यति नरसिंहानंद के भड़काऊ भाषणों पर लगा ब्रेक, जानें अपने किन विवादित बयानों के लिए घिरे?

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उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के डासना मंदिर (Dasna Mandir) के पुजारी यति नरसिंहानंद (Yati Narsinghanand) का मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अपने नफरत भरे भाषण देने के मामले में विवादों से गहरा नाता है। वे अपने भड़काऊ भाषण के चलते जेल के चक्कर भी लगा चुके है। आइए उनके बारें में विस्तार से बताते है।

दरअसल, यति नरसिंहानंद के ताजा बयान के मुताबिक उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन छोड़ने की बात कही है। इसके लिए उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया है। इस वीडियो में उन्होंने घोषणा की है कि अब वे अपना सार्वजनिक जीवन छोड़ रहे है। आज से उनका नया जीवन शुरू हो रहा है और पुराने जीवन के लिए वो माफी मांग रहे हैं।

यति नरसिंहानंद ने की ये घोषणा

यति नरसिंहानंद ने वीडियो जारी कर कहा कि “हम लोग यहां जितेंद्र नारायण त्यागी को लेने आए थे। लेकिन हमारे आने से पहले ही उनकी रिहाई हो गई, वो चले गए हैं। उनका हमारा साथ यहीं तक था। जैसा भी सुखद या दुखद उनका अनुभव रहा, इसके लिए मैं पूर्णत: दोषी हूं। मेरी कमजोरी की वजह से उन्हें चार महीने से ज्यादा जेल में रहना पड़ा, उनकी कोई गलती नहीं थी। उन्होंने केवल सच बोला। लेकिन मैं नरसिंहानंद सरस्वती इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानता हूं। मैं उनसे माफी मांगता हूं।”

”मैं हिंदू समाज से कहना चाहता हूं कि मैंने अब तक का अपना पूरा जीवन इस्लाम के जिहाद से लड़ने में लगाया। और अब शेष जीवन मां और महादेव के यज्ञ व योगेश्वर के प्रचार में लगाना चाहता हूं। आज से मेरा जीवन सार्वजनिक जीवन नहीं है।”

गौरतलब है कि यति नरसिंहानंद को जूना अखाड़ा (Juna Akhara) की ओर से महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई है-जो कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP) के 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली है। लेकिन इसके बावजूद वे मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण देने के लिए जाने जाते है। नरसिंहानंद ने कई भड़काऊ टिप्पणियां की हैं – इस्लाम के खिलाफ पूरी तरह से युद्ध का आह्वान करने, पैगंबर मुहम्मद की आलोचना करने से लेकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को “जिहादी” कहने और यहां तक कि साईं बाबा पर हमला करने से भी पीछे नही हटे।

कौन होते है महामंडलेश्वर?

‘महामंडलेश्वर’ अलग-अलग दशनामी अखाड़ों की ओर से किसी ऐसे व्यक्ति को सम्मान के रूप में दी जाने वाली उपाधि है, जिसने हिंदू आध्यात्मिकता के ऊंचाइयों को हासिल किया हो। लेकिन इस व्यवस्था को लेकर अलग-अलग मत हैं। लोकप्रिय भारतीय समाजशास्त्री जीएस घुर्ये के मुताबिक, महामंडलेश्वर 19वीं शताब्दी के दौरान आम हो गए। क्योंकि दशनामी व्यवस्था ने ईसाई मिशनरियों का मुकाबला करने के लिए परमहंस के बीच से ही विद्वानों को उनके स्तर में नियुक्त करने की जरूरत महसूस की। हालांकि महामंडलेश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर से अलग होते हैं और उन्हें दीक्षा समारोह करने का अधिकार नहीं होता। लेकिन वो हिंदू समुदाय के अंदर उपदेशक-मार्गदर्शक के तौर पर काम कर सकते हैं।

क्या महामंडलेश्वर बनना कमाई का जरिया है!

जाने-माने लेखक और पत्रकार धीरेंद्र झा ने अपनी किताब Ascetic Games: Sadhus, Akharas and Making of the Hindu Vote के लिए कई हिंदू अखाड़ों की बारीकी से जांच की है। धीरेंद्र झा का कहना है कि “अखाड़े प्रतिष्ठित उपाधी देकर काफी कमाई करते हैं जो साधुओं को उपदेशक-मार्गदर्शक के तौर पर बदल देते हैं। महामंडलेश्वर की उपाधि विशेष तौर पर शैव अखाड़ों की ओर से दी जाती है जो काफी भारी कीमत देने पर मिलती है।”

ये माना जाता है कि आजादी के बाद महामंडलेश्वर की डिग्री देना आम हो गया, क्योंकि राजघरानों का बोलबाला खत्म होने के बाद अखाड़ों की कमाई पूरी तरह घट गई थी और उन्हें कमाई के लिए नया जरिया अपनाना पड़ा।

कौन है यति नरसिंहानंद सरस्वती?

यति नरसिंहानंद सरस्वती का नाम दीपक त्यागी है। लेकिन वे देश में यति नरसिंहानंद के नाम से जाने जाते है। मेरठ के एक साधारण परिवार में पैदा हुए। उनके पांच भाई- बहन हैं। पिता सरकारी नौकरी में थे। नरसिंहानंद ने मॉस्को के इंस्टिट्यूट ऑफ़ केमिकल इंजीनियरिंग से अपनी पढ़ाई पूरी की और सन 1997 में भारत लौटे।

नरसिंहानंद सरस्वती पहले राजनीति और फिर हिन्दू धर्म के बचाव में लग गए। उनका परिवार चाहता था कि वे हिन्दू धर्म के बचाव कार्य में ना जाकर केवल राजनीति में जाएं। यति नरसिंहानंद सरस्वती को कभी परिवार की तरफ से सहयोग नहीं मिला। जिसके बाद उनका राजनीतिक जीवन लम्बा नहीं चला और तीन महीने बाद ही उन्होंने पार्टी छोड़ दी। 

मुसलमानों की ओर उनकी नफरत कैसी बढ़ी?

यति नरसिंहानंद बताते हैं, “जब मैं समाजवादी पार्टी में था तब एक संस्था बनाई थी। उसी के माध्यम से मेरी मुलाकात शम्भू दयाल डिग्री कॉलेज की एक लड़की से हुई। तब मुझे लव जिहाद का पता चला। उसकी सहेली ने अपने भाई से उसकी दोस्ती कराई थी, बाद में उस लड़की के साथ बहुत बुरा हुआ। वो लड़की प्रोस्टीट्यूट (वेश्या) बना दी गई थी। यह सब लोग मुसलमान थे।” अपनी बात आगे बढ़ाते हुए सरस्वती कहते हैं, “उस लड़की ने मुझे मुसलामानों की कई कहानियां बताई। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। मुझे लगा था कि यह एक वेश्या है इसलिए अपने चरित्र को अच्छा दिखाने के लिए यह सब कह रही है। एक दिन मुझे पता चला उस लड़की ने आत्महत्या कर ली। फिर मैंने उसके पीछे पूरी जांच करने का कोशिश की।”

अगर हम नरसिंहानंद सरस्वती की बातों पर यकीन करें तो इस घटना ने उनकी ज़िन्दगी को पूरी तरह से बदल दिया। उसी दौरान सरस्वती का परिचय भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद बैकुंठ लाल शर्मा ‘प्रेम सिंह शेर’ से हुआ। साल 2019 में बैकुंठ लाल शर्मा ‘प्रेम’ का निधन हो गया। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में काफी अहम भूमिका निभाई थी।

यति नरसिंहानंद सरस्वती कहते हैं, “उनसे मुझे पता चला कि इस्लाम कुछ अलग सोचता है। मुसलामानों की सोच जानने के लिए मैंने कुरान पढ़ी। मुझे हैरानी हुई कि कुछ लोग इन कलामों पर विश्वास करते हैं। मैं मस्जिद और मदरसों में गया, वहां मैंने इस्लाम को समझना शुरू किया। मुझे समझ आया इस्लाम कैंसर है। अगर इसे धरती से उजाड़कर नहीं फेका गया तो यह धरती को बंजर कर देगा। तभी मैंने इस्लाम की सच्चाई को दुनिया के सामने लाने की ठान ली। उसके बाद मैंने मोहम्मद को बेनकाब किया। आज बहुत सारे लोग मेरे कारण इस्लाम की सच्चाई को समझने की कोशिश कर रहे हैं। आज जो इस्लाम की सच्चाई नही जानते उनके लिए मैं प्रेरक बना जिसके कारण उनके मन में इस्लाम को जानने की इच्छा जागी।” शायद यही वजह है कि उनकी नफरत मुसलमानों की ओर बढ़ती गई! इस पूरी घटना के बाद दीपक त्यागी ने सन्यास लेकर यति नरसिंहानंद सरस्वती का चोला ओढ़ लिया।

बता दें कि यति नरसिंहानंद अपने भड़काऊ बयानों से चर्चा में रहे हैं। हरिद्वार धर्मसंसद में विवादित बयान देने के लिए यति नरसिंहानंद के खिलाफ FIR दर्ज हुई थी और उन्हें गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद दिल्ली के बुराड़ी इलाके में भी हिंदू महापंचायत का आयोजन किया गया था। इस महापंचायत में भी यति ने भड़काऊ बयान दिया था और उनके ऊपर FIR दर्ज हुई थी। हालांकि हरिद्वार धर्म संसद मामले में यति फिलहाल बेल पर हैं।

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