Jammu-Kashmir: शाह के पहाड़ी आरक्षण के दांव से बदल जाएगी घाटी की सियासत, राज्य में तनाव और चुनाव दोनों का दिख रहा समीकरण

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सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या

बिना बुलेट प्रूफ शील्ड के भाषण देना, नमाज के समय अपने कार्यक्रम को रोक देना और यहां तक की जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी समुदाय को आरक्षण देना, ये सभी घटनाएं कुछ दिनों में जम्मू-कश्मीर में हुई है। आपको पता होगा की देश के गृहमंत्री जम्मू-कश्मीर के दौरे पर हैं। आपके मन में यह भी आ रहा होगा कि जब अमित शाह कश्मीर के लोगों के लिए इतने बड़े-बड़े दावे कर रहे है तो जरूर कोई बात होगी। यहां राहत इंदौरी साहब की एक शेर याद आती है। उन्होंने कहा था कि “सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या”। अभी आप मीडिया के जरिये कश्मीर का हाल देखे तो वहां के माहौल में तनाव तो नहीं दिख रहा है, पर जब आप थोड़ी गहराई में जायेंगे तो आपको चुनाव और तनाव, दोनों की आहट सुनाई पड़ेगी।

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शाह का वादा, पहाड़ियों को मिलेगा आरक्षण का तोफा

जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के हटाए जाने के तीन साल बाद अब विधानसभा चुनाव कराए जाने की तैयारी हो रही है। ऐसे में हर चुनाव की तरह भारतीय जनता पार्टी अपने सियासी समीकरण बनाने में जुट गई है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में मंगलवार को सियासी बिसात फेंक दी है। उन्होंने आरक्षण का ऐसा दांव चला है, जो वहां के स्थानीय पार्टियों को भी एक झटके में पस्त कर सकता है। जम्मू-कश्मीर में पहले से ही गुर्जर और बकरवाल जाती के पास आरक्षण की औजार मौजूद है। शाह ने अब पहाड़ी समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का भरोसा देकर कश्मीर घाटी में कमल खिलाने की मजबूत नींव रख दी है। शाह का यह मास्टरस्ट्रोक कही-न-कही भाजपा के चुनावी रणनीति को जरूर फायदा पहुंचाएगा।

भाजपा पहले से ही जम्मू में हिंदू वोटरों पर मजबूत पकड़ बनाए हुए है।अब चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय में पैठ जमाने की कोशिश तेज कर दी है। इसी के मद्देनजर गुर्जर समुदाय से आने वाले गुलाम अली खटाना को राज्यसभा सदस्य के लिए मोदी सरकार ने चुन कर गुर्जर समुदाय को अपने साथ रखने का पाश फेंक दिया था। वहीं, अमित शाह ने पहाड़ियों को अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में शामिल करने का भरोसा देकर जम्मू के साथ-साथ कश्मीर की जमीन पर भी भाजपा की नींव रख दी है।

सभी विपक्षी पार्टियों पर साधा निशाना

इससे पहले भी अमित शाह ने अपने रैलियों में बिना बुलेट प्रूफ शील्ड के भाषण देकर कश्मीर की जनता के साथ जुड़ने का अच्छा फंडा अपनाया था। गृहमंत्री ने अपने पाश से सभी विपक्षी पार्टियों को एक साथ झटका देते हुए राज्य में विकास ना होने का कारण अब्ब्दूला (नेशनल कॉन्फ्रेंस), मुफ़्ती (PDP) और नेहरू-गाँधी (Congress) परिवार को बताया।

नमाज के लिए गृहमंत्री ने रोका अपना भाषण

इन दिनों सोशल मीडिया पर अमित शाह का एक वीडियो बहुत तेज़ी से वायरल हो रहा है। जिसमे गृहमंत्री ये कहते हुए दिख रहे कि, “अगर नमाज का समय खत्म हो गया हो तो हम अपना कार्यक्रम फिर से शुरू करें।” दरअसल अमित शाह की यही राजनीति उनको और सभी राजनेताओं से अलग बनती है और वो जनता के दिल को जितने में बाकियों से ज्यादा कामयाब होते हैं। अमित शाह अपने एक कार्यक्रम में व्यस्त थे तभी मुस्लिमों के नमाज का समय हो गया था। तभी शाह ने इस आपदा में अवसर को ढूंढते हुए कुछ देर के लिए अपने कार्यक्रम को रोक दिया और नमाज के बाद फिर से चालू किया। गृहमंत्री का मुस्लिमों के लिए यह सम्मान एक तरफ उनकी छवि के लिए रामबाण का काम कर गया जबकि दूसरी तरफ भाजपा की चुनावी रणनीति भी सफल होते दिखी।

अगर पूर्व मुख्यमंत्री के मौलिक अधिकारों का हो सकता है हनन तो आम जनता का क्या होगा ?


महबूबा मुफ्ती जो की जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री है, उन्होंने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि उन्हें उत्तरी कश्मीर के एक इलाके में जाने से रोकने के लिए घर में नजरबंद रखा गया। उन्होंने आगे कहा की , ‘गृह मंत्री जब कश्मीर में हालात सामान्य होने का ढोल पीटते घूम रहे हैं, मैं घर में नजरबंद हूं क्योंकि मैं एक कार्यकर्ता की शादी में शामिल होने के लिए पट्टन जाना चाहती थी. अगर एक पूर्व मुख्यमंत्री के मौलिक अधिकारों को इतनी आसानी से निलंबित किया जा सकता है, तो आम लोगों की पीड़ा के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।’ अब मुफ़्ती का यह ट्वीट पढ़ कर आपको ये तो पता चल ही गया होगा की जम्मू-कश्मीर में चुनाव भी है और तनाव भी।

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