जानिए क्यों उठ रही है अहीर रेजीमेंट के गठन की मांग, भारत-चीन युद्ध से हैं इसका संबंध

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अहीर रेजीमेंट के गठन की उठी मांग 

अहीर रेजीमेंट: आज भारतीय सेना (indian army) में काफी लम्बे से अहीर रेजीमेंट (Ahir Regiment) की मांग चली आ रही है ऐसे में इस मुहीम को आगे बढ़ाने के लिए आजमगढ़ से भाजपा सांसद (BJP MP from Azamgarh) दिनेश लाल यादव  उर्फ निरहुआ (Dinesh Lal Yadav Nirhua) ने हाल ही में संसद में  अहीर रेजीमेंट के गठन की मांग उठाई और  इस मांग को चर्चा में ला दिया। 1962 के युद्ध में अहिरों के शौर्य को याद दिलाते हुए निरहुआ ने फिर से इस मांग को आगे बढ़ाया। 

Also Read- जानिए राज्यों और जाति के नाम पर क्यों रखे जाते हैं रेजिमेंट के नाम.

अहीर रेजीमेंट की बात करें तो इसमें अहिरवाल क्षेत्र के जवानों की शौर्यगाथाओं से भरा हुआ है अहिरवाल क्षेत्र दक्षिणी हरियाणा के जिले रिवाड़ी, गुरुग्राम ,महेंद्रगढ़,  में आता है, इसका खास संबंध राव तुला राम से है, जिन्होंने 1957 की क्रांति में अपने शौर्य का परिचय दिया था। इसी क्षेत्र से अहीर रेजिमेंट की सबसे पहले मांग उठी थी, जिसके बाद इस मांग को अहीर आबादी वाले क्षेत्रों ने आगे बढ़ाया।  

क्या है 1962 और अहीर रेजीमेंट का कनेक्शन ?

बात 1962 के भारत-चीन युद्ध (India-China War) के दौरान जब अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के आधे से भी ज़्यादा हिस्से पर चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (Chinese People’s Liberation Army) ने अस्थायी रूप से कब्जा कर लिया था लेकिन अचानक ही चीनी सेना (China army ) ने युद्ध पर विराम लगा दिया और मैकमोहन रेखा के पीछे लौट गई। भारत-चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई की एक अनकही मिसाल है जो की 17000 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था। इस युद्ध को आजतक कोई भूल नहीं पाया इसमें अहीर सैनिको ने Rezang La (a mountain pass on the Line of Actual Control) अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया था इस कंपनी की 13वीं बटालियन में ज्यादातर जवान अहीर थे। अहीर(यादव) समाज के लोग काफी वक़्त से वक्त से यह मांग कर रहे हैं। साल 2012 में जब 1962 के युद्ध को 50 साल पूरे हुए थे उस वक्त भी इन्होंने अहीर रेजीमेंट के गठन करने की मांग उठायी थी और साथ ही कई पॉलिटिकल पार्टियों ने भी बढ़-चढ़कर इसका समर्थन किया था। 

कब और कैसे शुरू हुई अहीर रेजीमेंट की मांग 

अहीर रेजीमेंट को अपनी अलग पहचान दिलाने की मांग उठाने से पहली अहीर जवानों को पहले से स्थापित कुमायूं, जाट, राजपूत और बाकी  रेजिमेंट में विभिन्न जाति के जवानों  के साथ सेना में शामिल किया जाता है। उन्हें ब्रिगेड ऑफ गार्ड, पैराशूट रेजिमेंट, आर्मी सर्विस कॉर्प, आर्टिलरी इंजीनियर, सिग्नल्स में भर्ती किया जाता है। शुरुआत में अहिरों को हैदराबाद के 19वें रेजीमेंट में उत्तरप्रदेश के राजपूतों, मुसलमानों और अन्य जाति के लोगों के साथ भर्ती किया जाता था   1922 में 19 हैदराबाद रेजिमेंट को डेक्कन मुस्लिम में बदल दिया गया और 1930 में इसमे कुमांयूनी, जाट, अहिर और अन्य जाति के लोगों को शामिल किया गया।

क्यों याद किया जाता है 1962 का युद्ध

रेजांग ला युद्ध में प्रसिद्धि प्राप्त इस रेजीमेंट का नाम 1945 में बदलकर 19कुमायूं कर दिया गया और उसके बाद कुमायूं रेजीमेंट में ही अहीर रेजिमेंट की स्थापना की गयी। 1962 के युद्ध में 13कुमायूं बटालियन जिसमे अधिकतर जवान अहीर थे उन्होंने लद्दाख में बिना हथियार के चीनी सैनिकों का डटकर सामना किया था और 13वीं बटालियन के 120 अहीर जवानों ने जिंदगी की आखिरी सांस तक युद्ध लड़े, यह युद्ध 18 नवंबर 1962 को 17000 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया। मेजर शैतान सिंह की अगुवाई में जवानों ने चीन को खूब छकाया। 117 में से 114 जवान इस ट्रूप में अहीर थे, जिसमे से सिर्फ 3 जवान ही जिंदा बचे थे, उन्हें भी गंभीर चोट लगी थी। यह अहिर ट्रूप हरियाणा की रेवाड़ी-महेंद्रगढ़ से जुड़ी थी। जब सर्दियां खत्म हुई उसके बाद जवानों के पार्थिव शरीर को वापस लाया गया इन जवानों के कारतूस खत्म हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपने हथियार नहीं छोड़े थे। मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 8 जवानों को वीर चक्र और कई अन्य को सेना मेडल से सम्मानित किया गया था।

राजनीतिक पार्टियों ने भी समय-समय पर उठाई अहीर रेजीमेंट बनाने की मांग 

साल 2018 जब वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) देश में रक्षामंत्री का कार्यभार संभाल रही थी उस वक़्त केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह रक्षा मंत्री को खत लिखकर रेजीमेंट की मांग को आगे किया था। इसी साल 15 मार्च को कांग्रेस सांसद दीपेंदर सिंह हुडा ने राज्यसभा में यदुवंशी पराक्रम का हवाला देते हुए अहीर रेजीमेंट की मांग उठायी थी। इसके पहले 11 फरवरी को बसपा सांसद श्याम सिंह यादव ने भी अहीर रेजिमेंट की मांग को आगे बढ़ाया था। बिहार में लालू प्रसाद की बेटी राज लक्ष्मी यादव ने इस मांग को 2020 में विधानसभा चुनाव में उठाया था। सपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में अहीर रेजिमेंट का वादा किया था।

‘अहीर रेजीमेंट ‘ को लेकर क्या है भारतीय सेना का रवैया 

अगर अहीर रेजीमेंट पर अभी तक हम भारतीय सेना के रुख की बात करें तो हर किसी ने नए रेजिमेंट की मांग को खारिज कर दिया है और कहा की पहले से बनी हुई रेजिमेंट जैसे डोगरा, सिख, राजपूत और अन्य रेजीमेंट ही रहेंगी, और किसी भी नई रेजीमेंट की स्थापना नहीं होगी फिर चाहे वो अहीर, हिमाचल या गुजरात रेजिमेंट हो। लेफ्टिनेंट जनरल आरएस कादयान (रिटायर्ड) जोकि पूर्व डिप्टी आर्मी चीफ ऑफ स्टाफ हैं उनका कहना है कि सेना मौजूदा तौर पर बेहतर काम कर रही है, लिहाजा अब नई रेजिमेंट को बनाने की जरूरत नहीं है।

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