Sikhism in Singapore: जानें सिंगापुर में सिख समुदाय के संघर्ष, समर्पण और सांस्कृतिक धरोहर की अनकही कहानी

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Sikhism in Singapore: सिंगापुर में सिख समुदाय की जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान शुरू हुईं, जब ब्रिटिश सेना और पुलिस बलों में कार्य करने के लिए भारतीय सिखों का स्थानांतरण हुआ। आज, सिंगापुर में लगभग 12,000 से 15,000 सिख रहते हैं, और वे न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज के अन्य क्षेत्रों में भी उनका योगदान अत्यधिक है। सिखों का सिंगापुर में यह सफर सदियों पुराना है, जो आज भी समुदाय की पहचान और सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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सिखों का सिंगापुर में आगमन- Sikhism in Singapore

ब्रिटिश शासन के दौरान, सिंगापुर मलेशिया का हिस्सा था, और सिखों का प्रमुख रूप से वहां पुलिस अधिकारियों के रूप में आगमन हुआ। वे गरीबी और कर्ज से परेशान होकर बेहतर जीवन की तलाश में सिंगापुर आए थे। शुरुआती दौर में, सिखों ने पुलिस, सुरक्षा गार्ड और चौकीदार के रूप में काम किया। बाद में, उन्होंने व्यापार के क्षेत्र में भी कदम रखा, जैसे कि पैसे उधार देना और अन्य वाणिज्यिक गतिविधियाँ।

Sikhism in Singapore central sikh gurdwara
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सिखों का सिंगापुर में आगमन एक बड़ी आप्रवासी लहर के रूप में देखा गया। इनमें से कुछ सिख भारतीय पंजाब क्षेत्र से थे, जबकि अन्य वे सिख थे जो ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण ब्रिटिश सेना द्वारा सिंगापुर भेजे गए थे। इन सिखों ने ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ विद्रोह किया था, और इसके बाद उन्हें सिंगापुर की जेलों में रखा गया। इस प्रकार, सिंगापुर में सिखों की पहली पीढ़ी मुख्य रूप से कैदी थी, जो बाद में यहां स्थापित हो गए।

19वीं शताब्दी में सिखों का प्रभाव

सिखों का सिंगापुर में आगमन 1850 के आसपास हुआ था, जब महाराज सिंह और खुर्रक सिंह जैसे कुछ सिखों को ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा राजनीतिक बंदी बना कर सिंगापुर भेजा गया। इसके बाद, 1881 में सिख पुलिस दस्ते का गठन हुआ, और सिंगापुर में पुलिस बल के रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो गई। इस दस्ते में लगभग 200 सिखों ने काम किया, और उनका मुख्य कार्य चीनी गुप्त समाजों से निपटना और बंदरगाहों, गोदामों और सुरक्षा की निगरानी रखना था।

सिखों के लिए सिंगापुर एक सुरक्षित और आर्थिक रूप से समृद्ध स्थान बन गया, जहां उन्होंने अपने परिवारों को सहेजा और अपने व्यापारों को स्थापित किया। 19वीं शताब्दी के अंत में, सिख व्यापारियों की एक नई पीढ़ी ने सिंगापुर में व्यापारिक गतिविधियाँ शुरू कीं, विशेष रूप से वस्त्र व्यापार में।

20वीं शताब्दी में सिख समुदाय का विकास

20वीं शताब्दी में सिखों ने सिंगापुर में और अधिक विविध पेशों में अपना कदम बढ़ाया। इनमें से कई सिख व्यापारी बन गए और कपड़ा व्यापार, खुदरा व्यापार जैसे क्षेत्रों में काम करने लगे। इस दौरान, सिखों ने कई गुरुद्वारों की स्थापना की, जो न केवल धार्मिक स्थल थे, बल्कि सामुदायिक केंद्रों के रूप में भी कार्य करते थे। ये गुरुद्वारे सिखों के लिए एक स्थान प्रदान करते थे, जहां वे एक-दूसरे से मिल सकते थे, चर्चाएँ कर सकते थे और अपनी धार्मिक गतिविधियाँ कर सकते थे।

सिंगापुर में सिख समुदाय ने अपनी पहचान बनाई और कई प्रसिद्ध सिख भारतीय समुदाय के नेताओं ने सिंगापुर के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में योगदान दिया।

आज का सिख समुदाय

आज सिंगापुर में सिख समुदाय एक सशक्त और विविध समुदाय के रूप में स्थापित है। उनके पास 7 सक्रिय गुरुद्वारे हैं, जिनमें से केंद्रीय सिख मंदिर और गुरुद्वारा साहिब सिलाट रोड सबसे प्रमुख हैं। इन गुरुद्वारों में न केवल पूजा की जाती है, बल्कि ये सामाजिक कार्यों, शिक्षा और धर्मार्थ गतिविधियों के केंद्र भी बने हुए हैं।

सिंगापुर में सिख समुदाय की मौजूदगी न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय समाज में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। सिखों की व्यावसायिक सफलता और उनके सामाजिक कामों को देखते हुए, उन्हें सिंगापुर के समृद्धि और विविधता में एक अहम हिस्सा माना जाता है।

प्रमुख सिख व्यक्तित्व

सिंगापुर में कई प्रमुख सिख व्यक्तित्व रहे हैं जिन्होंने समाज में अपनी छाप छोड़ी है। इनमें से कुछ प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं:

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  • चूर सिंह, जो सिंगापुर के सुप्रीम कोर्ट के पहले सिख जज थे।
  • कंवलजीत सोइन, जो सिंगापुर की पहली महिला नामित सदस्य थीं और साथ ही ऑर्थोपेडिक सर्जन भी थीं।
  • जसवंत सिंह गिल, जो सिंगापुर नेवी के पहले कमांडर थे।
  • मेजर-जनरल रवींद्र सिंह, जो सिंगापुर आर्मी के पूर्व प्रमुख थे।
  • इंद्रजीत सिंह, जो सिंगापुर के सांसद रहे हैं।

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