सपा सरकार पर लगा वो हैवानियत का धब्बा, जब दो नाबालिगों को मदरसे से उठा ले गए थे दरिन्दे…

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The Madrasa Kidnapping Scandal: 17 जनवरी 2007! उत्तरप्रदेश के इतिहास में हैवानियत की वो काली रात जिसका सच सत्ताधारियों ने राजनीतिक लोभ के चलते छुपा लिया. जब करेली मदरसे के हॉस्टल में रह रही दो नाबालिग मुस्लिम लड़कियों को तीन बंदूकधारी तमंचे की नोक पर उठा ले गए और नदी के किनारे पूरी रात सामूहिक बलात्कार करते रहे.

सुबह होने से पहले ठीक दोनों नाबालिगों को यथावास्था खून से लथपथ हालात में वो दरिन्दे मदरसे के दरवाजे पर फेंक गए. इस घटना ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था. तत्कालीन सपा सरकार बैकफुट पर आ गई थी. और मामले को छिपाने का पुरजोर जुगाड़ करने में जुटी थी क्योंकि ये मामला उन्ही के सांसद अतीक के भाई अशरफ से जुदा हुआ था इसलिए दुष्कर्म के आरोप में तीनों को जेल भेजा गया और फिर कुछ दिन बाद जेल से बाहर आ गए.

यह पहली घटना थी जिसमें अतीक ने अपने ही लोगों का मान सम्मान और समर्थन खो दिया था. पुलिस ने इस कांड में पांच रिक्शे वालों और दर्जी का काम करने वालों को पकड़ा था जिन्हें बाद में अदालत से राहत मिल गई. उन लोगों ने पुलिस पर फंसाने का आरोप लगाते हुए घटना में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया था. यह सवाल आज भी जिंदा है कि अगर वे असली आरोपी नहीं थे तो किसने इस कांड को अंजाम दिया था?

‘जब देर रात होती है हॉस्टल के दरवाजे पर दस्तक’

वो मदरसा करेली इलाके के महमूदाबाद इलाके में था.और उसका संचालक था साल 2006 में हुए वाराणसी बम धमाके के आरोपी वलीउल्लाह का भाई वसीउल्लाह. इस मदरसे में इलाहाबाद और आस पास के इलाके के गरीब घरों की तमाम लड़कियां पढ़ती थी. मदरसे में लड़कियों का हॉस्टल भी था. 17 जनवरी को हॉस्टल के दरवाजे पर दस्तक होती है.

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आमतौर पर देर रात हॉस्टल में कोई नहीं आता था. जब अन्दर से नाम पूंछा गया तो धमकी भरी आवाज़ में दरवाजे खोलने को कहा गया. दरवाजा खुला तो सामने 3 बंदूकधारी खड़े थे. तीनो एक साथ अन्दर घुसे. चूंकि लड़कियां एक हाल में सोती थी  तो वो सीधे वहीँ पहुंच गए.

नकाब उतरवाकर उठा ले गए हैवान

अन्दर घुसते ही गाली गलौज के साथ उन्हें नकाब उतारने को कहा गया. अब भई बन्दूक धारी गुंडों के सामने मजबूर लड़कियां क्या ही करती. और उन्होंने ने नकाब उतार दिए. दरिंदों ने उनमे से दो नाबालिगो को चुना और उठाकर ले जाने लगे.

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लड़कियों चिल्लाती रहीं, रहम की दुआ मांगने लगी लेकिन उन्होंने ने एक भी न सुनी. वे दोनों लड़कियों को उठा ले गए. बाहर उनके साथ दो लोग और शामिल हो गए. कुल पांच लोगों ने आगे नदी के किनारे दोनों लड़कियों के साथ कई कई बार दुष्कर्म किया. दोनों लड़कियों को सुबह होने से पहले लहूलुहान हालत में मदरसे के दरवाजे पर फेंक बदमाश भाग निकले.

उत्तर प्रदेश के राजनीति में आया भूचाल

तत्कालीन अखिलेश सरकार द्वारा इस संगीन मामले को छुपाने की पुरजोर कोशिश की गई. और गनीमत तो देखिये कि पुलिस ने सिर्फ छेड़खानी का मामला दर्ज किया था. लेकिन जब ये खबर अखबारों में छपी तो गैंगरेप समेत संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई. पुलिस की लापरवाही साफ थी.

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इस कांड में अशरफ के गुर्गों के शामिल होने के आरोप लग रहे थे. दो दिन बाद बसपा प्रमुख मायावती ने लखनऊ से ही ऐलान कर दिया कि इस कांड में सत्ता से जुड़े कुछ नेता और उनके गुर्गे शामिल हैं. उनकी सरकार आई तो वे सीबीआई जांच कराएंगी.

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इस वाकये बाद तो मानों उत्तरप्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया. जगह जगह प्रदर्शन होने लगे, जुलूस निकलने लगे थे. ये सब कंडों के चलते सपा सरकार बैकफुट पर दिखने लगी थी. मामले की गंभीरता और जनता के दबाव के चलते आनन फानन में पुलिस ने इस कांड का खुलासा करते हुए करेली के इखलाख अहमद और नौशाद अहमद समेत पांच लोगों की गिरफ्तारी दिखा दी.

पांचों रिक्शा चलाने और दर्जी का काम करते थे. पुलिस के खुलासे पर चहुँओर सवाल उठे लेकिन उन्हें जेल भेज दिया गया. हालांकि बाद में सभी छूट गए. उन्होंने बाहर आकर बताया कि पुलिस ने दबाव डालकर उनसे इस कांड में शामिल होने का बयान लिया था. घटना में शामिल लोगों को आज तक नहीं पकड़ा जा सका.

मायावती आई थी और कहा था कराएंगी जांच

इस मामले से तत्कालीन सरकार की कितनी किरकिरी हुई थी इस बात का अंदाजा आप इस से ही लगा सकते हैं कि बसपा प्रमुख मायावती खुद इलाहाबाद के उस मदरसे में गयी थी और उन्होंने अतीक और उनके भाई पर सीधा आरोप लगाया था. जिसके बाद मायावती ने कहा थी कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो सीबीआई की जांच करायी जाएगी.

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लेकिन सिर्फ बसपा ही नहीं कांग्रेस भी काफी आक्रामक दिखी थी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष को इलाहाबाद भेजा गया था। सामाजिक संगठन को प्रदेश स्तर पर विरोध कर रहे थे। बैकफुट पर आई सपा ने वरिष्ठ नेता अहमद हसन को यहां भेजा। उन्होंने लड़कियों के घर वालों को पांच पाच लाख का चेक देना चाहा लेकिन उन्होंने पैसे लेने से इनकार कर दिया।

नहीं हुई सीबीआई जांच

जब बसपा की सरकार आई तो तुष्टीकरण की राजनीती का नमूना पेश कर गई. मामले की जांच के लिए सीबीआई की एक स्पेशल टीम का गठन तो किया गया था. और सबूत और फाइल्स भी सौंपी गयी लेकिन उनहोंने जांच को आगे बढ़ने से इसलिए माना कर दिया कि मामला सीबीआई का नहीं है. जिसके बाद मामला सीबीसीआईडी को सौंप दिया गया। लेकिन इस कांड के असली गुनाहगार आज तक नहीं पकड़े गए.

अतीक ने खोया अपने लोगों का सम्मान, फिर कभी नहीं जीता चुनाव

अतीक अहमद के पराभव में मदरसा कांड का बहुत बड़ा योगदान है। सरकारी जांचों में भले ही अतीक और अशरफ के शामिल होने का पता न चला हो लेकिन जनता बेवक़ूफ़ नहीं है जो ये जान सके. जगल में आग लगे और जानवरों को पता न चले ऐसा कैसे हो सकता है?

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लेकिन पुलिस सूत्रों ने बताया था कि असली गुनागारों को बचाने में अशरफ ने अपने रसूख का इस्तेमाल किया था. शहर का यह ऐसा कांड था जिसके बाद अतीक या उसके परिवार के किसी शख्स ने चुनाव नहीं जीता. इस कांड ने अतीक अपने लोगों का ही मान सम्मान और समर्थन खो दिया था.

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