Mini Punjab of Andhra Pradesh: आंध्र के विशाखापत्तनम और विजयवाड़ा में खिल रहा है पंजाबी-सिख समुदाय का रंग

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Mini Punjab of Andhra Pradesh: आंध्र प्रदेश के दो प्रमुख नगर विशाखापत्तनम और विजयवाड़ा अपने छोटे मगर जीवंत सिख एवं पंजाबी समुदायों की बदौलत पंजाब की संस्कृति की झलक दक्षिण भारत में दिखा रहे हैं। आज़ादी के बाद देश के विभाजन के समय इन शहरों में आए शरणार्थी सिख-पंजाबी परिवारों ने दशकों से अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजोए रखते हुए स्थानीय समाज में खास मुकाम बनाया है। गुरुद्वारे से लेकर व्यापार तक, हर क्षेत्र में इस समुदाय की उपस्थिति इन शहरों को किसी ‘मिनी पंजाब’ जैसी पहचान देने की ओर अग्रसर है।

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सबसे बड़ी सिख आबादी, ऐतिहासिक बसावट- Mini Punjab of Andhra Pradesh

Ground News की रिपोर्ट के मुताबिक, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के दक्षिण भारत भ्रमण (16वीं सदी) से लेकर 1947 के विभाजन तक, आंध्र प्रदेश में सिख-पंजाबी जुड़ाव का एक लंबा इतिहास रहा है। विभाजन के दौरान लगभग 45 सिख परिवार (तथा कुछ अन्य पंजाबी परिवार) शरणार्थी बनकर विजयवाड़ा आए और यहीं बस गए। उन्होंने शहर को शांतिपूर्ण और कारोबार के लिए उपयुक्त पाया। इसी तरह विशाखापत्तनम में भी उस दौर में कुछ पंजाबी परिवार आकर बसे।

Mini Punjab of Andhra Pradesh Sikhism Visakhapatnam
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Khaleej Times के मुताबिक, आंध्र प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त राज्य) में सिखों की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 40,000 थी, जो दक्षिण भारत में किसी राज्य में सबसे अधिक है। राज्य में सिख आबादी का सबसे बड़ा केंद्र विशाखापत्तनम शहर है, जिसके बाद दूसरा स्थान विजयवाड़ा का आता है। 2011 की जनगणना में विशाखापत्तनम नगर की कुल आबादी में सिख धर्म मानने वालों का हिस्सा 0.1% (1,741 व्यक्ति) दर्ज हुआ, जबकि विजयवाड़ा नगर में यह मात्र 0.08% (861 व्यक्ति) था। संख्या भले कम हो, लेकिन प्रभाव में ये समुदाय काफी मुखर हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक पहचानों का केंद्र

दोनों शहरों में गुरुद्वारे इन समुदायों के आस्था और सभ्यता के केंद्र हैं। विजयवाड़ा में सिखों का मुख्य गुरुद्वारा गुरु नानक नगर कॉलोनी में स्थित है। इसी गुरुद्वारे के नाम पर उस क्षेत्र का नाम गुरुनानक कॉलोनी पड़ गया है और प्रवेश मार्ग को स्थानीय लोग अनौपचारिक तौर पर ‘गुरुनानक रोड’ कहते हैं।

वहीं, विशाखापत्तनम में वर्तमान में कम-से-कम तीन गुरुद्वारे सक्रिय हैं। इनमें से सबसे पुराना गुरुद्वारा नानक दरबार 1972 में बंदरगाह स्थित गाड़ियों के कालोनी क्षेत्र में स्थापित हुआ था, दूसरा 1981 में सीथम्मधारा क्षेत्र में (गुरुद्वारा “साध संगत”), और एक नव निर्मित गुरुद्वारा 2004 में रक्षा कर्मियों की पहल से बना। ये गुरुद्वारे न सिर्फ धार्मिक स्थल हैं, बल्कि सांस्कृतिक मेल-जोल और सेवा के केंद्र भी बने हुए हैं। हर रविवार लंगर (सामूहिक भोजन) में सैकड़ों लोग बिना भेदभाव के भोजन करते हैं, वहीं गुरपुरब जैसे मौकों पर विशेष आयोजन किए जाते हैं।

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2019 में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर विशाखापत्तनम में भव्य नगर कीर्तन निकाला गया, जिसमें करीब 2,000 श्रद्धालुओं ने भाग लिया। बच्चों ने इस जुलूस में पारंपरिक मार्शल आर्ट “गतका” का प्रदर्शन किया और श्रद्धालुओं के लिए जगह-जगह जलपान का प्रबंध किया गया। इसी प्रकार विजयवाड़ा में ऑटो नगर से गुरुद्वारे तक प्रभात फेरी निकाली गई, जिसमें युवा लड़के-लड़कियों ने तलवारबाज़ी के कौशल दिखाए और कीर्तन गायन किया। इन आयोजनों में सिख-पंजाबी संस्कृति की छटा पूरे उल्लास से बिखरती है और स्थानीय लोग भी उत्साह से सहभागी बनते हैं।

व्यापार और अर्थव्यवस्था में योगदान

विभाजन के बाद आए सिख-पंजाबी परिवार अपने साथ उद्यमशीलता की भावना भी लाए। विजयवाड़ा पहुंचने पर इन परिवारों ने प्रारंभिक दौर में परिवहन और ट्रांसपोर्ट के कारोबार स्थापित किए। शहर की उभरती अर्थव्यवस्था में ट्रकों एवं परिवहन व्यवसाय ने पंजाबी समुदाय को पहचान दिलाई। समय के साथ इन्होंने ऑटोमोबाइल कलपुर्जों के व्यापार में खास जगह बना ली। आज विजयवाड़ा में अधिकांश सिख परिवार ऑटो स्पेयर-पार्ट्स और वाहन से जुड़े कारोबार में सक्रिय हैं, जबकि सिंधी, गुजराती व मारवाड़ी जैसे उत्तरी समुदाय अन्य व्यापार (वस्त्र, आभूषण, हार्डवेयर आदि) संभाल रहे हैं। गुरुनानक कॉलोनी समेत शहर के कई मुख्य व्यवसायिक क्षेत्रों में इन समुदायों की दुकानों और प्रतिष्ठानों को सफलता मिली है।

कई परिवार जो कभी छोटे पैमाने पर व्यवसाय शुरू करने वाले शरणार्थी थे, आज शहर के समृद्ध व्यापारियों में गिने जाते हैं। विशाखापत्तनम में भी सिख-पंजाबी समुदाय ने ऑटोमोबाइल, औद्योगिक आपूर्ति और होटल-रेस्तरां जैसे क्षेत्रों में योगदान दिया है। उत्तर भारतीय व्यंजनों और ‘पंजाबी ढाबा’ संस्कृति को इन प्रवासियों ने यहां लोकप्रिय बनाया है। स्थानीय लोगों के बीच पंजाबी खाने और पोशाक (सलवार-कमीज़ आदि) को अपनाने की झलक दिखाई देने लगी है, जो सांस्कृतिक मेल का संकेत है।

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