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कैसे पंजाब में कमजोर होता चला गया अकाली दल? इस बार सत्ता वापसी के लिए अपना रहा ये रास्ता!

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इस वक्त पंजाब की राजनीति में काफी उथल पुथल मची हुई है। एक तरफ अकाली दल ने बीते साल बीजेपी के साथ अपने दो दशक पुराने गठबंधन और दोस्ती को तोड़ दिया, तो वहीं कांग्रेस के कैप्टन और सिद्धू के बीच की सत्ता को लेकर चल रही खींचतान ने कांग्रेस आलाकमान के सिर में दर्द कर रखा है। वहीं रही सही कसर AAP में भी पूरी हो रही है। वहां पार्टी में सीएम पद का चेहरा कौन होगा, उसे लेकर पार्टी के अंदर ही कोल्ड वॉर चल रहा है।

अकाली दल ने मिलाया बसपा से हाथ

लेकिन इन सबके बीच कभी पंजाब में किंगमेकर रही बहुजन समाज पार्टी ने भी एंट्री कर दी है, वो फिर से पंजाब में अपनी पुरानी जगह पाना चाहती है और इसके लिए उसने मिला लिया है अकाली से हाथ। हालांकि अकाली दल की हालत इस वक्त काफी खस्ता है और उसके पास सत्ता में आने के लिए गठबंधन के सिवाए कोई और रास्ता भी नहीं था।

इन वजहों से कमजोर हुआ अकाली दल

अब सवाल ये है कि कभी 80 के दशक में अपने दम पर सरकार बनाने वाली शिरोमणी अकाली दल आज इतनी ज्यादा कमजोर क्यों हो गई? 2017 में तो केवल 15 सीटों पर आकर सिमट गई थी। ऐसे में क्या हुआ कि अकाली दल को दूसरी पार्टी का सहारा लेना पड़ रहा है पंजाब की राजनीति में खुद के स्थापित किए रखने के लिए? आज हम इसी पर चर्चा करेंगे…

ये कहानी शुरु हुई 80 के दशक में, जब शिरोमणि अकाली दल काफी मजबूत थी और उसने अपने दम पर सरकार बनाई थी, लेकिन तब राजनीतिक समीकरण आज के मुकाबले अलग थे। लेकिन तब बसपा भी पंजाब में अपनी जड़े मजबूत करने लगी थी और 1992 में अकाली को बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। बसपा दलितों के मुद्दे पर आगे बढ़ी, और पंजाब में करीब 40 प्रतिशत दलित है, जिससे बसपा को वहां फायदा हुआ।

मगर हालात तब बदले जब अकाली ने पंजाब और पंजाबियत के साथ आने की कोशिश की। 1996 में इस नारे के कारण अकाली ने हिंदू वोट बैंक को भी साधने की कोशिश की, नतीजा ये हुआ कि उसके अपने वोट बैंक भी बिखर गए… नतीजा ये हुआ कि अकाली कमजोर पड़ने लगी। अकाली अभी भी केवल सिखों को ही नहीं बल्कि दलितों और हिंदुओं को भी एक साथ साधने की कोशिश कर रही है, जो बड़ा कारण है सिख वोट बैंक के बिखरने का।

मिलेगा बसपा से गठबंधन का फायदा?

बसपा और अकाली दल के गठबंधन के बाद सवाल ये कि क्या अकाली फिर से पंजाब की सत्ता में वापसी कर पाएगी?…बसपा दलितों के लिए एक प्रमुख पार्टी रही है, तो वहीं बीजेपी ने भी इस बार 21 प्रतिशत सिखों को साधने के बजाए हिंदुओं और दलितों को साधना शुरु कर दिया है। पंजाब के करीब 20 ऐसे क्षेत्र है जहां हिंदू वोटबैंक मजबूत है, जहां बीजेपी अपना हिंदू कार्ड खेलकर अपनी जमीन मजबूत कर सकती है, तो वहीं दलितों के वोट बसपा के खाते में आ सकते है, ऐसे में अकाली को उम्मीद है कि जो सिख वोट बैंक उनके छिटक गए है, उसकी भरपाई दलित वोट बैंक कर सकता है। जो बड़ा कारण हो सकता है बसपा के साथ गठबंधन करने का। अब देखना ये है कि बीजेपी से अलग होने के बाद क्या अकाली दल फिर से खुद को मजबूत कर पाएगी? क्या बसपा के सहारे वो फिर से सत्ता पर काबिज हो पाएगी?

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