म्यांमार में तख्तापलट के पीछे ड्रैगन की कोई चाल? इस वजह से उठे सवाल…क्या भारत की बढ़ेगी इससे दिक्कतें?

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म्यांमार में जो तख्तापलट की घटना हुई है, उसमें कई देशों ने चिंता व्यक्त की, जिसमें भारत और अमेरिका जैसे कई देश शामिल है। वैसे तो म्यांमार में सैन्य शासन नई बात नहीं, लेकिन जो इस बार जो तख्तापलट हुआ, उससे दूसरे देशों का ध्यान भी इस ओर खींच गया। दरअसल, म्यांमार में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची को नजरबंद कर दिया गया और देश की बागडोर सेना ने अपने हाथो में ले ली। म्यांमार में एक साल के लिए इमरजेंसी लगा दी गई।

भारत-अमेरिका ने जताई चिंता

पड़ोसी देश म्यांमार में जो कुछ भी हुआ उस पर भारत ने भी चिंता जताई। वहीं अमेरिका ने तो प्रतिबंध लगाने समेत अन्य विकल्पों की भी बात कह डाली। लेकिन इस घटना पर जिस तरह से चीन ने रिएक्ट किया, उस पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये उठाए जा रहे हैं कि म्यांमार में जो कुछ भी हुआ उसके पीछे कहीं ड्रैगन ही तो नहीं? साथ ही एक सवाल ये भी है कि इसका भारत पर क्या असर होगा?

चीन की प्रतिक्रिया पर उठे सवाल…

बीते कई सालों में चीन म्यांमार बड़ा निवेश कर चुका है। वो खनन समेत गैस पाइपलाइन परियोजना में अरबों डॉलर का निवेश कर चुका है। लेकिन जिस तरह से हालिया घटनाक्रम पर चीन ने उससे खुद को अनजान दिखाने की कोशिश की, वो सवाल खड़े करने वाला है। ये वहीं चीन है जो नेपाल की राजनीति में खुलकर हस्तक्षेप करता है और म्यांमार की घटना पर ज्यादा बोलना पसंद नहीं कर रहा।

पहले आपको ये बता देते हैं कि आखिर ने म्यांमार के तख्तापलट पर आखिर क्या कहा। चीन ने कहा कि वो म्यांमार में हुए घटनाक्रम के बारे में फिलहाल जानकारियां जुटा रहा है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा- ‘म्यांमार में जो भी हुआ, हमने उस पर संज्ञान लिया। हम हालात के बारे में सूचना जुटा रहे हैं। म्यांमार, चीन का दोस्त और पड़ोसी देश है। हम ऐसी उम्मीद है कि म्यांमार में सभी पक्ष संविधान और कानूनी ढांचे के तहत अपने मतभेदों को दूर करेंगे और राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखनी चाहिए।’ चीन ने म्यांमार के सेना प्रमुख को भी अपना दोस्त बताया।

…तो क्या होगा भारत पर इसका असर?

यहां आपके लिए ये भी जानना जरूरी है कि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सू ची ने दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की। नवंबर में हुए संसदीय चुनाव में उनकी पार्टी ने 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत दर्ज की थी और देश की सत्ता संभालने ही जा रही थी कि इसी बीच चुनाव के कुछ समय बाद सेना ने चुनाव में फर्जीवाड़े का आरोप लगा दिया। ऐसा हो सकता है कि सू ची का भारत की ओर झुकाव चीन को हजम नहीं हो रहा। चीन ये बात अच्छे से जानता है कि सू ची अगर शासनकाल में वो म्यामांर में भारत विरोधी एजेंडे को लागू नहीं कर सकता था।

म्यांमार में जो कुछ भी हुआ, वो भारत के लिए सही नहीं। म्यांमार की सीमा भारत के साथ साथ चीन से भी लगती है। ऐसे में यहां होने वाली गतिविधियों का दोनों देशों पर असर होगा। नॉर्थ ईस्ट के कई अलगाववादी और उग्रवादी संगठन म्यांमार से भारत विरोधी गतिविधियों चलाते हैं। कई बार भारत म्यांमार के अंदर घुसकर सैन्य कार्रवाई भी इनके खिलाफ कर चुका है। ऐसा भी साफ है कि चीन इन संगठनों की मदद करता है। म्यांमार और चीनी सेना के बीच अच्छे संबंध है। ऐसे में म्यांमार का घटनाक्रम भारत के लिए चुनौती बन सकता है।

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