जानिए पंजाब-हरयाणा के बीच का 42 साल पुराना SYL मुद्दा क्या है ? आज तक क्यों लड़ रही दोनों राज्यों की सरकार और जनता ?

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जल को करें सोच-समझकर करें खर्च

जल को हम जीवन भी बोलते है और जैसे जीवन के बिना इंसान का शरीर मुर्दा पड़ जाता है ठीक इसी तरह प्रकृति भी जल के बिना मृत पड़ जाएगी। इंसान, वातावरण और यहाँ तक धरती पर भी जल का बहुत अहम योगदान है। ये जो दुनिया में climate change नाम का आपदा चल रहा है उसमे भी जल या पानी का हाथ आपको देखने को मिलेगा। दूसरी तरफ कई देशों और राज्यों के बीच भी पानी एक बहुत बड़ी समस्या बनते जा रही है। आने वाले भविष्य में अगर हमने पानी को सोच-समझकर नहीं खर्च किया तो ये जल इंसानों के बीच भी दुश्मनी का कारण बन जाएगी। फिलहाल बात करते है हम इस पानी के कारण दो राज्यों के लड़ाई के बारे में, पंजाब-हरयाणा, इन दोनों राज्यों के बीच भी जल को लेकर बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है और ये लम्बे समय से चलता आ रहा है। इस मुद्दे का नाम है सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर मुद्दा।

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पंजाब हरयाणा बंटवारे के साथ जन्मा था ये मुद्दा

आज हम बात करेंगे दो राज्यों के बीच पानी को लेकर टकराव के बारे में। कहानी शुरू होती है पंजाब और हरयाणा के बंटवारे के साथ। 1966 का साल था जब पंजाब और हरयाणा दो अलग-अलग राज्यों के रूप में विभाजित हुए। इस साल सिर्फ हरयाणा का ही जन्म नहीं हुआ था, हरयाणा के साथ-साथ, इन दो राज्यों के बीच एक बहुत बड़े विवाद का भी जन्म हुआ था, जो वर्तमान में भी इन दोनों राज्यों के बीच संकट बना हुआ है। दोनों राज्यों के बटवारे से पहले सतलुज नदी पंजाब की अन्नदाता थी, लेकिन बटवारे का बाद सतुलज नदी के पानी पर हरयाणा ने भी अपना हक़ जताना शुरू किया।

क्या हुआ इंदिरा सरकार की SYL योजना का ?

इस विवाद के शुरू होने के ठीक 10 साल बाद उस समय की इन्दिरा गाँधी सरकार ने इस विवाद को सुलझाने के लिए एक SYL नाम की योजना बनाई। इस योजना के तहत दोनों राज्यों के बीच विवाद को सुलझाने के लिए और हरयाणा तक सतलुज का पानी पहुँचाने के लिए, सतलुज को यमुना से जोड़ने का प्लान बना। सतलुज और यमुना नदी को कनेक्ट करने के लिए एक नहर (canal) बनाने के प्लान पर दोनों राज्यों की सरकार ने आपसी सहमति से अनुमति दी। इसके बाद एक तरफ सतलुज नदी जहां हरयाणा के किसानों के लिए जीवन रेखा बन गई वहीं दूसरी तरफ पंजाब को घटते जल-स्तर की समस्या सताने लगी हुए फिर शुरू होता है इस समस्या पे राजनीति का गंदा खेल। इस पानी के समस्या पे राजनीति की चिंगारी से आग तब लगी जब 2004 में पंजाब सरकार ने विधानसभा में एक बिल पास कर SYL मुद्दे पर पानी की समस्या को लेकर दोनों राज्यों के बीच हुए सारे समझौतों को समाप्त कर दिया।

केंद्र ने खट-खटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

जिसके बाद से पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्री विवादास्पद सतलुज यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके। दोनों राज्यों की जनता और सरकार पानी को लेकर आपस में भिड़ने लगे, जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार के निर्णय के खिलाफ देश के उच्च न्यायालय यानि की सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खट-खटाया। जिसके बाद से आज के दिन तक दोनों राज्यों के बीच का ये मुद्दा सतलुज के बीच मजधार में और गहराता जा रहा है।

आज तक नहीं निकला कोई समाधान

इन दोनों राज्यों के बिच इस विवाद का कागभाग 42 साल पूरा हो चूका है, पर अभी तक सतलुज-यमुना के बीच के नहर का काम अधूरा ही है। मिली जानकारी के मुताबिक इस नहर का 90 फीसदी तक काम पूरा हो चूका है लेकिन दोनों राज्यों में हो रही गन्दी राजनीति के कारण पंजाब के हिस्से का 10 प्रतिशत नहर का काम अभी भी बचा हुआ है। हाल ही में SYL नहर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से चंडीगढ़ स्थित हरियाणा निवास पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बीच बैठक हुई थी। दुर्भाग्यपूर्ण आज तक दोनों राज्यों के सरकारों के बीच इस जल के समस्या पर कोई सहमति नहीं बन सकी। ऐसे में एक तरफ जहां राजनीतिक पार्टियां इस समस्या को लेकर अपनी चुनावी रोटी सेकने में लगी है, वहीं दूसरी तरफ दोनों राज्यों की जनता इस पानी की समस्या को लेकर आपस में जल रही है। अब देखना दिलचस्प होगा की क्या देश का सर्वोच्च न्यायालय, केंद्र सरकार और दो राज्यों (पंजाब-हरयाणा) की सरकार मिलकर इस समस्या को हल कर पाएगी या फिर सरकारें दो राज्यों के बीच, इस मुद्दे पर अपनी चुनावी रोटियां सेंकती रहेगी और जनता आपस में पिसती रहेगी?

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