इस देश में भारतीय समाज की तरह बच्चे को पालना है कानून का उल्लंघन, जानिए एक माँ के बच्चे छिन जाने की कहानी

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साल 2023 के मार्च महीने में बड़े परदे पर रानी मुखर्जी की एक फिल्म आई और इस फिल्म का नाम ‘मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ था. इस फिल्म में जहाँ रानी मुखर्जी मुख्य किरदार में थी तो वहीं कई सारे एक्टर ने भी इस फिल्म में काम किया. ये फिल्म एक मां की कहानी है जो अपने बच्चों के लिए पूरी नॉर्वे अथॉरिटी से भिड़ जाती है और कई सारे संघर्ष करने के बाद इस अपने बच्चो वापस लाती है. फिल्म ‘मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ काफी इमोशनल हैं. इस फिल्म में एक माँ  का दर्द और अपने बच्चों को पाने का संघर्ष दिखाया गया है. इस फिल्म के अंत में देखा गया कि देविका को काफी संघर्ष करने के बाद आखिरकार अपने बच्चों की कस्टडी मिल जाती है और अंत में सबकुछ ठीक हो जाता है. ये कहानी एक असली माँ सागरिका चक्रवर्ती की कहानी है जो इस फिल्म एक दौरान चर्चा में आई और सागरिका चक्रवर्ती द्वारा  किया गया संघर्ष इस फिल्म में देखा जा सकता है. जहाँ फिल्म के अंत में देबिका को आखिरकार अपने बच्चों की कस्टडी मिल जाती है तो वहीं सागरिका चक्रवर्ती को भी आखिर में अपने बच्चों की कस्टडी मिल जाती है.

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story of Sagarika Chakraborty
Source- Google

जानिए क्या था मामला

साल 2007 में जब सागरिका चक्रवर्ती नाम की एक लड़की की शादी अनुरुप भट्टाचार्य नाम के शख्स से हुई जो पेशे से Geophysicist हैं. इसी बीच नार्वे में उनकी जॉब लग गई. जिसके बाद ये कपल वहां जाकर सेटल हो गया.

वहीं साल 2008 में सागरिका ने एक बच्चे को जन्म दिया लेकिन उन्हें पता चला कि ये बच्चा सामान्य नहीं है. उन्हें अपने बच्चे में ऑटिज्म के लक्षण नजर आए जो एक तरह की लाइलाज बीमारी थी. जहाँ ये दोनों अपने इस बच्चे का पूरी तरह  से देखभाल करने लग गए तो वहीं साल 2010 में सागरिका ने एक और बच्चे को जन्म दिया.

जहाँ बीमार के कारण इस कपल का पहला बच्चा अभिज्ञान अजीब तरह का व्यवहार करता जिसके कारण सागरिका परेशान रहती तो वहीं यही वजह है कि वो गुस्से में उसे कई बार थप्पड़ भी मार देती थी. वहीं नॉर्वे के नियमों के अनुसार, जो अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर पाता है, तो वहां की सरकार कानून के अनुसार उनके बच्चों की कस्टडी खुद लेकर उन्हें चाइल्ड वेलफेयर सर्विस टीम को सौंप देती है. चाइल्ड वेलफेयर टीम ऐसे बच्चों को तब तक अपनी कस्टडी में रखती है, जब तक कि वो 18 वर्ष के नहीं हो जाते हैं.

भारतीय समाज की तरह देखभाल करना है नॉर्वे में हैं क्राइम

वहीं साल 2011 की बात है. अनुरुप अपनी नौकरी में व्यस्त थे. सागरिका अपने बच्चों को पालने में व्यस्त थी. वहीं इस बीच नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज, जिसे बार्नेवरनेट (चाइल्ड प्रोटेक्शन) ऐश्वर्या और अभिज्ञान दोनों को उनके माता-पिता से दूर कर दिया. दोनों बच्चों को अपनी कस्टडी में लेकर फोस्टर केयर में भेज दिया. इसके साथ ही ये भी कहा गया कि दोनों जब तक 18 साल के नहीं हो जाते, उन्होंने अभिभावक को नहीं सौंपा जा सकता. इसके पीछे ‘अनुचित पेरेंटिंग’ वजह बताई गई और महीनों तक “ऑब्जर्वेशन” करने के बाद ये फैसला लिया गया है. वहीं कपल पर आरोप लगा कि वो बच्चों के साथ एक ही बिस्तर पर सोना, हाथ से खाना खिलाना ये सब एक तरह की जबरदस्ती है रना और बिस्तर पर सोना शारीरिक दंड है तो वहीं थप्पड़ मारने जैसे आरोप लगे और ये सब तब हुआ जब  ”नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज की एक महिला अधिकारी अक्सर उनके घर आती थी.

 धोखे से सीडब्ल्यूएस ने ली सागरिका के बच्चों की कस्टडी 

सबसे पहले चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज (सीडब्ल्यूएस) ने इस कपल के बेटे अभिज्ञान को कस्टडी में लिया. काफी कोशिशों के बावजूद जब उन लोगों ने उसे नहीं छोड़ा तो सागरिका अपने घर लौट आई. वहां पहले से सीडब्ल्यूएस के लोग और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे. उन लोगों के बीच ऐश्वर्या को लेकर बहस होने लगी, क्योंकि वो उसकी कस्टडी भी मांग कर रहे थे. इस बीच उनकी टीम की एक महिला ऐश्वर्या को घुमाने के बहाने बाहर ले गई. कुछ देर बाद कॉल आई कि दोनों बच्चे अब सीडब्ल्यूएस की कस्टडी में हैं. इसके बाद ये कपल कोर्ट गया .

स्थानीय कोर्ट में केस दाखिल हुआ और सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सीडब्ल्यूएस के हक में ही फैसला दिया. उनको साल में तीन बार एक घंटे के लिए अपने बच्चों से मिलने की इजाजत दी गई. धीरे-धीरे ये मामला मीडिया की नजर में आ गया. भारत में लोग सागरिका के पक्ष में प्रदर्शन करने लगे.

वहीं इस प्रदर्शन के बाद विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद नार्वे सरकार ने बच्चों की कस्टडी उनके चाचा को देना का फैसला किया और बच्चे अपने चाचा के पास दिल्ली आ गये. वहीं इस बीच इस केस की वजह सागरिका और उसके पति का तलाक हो गया जिसके बाद सागरिका का संघर्ष शुरू हुआ.

इस तरह जीती जंग 

जहाँ सागरिका ने अपने देवर से बच्चो को वापस लाने के लिए जमीन असमान एक कर दिया और इस मामले की चर्चा भारत के संसद में भी हुई. भारत सरकार के कूटनीतिक हस्तक्षेप और नार्वे की अदालत में लंबी सुनवाई के बाद दोनों बच्चों को परिवार को सौंप दिया गया था. बाद में उनका पालन-पोषण भारत में सागरिका चक्रवर्ती के पास ही हुआ.

आपको बता दें, जहाँ भारत में बच्चो को हाथ से खाना खिलाना उनके साथ बेड पर सोना और सोने के दौरान पीठ का थप-थापना और उन्हें प्यार से डांटना एक तरह की देखभाल का हिस्सा है तो वहीं नॉर्वे में इस तरह से देखभाल करने मतलब बच्चों को प्रताड़ित करना है.

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