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Sholay Movie: न सिप्पी, न सलीम-जावेद… धर्मेंद्र ने बताया शोले के पीछे कौन था असली मास्टरमाइंड, जिसकी वजह से फिल्म बनी ‘कल्ट क्लासिक’

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Sholay Movie: साल 1975 में रिलीज हुई फिल्म शोले ने जो इतिहास रचा, वह आज भी बॉलीवुड में मिसाल की तरह देखा जाता है। फिल्म के हर डायलॉग, हर किरदार और हर सीन को लोगों ने इस कदर अपनाया कि यह फिल्म महज एक सिनेमाई प्रोजेक्ट नहीं रही, बल्कि एक एहसास बन गई। धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, संजीव कुमार और अमजद खान जैसे दिग्गज कलाकारों की मौजूदगी, सलीम-जावेद की दमदार कहानी और रमेश सिप्पी का डायरेक्शन… सबकुछ परफेक्ट था। लेकिन अब, 50 साल बाद खुद धर्मेंद्र ने इस फिल्म की सफलता का असली श्रेय एक ऐसे शख्स को दिया है, जिसका नाम बहुत कम लोग जानते हैं — द्वारका देवचा।

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धर्मेंद्र की पोस्ट ने फैंस को किया हैरान- Sholay Movie

फिल्म की गोल्डन जुबली के मौके पर धर्मेंद्र ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शोले की शूटिंग के दौरान की एक पुरानी तस्वीर शेयर की। ये फोटो फिल्म के सिनेमैटोग्राफर द्वारका देवचा की थी। धर्मेंद्र ने बड़ी विनम्रता से लिखा कि, “दिवंगत श्री द्वारका देवचा, जो शोले के सिनेमैटोग्राफी डायरेक्टर थे, वो हम सभी के साथ बेहद प्यार और अपनापन रखने वाले इंसान थे। कैमरे के पीछे काम करने वाले लोगों का ज़िक्र बहुत कम होता है, जबकि असल में वही हमें सिल्वर स्क्रीन तक लेकर आते हैं। मैं सभी से कहूंगा कि उनकी बायोग्राफी जरूर पढ़ें।”

धर्मेंद्र के इस बयान से यह साफ हो गया कि जिस विजुअल ग्रैंडियर की आज भी शोले मिसाल बनती है, उसके पीछे कैमरे की आंख और क्रिएटिव सोच से काम करने वाले द्वारका देवचा का हाथ था।

कौन थे द्वारका देवचा?

बहुत कम लोग जानते हैं कि द्वारका देवचा पहले एक्टर थे। उन्होंने एक्टिंग के जरिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था, लेकिन यह सफर लंबा नहीं चला। एक्टिंग से मन भरने के बाद उन्होंने कैमरे के पीछे काम करना शुरू किया और धीरे-धीरे सिनेमैटोग्राफी में अपना अलग मुकाम बनाया।

शोले में उनके काम को देखिए चाहे गब्बर के एंट्री सीन की बात हो, जय-वीरू की दोस्ती को दिखाने का तरीका हो, ठाकुर का इमोशनल बदला हो या फिर क्लाइमेक्स का एक-एक फ्रेम, हर चीज़ इतनी खूबसूरती से कैमरे में कैद की गई थी कि वो पल आज भी लोगों के ज़हन में जिंदा हैं।

शोले की सिनेमैटोग्राफी: द्वारका का जादू

शोले को ‘कल्ट क्लासिक’ बनाने में कहानी, अभिनय और डायरेक्शन का जितना योगदान था, उतना ही बड़ा रोल इसकी सिनेमैटोग्राफी का भी रहा। फिल्म के हर सीन को बड़े ही शानदार तरीके से फिल्माया गया था।

रामगढ़ की लोकेशन हो या गब्बर के खौफनाक मूड को दिखाने वाला कैमरा एंगल, द्वारका देवचा ने हर फ्रेम को एक आर्टवर्क बना दिया था। उनकी सिनेमैटोग्राफी इतनी दमदार थी कि उस दौर में टेक्नोलॉजी सीमित होने के बावजूद फिल्म का हर फ्रेम आज भी ताजा लगता है।

पर्दे के पीछे का सितारा

बॉलीवुड में अक्सर परदे पर दिखने वाले स्टार्स को ज्यादा पहचान मिलती है, लेकिन शोले जैसी महान फिल्म के पीछे जिन तकनीकी कलाकारों ने अपनी जान झोंक दी, उनका नाम बहुत कम लिया जाता है। धर्मेंद्र का यह पोस्ट उसी भूल-सुधार की तरह देखा जा रहा है।

द्वारका देवचा भले ही कैमरे के सामने नहीं थे, लेकिन उनके कैमरे ने जो कैप्चर किया, उसने हिंदी सिनेमा की दशा और दिशा दोनों बदल दी।

क्या है इस कदर खास?

जब भी शोले की बात होती है, तो गब्बर के डायलॉग्स, ठाकुर का बदला, जय-वीरू की दोस्ती और बसंती की बातों का जिक्र जरूर होता है। लेकिन शायद हम भूल जाते हैं कि ये सब चीजें तभी असरदार बनती हैं, जब उन्हें सही एंगल, सही लाइट और सही टोन में शूट किया गया हो। यही काम द्वारका देवचा ने किया था — बगैर लाइमलाइट के।

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