबी में, “दस्तार” का अर्थ ताज होता है। गुरु गोबिंद साहब ने इसके बारे में कहा था की, “यह दूसरों को यह बताने के लिए नहीं है कि “हम कौन है”। “यह हमारे लिए है कि मैं कौन हूं।” पगड़ी के इन रस्मों को सिख धर्म में बहुत गंभीरता से लिया जाता है।

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