दूध बेचने वाले की बेटी बनी IAS ऑफिसर, इस तरह हासिल किया मुकाम

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भारत की सबसे कठिन परीक्षासों में से एक यूपीएससी पास करने का सपना कई लाख लोग देखते हैं और यूपीएससी की तैयारी करते हैं. यूपीएससी पास करने के सपना देखने वाले लोगों में क्कुह ही लोग होते हैं जिनके सपने पूरे होते हैं और कई लोग होते हैं जिनक UPSC पास करने का सपना सपना ही रह जाता है. वहीं कहा ये भी जाता है कि यूपीएससी पास करने के दिमाग, पैसों और शारीरिक रूप से तैयार होना पड़ेगा और तभी जाकर UPSC पास कर सकते हैं. जहाँ पैसों की बात आती है वहां आम आदमी इस मामले में हार जाता है क्योंकि पैसा नही होने की वजह से कई लोग UPSC की तयारी नहीं करते हैं लेकिन अनुराधा पाल इस बात को गलत साबित कर दिया और बताया की एक बार निश्चय कर लिया जाए तो हर इम्तिहान को पास किया जा सकता है.

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आईएएस के पिता बेचते थे दूध 

आईएएस अनुराधा पाल जिनकी ज़िन्दगी में कई सारी मुश्किलें आई लेकिन इस मुश्किलों का समाना करते यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल की। अनुराधा हरिद्वार के एक छोटे से गाँव के एक साधारण परिवार से हैं। वहीँ बचपन में उन्हें कई आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनके पिता दूध बेचते थे लेकिन इस काम ज्यादा कमाई नहीं होने की वजह से परिवार को कई सारी मुश्किलों का समाना करना पड़ा.

आईएएस अनुराधा पाल की स्कूली शिक्षा हरिद्वार के जवाहर नवोदय विद्यालय में हुई और इसके बाद अनुराधा अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए दिल्ली चली गईं। वह जीबी पंत विश्वविद्यालय गईं और बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की.

कोचिंग की फीस भरने के लिए छात्रों को पढाया 

वहीं परिवार को सपोर्ट करने के लिए टेक महिंद्रा कंपनी में जॉब करी और कुछ समय तक काम करने के बाद, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि यूपीएससी उनका पेशा है। वहीँ इसके बाद वह रूड़की के एक कॉलेज में लेक्चरर के रूप में शामिल हुईं और साथ में यूपीएससी की भी तैयारी करने लगी. वह अपनी कोचिंग की फीस भरने के लिए छात्रों को ट्यूशन भी पढ़ाती थीं.

दूसरी बार में बनी उत्तराखंड का डीएम

साल 2012 में अपने पहले प्रयास में इसे उपस्कर की परीक्षा पास कर ली लेकिन उस समय उनकी AIR 451 थी, इसलिए उन्होंने दिल्ली में निर्वाण आईएएस अकादमी में दाखिला लिया, जिससे उनकी तैयारी मजबूत हो गई। चूंकि वह काम भी कर रही थी, इसलिए उसने छोटे-छोटे लक्ष्य हासिल करने के लिए समय का समझदारी से प्रबंधन किया, जिन्हें पूरा करना आसान था. वहीं, उन्होंने 2015 में अपने दूसरे प्रयास में 62 अंकों के साथ यूपीएससी में सफलता प्राप्त की और इस कामयाबी को हासिल करते हुए अब उत्तराखंड में बागेश्वर की जिला जिला मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत हैं.

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