Who is Zubeidaa Begum: एक आज़ाद ख्याल महिला की कहानी, जो इतिहास और सिनेमा में अमर हो गई

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Who is Zubeidaa Begum: फिल्म ‘जुबैदा’ एक ऐसी महिला की कहानी है, जिसने अपनी जिंदगी में सच्चे प्यार की तलाश की, लेकिन सामाजिक बंधनों और परिस्थितियों ने उसे अधूरा छोड़ दिया। यह फिल्म पूर्व पत्रकार और लेखक खालिद मोहम्मद की मां जुबैदा बेगम के जीवन पर आधारित है। जुबैदा की कहानी न केवल उनके समय के सामाजिक नियमों को चुनौती देती है, बल्कि अपने साहसिक निर्णयों और ट्रैजिक अंत के कारण एक गहरी छाप छोड़ती है।

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कौन थे जुबैदा बेगम और उनकी कहानी? (Who is Zubeidaa Begum)

1949 में, एक नर्तकी और तलाकशुदा ज़ुबैदा बेगम की मुलाक़ात जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह (Maharaja Hanwant Singh) से हुई। दोनों ने तमाम विरोधों के बावजूद 17 दिसंबर 1950 को आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली। ज़ुबैदा ने हिंदू धर्म अपना लिया और अपना नाम बदलकर विद्यारानी रख लिया।

Who is Zubeidaa Begum Film Zubeidaa Facts
Source: Google

हनवंत सिंह की पहली पत्नी कृष्णा कुमारी ध्रांगध्रा की राजकुमारी थीं, लेकिन उनकी शादी सिर्फ़ डेढ़ साल ही चल पाई। इसके बाद महाराजा ने इंग्लैंड की सांडा मैकलॉज से भी शादी की, लेकिन वह रिश्ता भी ज़्यादा दिन नहीं चला।

हनवंत सिंह और जुबैदा की शादी के बाद, उन्हें उम्मेद भवन में रहने की अनुमति नहीं मिली। इसलिए, वे मेहरानगढ़ फोर्ट में रहने लगे। इस दौरान, उनके बेटे का जन्म हुआ।

कैसे हुई जुबैदा और महाराजा की मृत्यु?

26 जनवरी 1952 को महाराजा हनवंत सिंह और जुबैदा एक निजी विमान में यात्रा पर निकले। यह उनकी शादी के बाद सबसे खुशी के पलों में से एक था। लेकिन दुर्भाग्य से विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और दोनों की मौत हो गई।

साल 1952 में 28 साल की उम्र में हनवंत सिंह ने अपनी पार्टी बनाकर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव भी लड़े थे, जिनके परिणाम उनकी मृत्यु के बाद घोषित हुए। वह दोनों सीटों पर विजयी रहे, लेकिन उनकी आकस्मिक मृत्यु के कारण उपचुनाव कराना पड़ा।

फिल्म ‘जुबैदा’

जुबैदा की ज़िंदगी से प्रभावित होकर उनपर एक बॉलीवुड फिल्म भी बनाई गई। साल 2001 में रिलीज हुई फिल्म ‘जुबैदा’ का निर्देशन श्याम बेनेगल ने किया। यह उनकी ट्रिलॉजी का अंतिम अध्याय था, जिसमें ‘मम्मो’ (1994) और ‘सरदारी बेगम’ (1996) भी शामिल थीं। फिल्म में करिश्मा कपूर ने जुबैदा का किरदार निभाया, जिसे उनकी करियर की सर्वश्रेष्ठ परफॉर्मेंस माना गया।

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फिल्म ने हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। करिश्मा कपूर को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (क्रिटिक) का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। श्याम बेनेगल की यह फिल्म कमर्शियल और पैरलल सिनेमा के बीच की कड़ी मानी जाती है।

जुबैदा की कहानी का ऐतिहासिक महत्व

जुबैदा का जीवन न केवल एक महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह उस समय के समाज में महिलाओं की स्थिति को भी उजागर करती है। उनकी मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है और इतिहासकार सवाल उठाते हैं कि क्या उनकी मौत एक दुर्घटना थी या इसके पीछे कोई साजिश थी।

जुबैदा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  1. जुबैदा और महाराजा हनवंत की शादी सामाजिक और पारिवारिक विरोधों के बावजूद हुई थी।
  2. जुबैदा ने अपनी पहचान बदलकर हिंदू धर्म अपनाया और विद्यारानी नाम रखा।
  3. उनकी मृत्यु के बाद, महाराजा हनवंत के अधूरे राजनीतिक सपनों को उनकी पहली पत्नी कृष्णा कुमारी ने आगे बढ़ाया।
  4. फिल्म ‘जुबैदा’ को भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला।
  5. जुबैदा की कहानी समाज के नियमों के खिलाफ उनकी आजादी और प्यार की खोज का प्रतीक है।

जुबैदा की कहानी साहस, प्रेम और त्रासदी का एक अनूठा संगम है। यह न केवल एक महिला के संघर्ष और उसकी आज़ादी की तलाश को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखती है।

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