Delhi Cuddle Therapy: दिल्ली-NCR में कडल थेरेपी का बिजनेस, अकेलेपन के नाम पर करोड़ों की मंडी या नया वेलनेस ट्रेंड?

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Delhi Cuddle Therapy: दिल्ली-NCR… भारत का सबसे बड़ा मेट्रोपॉलिटन रीजन। जहां सड़कें बड़ी हैं, फ्लाईओवर ऊंचे हैं और मॉल्स की कोई कमी नहीं, लेकिन दिलों के बीच फासले किसी रिंग रोड से भी ज्यादा चौड़े हो चुके हैं। यहां की करोड़ों की आबादी ऐसी है, जैसे कबूतर के जोड़े सटे हुए, लेकिन एक-दूसरे से अनजान। एक के घर में आहट होती है, दूसरे को पता तक नहीं चलता।

इसी भीड़ में अकेले होते जा रहे लोग अब “कडल थैरेपी” का सहारा ले रहे हैं। जी हां, पैसे देकर गले लगना, किसी के साथ बैठना, बातें करना और सिर्फ सुनना या सुना देना… कुछ घंटों के लिए भावनात्मक राहत की यह नई दुकान अब दिल्ली के कोनों-कोनों में खुल चुकी है।

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क्या है कडल थैरेपी? Delhi Cuddle Therapy

कडल थैरेपी, यानी गले लगने की थेरेपी, जिसमें किसी पेशेवर ‘थैरेपिस्ट’ के साथ सीमित वक्त के लिए एक भावनात्मक रिश्ता साझा किया जाता है। इसमें फिजिकल टच होता है लेकिन दावा ये है कि इसमें नो इंटिमेसी पॉलिसी अपनाई जाती है। यानी यौन संबंधों की कोई गुंजाइश नहीं कम से कम कागजों पर।

ये थैरेपी अब धीरे-धीरे भारत में पैर पसार रही है, खासकर दिल्ली जैसे महानगरों में, जहां अकेलापन अब कोई भावना नहीं, बल्कि एक सामाजिक स्थिति बन चुकी है।

aajtak.in की अंडरकवर रिपोर्टिंग

आजतक की टीम ने इस तेजी से उभरते प्रोफेशन पर गहराई से रिसर्च की। अंडरकवर नाम और फर्जी प्रोफेशन के साथ उन्होंने कडल थैरेपिस्ट से संपर्क किया।

फोन उठाती है एक महिला एजेंट, जो शुरुआत में ही बता देती है “मेल थैरेपिस्ट इस वीकेंड के लिए प्री-बुक्ड हैं। लेकिन फीमेल थैरेपिस्ट से फायदा नहीं होगा। क्रॉस-जेंडर कडलिंग ज्यादा एफेक्टिव मानी जाती है।”

हमारी बातचीत की अगली कड़ी में एंट्री होती है “रॉनी” की। पेशे से कडल थैरेपिस्ट, जिसने दावा किया कि उसने अमेरिका के टेनेसी में आठ साल पहले कडल थैरेपी सीखी थी। असल नाम बताने से इनकार, वीडियो कॉल पर मिलने से मना, और साफ कहा—”नो पिक्चर पॉलिसी है।”

सेशन कैसे होते हैं?

रॉनी ने बताया कि तीन घंटे के एक सेशन के लिए वह ₹4999 चार्ज करता है जो इस इंडस्ट्री में ‘रीजनबल’ माना जाता है। अन्य सेंटरों में ये रेट ₹10,000 से ऊपर तक जाता है।

सेशन की शुरुआत होती है आइस ब्रेकिंग से। एक एल-शेप सोफा पर साथ बैठकर खुलकर बातचीत की जाती है। थैरेपिस्ट बिना किसी जजमेंट के सुनता है चाहे ऑफिस की टेंशन हो, ब्रेकअप हो, या फैंटेसीज़।

रॉनी ने एक किस्सा साझा किया एक महिला क्लाइंट जो चेन्नई से गुड़गांव आई थी। लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में टूट चुकी थी, भावनात्मक रूप से पूरी तरह बिखरी हुई। उसके साथ उन्होंने ‘रिलेशनशिप डे रीक्रिएशन’ किया वही खाना, वही फिल्म, वही दिनचर्या जिससे वो फिर से इंसानी जुड़ाव महसूस कर सके।

सेफ्टी और सीमाएं

थैरेपिस्ट ने साफ किया कि यह एक भरोसे पर चलने वाला प्रोफेशन है। क्लाइंट चाहे तो डोक्युमेंटेशन (ID प्रूफ, एग्रीमेंट्स) करवाया जा सकता है। लेकिन ज़्यादातर लोग ऐसा नहीं करते, क्योंकि ‘विश्वास’ ही इसकी नींव है।

प्रोटोकॉल कुछ यूं हैं:

  • सेटअप में एसी, काउच, साउंड सिस्टम, पानी, कॉफी सब रहता है।
  • कोई क्लाइंट घर बुलाना चाहे या होटल में सेशन चाहें तो व्यवस्था हो सकती है।
  • नो रिकॉर्डिंग पॉलिसी कर तहत फोन दूर रखा जाता है।
  • सेशन के दौरान अगर इमोशनल आउटबर्स्ट हो जाए या क्लाइंट असहज महसूस करे, तो ब्रेक लिया जा सकता है।
  • कोई भी फिजिकल एक्टिविटी क्लाइंट की सहमति से ही होती है।

इंटिमेसी की लाइन कितनी पतली है?

बातचीत के दौरान कई सवाल सामने आते हैं:

  • अगर क्लाइंट खुद इंटिमेसी की ओर बढ़े?
  • अगर भावनात्मक जुड़ाव फिजिकल हो जाए?
  • अगर कडलिंग की आड़ में सेक्स वर्क शुरू हो जाए?

रॉनी कहते हैं, “हम खुद पहल नहीं करते। लेकिन अगर दोनों एडल्ट्स तैयार हों, तो हम रोकते भी नहीं।” यानी ना हां होती है, ना मना होता है।

कानूनी स्थिति क्या है?

आपको बता दें, भारत में कडल थैरेपी के लिए कोई रेगुलेटरी बॉडी नहीं है। न तो इसके लिए कोई मान्यता है, न लाइसेंसिंग सिस्टम। इसलिए यह पूरी तरह ‘ग्रे ज़ोन’ में आता है।

सीनियर एडवोकेट मनीष भदौरिया कहते हैं, “जब तक दो वयस्कों की सहमति से कडलिंग हो रही है, और सेक्स नहीं हो रहा, कोई दिक्कत नहीं। लेकिन अगर पैसे लेकर यौन संबंध स्थापित हुआ, तो यह इममॉरल ट्रैफिकिंग प्रिवेंशन एक्ट के तहत अपराध होगा।”

कडल थैरेपी को लेकर पुलिस का भी नजरिया सतर्क है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया—

“अगर किसी सेंटर में सेक्स वर्क की आड़ में कडलिंग हो रही हो, तो हम रेड डाल सकते हैं। पीड़िता की शिकायत पर FIR भी होगी। और अगर नाबालिग जुड़ा हो, तो पॉक्सो एक्ट लगेगा।”

क्या ये वेलनेस है या धोखा?

डॉ. उज्ज्वल सरदेसाई (मनोविज्ञानी, MGM कॉलेज इंदौर) कहते हैं:

“ऑक्सीटोसिन रिलीज़ तो होगा, लेकिन इसका लॉन्ग टर्म असर उल्टा भी हो सकता है। कडलिंग के जरिए अगर एक व्यक्ति भावनात्मक रूप से जुड़ जाए और फिर बार-बार ना मिले, तो डिप्रेशन बढ़ सकता है।”

उनके मुताबिक, किसी अनजान को पैसे देकर अपनापन खरीदना, एक तरह का भ्रम है, जो बाद में बड़ा मानसिक संकट बन सकता है।

संभावनाएं और खतरे साथ-साथ

कडल थैरेपी एक तरफ जहां अकेलेपन से जूझ रहे लोगों के लिए तात्कालिक राहत देती है, वहीं इसका लंबे समय का असर, नैतिक और कानूनी प्रश्न भी पैदा करता है।

एक तरफ यहां “मेरे पास आओ, मैं गले लगूंगा” जैसे ऑफर हैं, दूसरी तरफ थैरेपी की आड़ में चल रहे सेंटर किसी सेक्स स्कैंडल में भी तब्दील हो सकते हैं।

Stranger Meets नामक प्रोग्राम, जहां अनजान लोग मिलते और एक-दूसरे को गले लगाते हैं, ये भी एक तरह से भावनात्मक स्पीड-डेटिंग है।

कहां खड़ा है समाज?

दिल्ली जैसे शहरों में, जहां लोग दिन भर मेट्रो में हजारों लोगों के बीच खड़े रहते हैं लेकिन किसी से बात नहीं करते, वहां “पेड इमोशनल इंटिमेसी” का यह कांसेप्ट तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

ये रेफ्रिजरेटेड दोस्ती है जिसमें न गर्मजोशी है, न वक़्त के बाद कोई गारंटी। सब कुछ घड़ी की सुइयों पर टिका है।

गले लगने की यह थेरेपी जितनी मासूम लगती है, उतनी है नहीं। इसमें भावनाएं हैं, शरीर है, पैसा है और कई बार पनपते रिश्ते भी। और इन्हीं के बीच छुपे हैं कई सवाल—जिनका जवाब शायद वक्त ही देगा।

कडल थैरेपी फिलहाल भारत में वैधानिक रूप से ग्रे जोन में है। यह एक नई वेलनेस इंडस्ट्री बन रही है, जिसमें अकेलेपन की पीड़ा को टारगेट किया जा रहा है।

लेकिन इसके पीछे इमोशनल अटैचमेंट, पर्सनल बाउंड्रीज, कानूनी रिस्क और प्रोफेशनल एथिक्स के कई मुद्दे छिपे हैं। समाज को तय करना है कि वह इसे ‘थैरेपी’

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