घर-जमीन न बंटे इसलिए बंट जाती है पत्नी, हिमाचल के इस गांव में सदियों से चली आ रही है ‘द्रौपदी प्रथा’

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महाभारत की द्रौपदी तो आप सभी को याद ही होगी, जिनका बंटवारा पांडु के पांच पुत्रों में हो गया था। जिसके बाद द्रौपदी उन पांचों भाइयों की पत्नी बन जाती है। खैर, ये तो कुछ हजारों साल पुराने इतिहास की बात है, लेकिन आपको हैरानी होगी कि भारत के हिमाचल प्रदेश में आज भी कई ऐसी द्रौपदी हैं जिन्हें भाइयों के बीच पत्नी के रूप में बांट दिया जाता है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं हिमाचल के एक ऐसे समुदाय की जहां एक से ज्यादा भाइयों को एक ही पत्नी रखने की प्रथा है। आज भी इस समुदाय में द्रौपदी जैसी शादी का चलन है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि यहां की महिलाओं के 5 या उससे ज्यादा पति होते हैं। यानी एक घर में कितने भी बेटे हों, उनकी शादी एक ही लड़की से होती है और सभी भाइयों की पत्नी एक ही होती है।

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हाटी समुदाय में चल रही है ये प्रथा

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की शिलाई तहसील में हाटी नाम का एक समुदाय रहता है। इस समुदाय में एक विशेष प्रथा आज भी विद्यमान है जिसे द्रौपदी या जोड़ीदार प्रथा कहा जाता है, अंग्रेजी में इसे पॉलीएंड्री प्रथा कहा जा सकता है। इस समाज में बहुपति प्रथा न जाने कब से चली आ रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब लड़के-लड़कियां शादी के लायक हो जाते हैं तो उनकी जोड़ी का फैसला आमतौर पर लड़के-लड़की के परिवार वाले करते हैं, लेकिन इसमें लड़की की सहमति बहुत जरूरी होती है। आज भी हिमाचल से सटे उत्तराखंड के जौनसार इलाकों में आपको एक ही गांव में ऐसी कई शादियों के उदाहरण मिल जाएंगे। इस प्रथा में मूलतः दो या दो से अधिक भाइयों की एक ही पत्नी होती है।

कैसे बनता है पतियों और पत्नी में तालमेल

इस समाज के लंबे इतिहास पर नजर डालें तो ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं जहां पत्नी पर अधिकार को लेकर परिवार में कलह हो। इस समाज से जुड़े लोगों का कहना है कि शादी से पहले सभी भाइयों में आपसी सहमति और संतुष्टि होनी चाहिए, तभी यह प्रथा आगे बढ़ती है। इस समुदाय के अपने विशेष देवता भी हैं। हाल ही में भारत सरकार ने इस समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल कर लिया है और भारत का संविधान अनुसूचित जनजातियों को अपने रीति-रिवाजों का पालन करने की आजादी देता है। हालांकि, हाटी समुदाय के अधिकांश लोग हिंदू धर्म का पालन करते हैं, इसलिए उनके विवाह और तलाक का फैसला हिंदू विवाह अधिनियम के तहत किया जाता है।

आखिर यह प्रथा क्यों शरू हुई?

गांव के लोग इसके बारे में कई तरह की बातें बताते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि जिन इलाकों में यह प्रथा शुरू हुई, वे भौगोलिक दृष्टि से बहुत कठिन और दुर्गम पहाड़ी इलाके थे और यहां किसी व्यक्ति की जान जाने की संभावना बहुत अधिक थी। इसलिए, एक महिला को विधवा होने और उसके भविष्य को बर्बाद होने से बचाने के लिए उसकी शादी एक से अधिक पुरुषों से की जाती थी। इस प्रथा को लेकर एक और तर्क यह दिया जाता है कि यहां के परिवार अपनी जमीन का बंटवारा रोकने के लिए सभी भाइयों की शादी एक ही लड़की से कर देते हैं। दरअसल पहाड़ी इलाकों में बड़े ज़मीन भूभागों की अक्सर कमी होती है। ऐसी में जमीन को बांटने के बजाय पत्नी को ही आपस में बांट दिया जाता है। वहीं, पत्नी के साथ समय का सही बंटवारा होने से इस प्रथा से वैवाहिक जीवन पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता है। सभी बच्चे अपने कानूनी पिता को पिता और अपने अन्य भाइयों को मंझला पिता, छोटा पिता आदि कहकर बुलाते हैं।

वर्तमान समय में अगर किसी घर में दो भाई हैं तो दोनों एक ही महिला से शादी करेंगे। यदि एक भाई कुछ दिनों के लिए रोजगार के लिए शहर जाता है, तो दूसरा भाई पत्नी की देखभाल करेगा, वहीं पहले भाई के लौटने पर दूसरा भाई शहर जाएगा और पहला भाई घर पर पत्नी के साथ समय बिताएगा। फिलहाल यह प्रथा केवल उन्हीं परिवारों तक सीमित रह गई है जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है।

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