Rameswaram Temple History: जहां भगवान राम ने किया था शिवलिंग की स्थापना!  जानिए रामेश्वरम मंदिर का अद्भुत इतिहास

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Rameswaram Temple History: भारत के धार्मिक मानचित्र पर एक ऐसा स्थल है, जहां श्रद्धा, पौराणिकता और वास्तुकला का त्रिवेणी संगम होता है — रामेश्वरम मंदिर, जिसे श्री रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है, जो भारत और श्रीलंका के बीच पंबन सेतु के माध्यम से जुड़ा हुआ एक ऐतिहासिक स्थल है। यह मंदिर न केवल बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, बल्कि इसे चार धामों में भी गिना जाता है, जिससे इसकी धार्मिक महत्ता और भी बढ़ जाती है।

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पौराणिक कथा से जुड़ा है रामेश्वरम मंदिर- Rameswaram Temple History

रामेश्वरम का संबंध रामायण काल से है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने लंका विजय से पहले यहीं भगवान शिवलिंग की स्थापना कर शिवजी की पूजा की थी। रावण को मारने के बाद भगवान राम ने अपने कर्मों से मुक्ति के लिए शिव से क्षमा मांगी थी, क्योंकि रावण एक ब्राह्मण था। इस धार्मिक आस्था के कारण यहां आने वाले श्रद्धालु मानते हैं कि रामेश्वरम की यात्रा उन्हें मोक्ष प्रदान करती है।

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण कई चरणों में हुआ। प्रारंभिक निर्माण पांड्य राजवंश के शासनकाल में हुआ था, जिन्हें दक्षिण भारत की स्थापत्य कला में विशेषज्ञता प्राप्त थी। इसके बाद चोल राजाओं और अन्य दक्षिण भारतीय शासकों ने इस मंदिर का विस्तार किया। 12वीं शताब्दी में निर्मित लंबा गलियारा आज भी मंदिर की पहचान बना हुआ है। इसके साथ ही मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी और शिलालेख इसकी ऐतिहासिक गहराई को दर्शाते हैं।

अद्वितीय वास्तुकला

रामेश्वरम मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी विश्वविख्यात है। इसका सबसे बड़ा आकर्षण है 1200 मीटर लंबा गलियारा, जिसे दुनिया का सबसे लंबा मंदिर गलियारा माना जाता है। इस गलियारे में 4,000 से अधिक खंभे हैं, जिन पर की गई बारीक नक्काशी दक्षिण भारतीय कारीगरी का उत्कृष्ट उदाहरण है।

मंदिर के चारों दिशाओं में स्थित चार गोपुरम (प्रवेश द्वार) इसकी भव्यता को और बढ़ाते हैं। इनमें से पूर्वी दिशा का राजगोपुरम सबसे ऊंचा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 53 मीटर है। हर गोपुरम पर देवी-देवताओं की सुंदर और जीवंत मूर्तियां उकेरी गई हैं, जो मंदिर को एक दिव्यता प्रदान करती हैं।

मंदिर का धार्मिक महत्व

रामेश्वरम मंदिर में ‘रामलिंगम’ और ‘विश्वलिंगम’ नामक दो शिवलिंग हैं — एक भगवान राम द्वारा स्थापित और दूसरा माता पार्वती द्वारा। यह स्थान खासतौर पर उन श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पूजनीय है जो मोक्ष की प्राप्ति की कामना रखते हैं। यहां दैनिक आरती, विशेष पूजन और अनुष्ठान श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देते हैं।

पवित्र जलकुंड और धार्मिक अनुष्ठान

मंदिर परिसर में कई पवित्र जलकुंड (थीर्थम) हैं, जिनमें स्नान करना बहुत पुण्यदायक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन कुंडों का जल पापों से मुक्ति दिलाता है और रोगों से छुटकारा भी देता है। हर दिन यहां विशेष पूजा, आरती और अनुष्ठान आयोजित होते हैं, जिनमें स्थानीय लोग और दूर-दराज से आए तीर्थयात्री हिस्सा लेते हैं।

रामेश्वरम मंदिर का भौगोलिक महत्व

रामेश्वरम मंदिर तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह स्थान पंबन द्वीप पर बसा है और भारत के मुख्यभूमि से पंबन ब्रिज द्वारा जुड़ा हुआ है। यह भौगोलिक रूप से भारत के सबसे दक्षिणी तीर्थ स्थलों में से एक है और श्रीलंका की ओर सबसे पास स्थित है। यही कारण है कि यह स्थान धार्मिक के साथ-साथ भौगोलिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है।

यात्रा का सर्वोत्तम समय और सुविधाएं

रामेश्वरम की यात्रा का सबसे उपयुक्त समय नवंबर से फरवरी के बीच माना जाता है, जब मौसम ठंडा और सुहावना होता है। इस दौरान यहां त्योहारों की धूम होती है और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मंदिर के पास श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस और होटल उपलब्ध हैं। यहां शुद्ध शाकाहारी भोजन की भी उत्तम व्यवस्था है।

रामेश्वरम मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान का प्रतीक है। यह मंदिर हजारों साल से हिंदू श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां की पौराणिक कथा, अद्भुत वास्तुकला, ऐतिहासिक गहराई और दिव्यता इस मंदिर को विशेष बनाती है। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं, जो यह प्रमाणित करता है कि रामेश्वरम सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है, जिसे हर भारतीय को कम से कम एक बार जरूर महसूस करना चाहिए।

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