कौन हैं वे दलित महिलाएं, जिन्होंने समाज की बंदिशों को तोड़ बजाया ‘बैंड’

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“जो लोग समझ नहीं पाते औरत क्या चीज़ है,

उन्हें पहले यह समझने की जरूरत है कि औरत कोई चीज़ नहीं है”.

Nari Gunjan Sargam Band full Details in Hindi – ‘सहादत हसन मंटो जी’ द्वारा लिखी यह लाइन हमारे समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति को समझाती है. हमारा समाज हमेशा से एक औरत को अपने सपनें और इच्छाओं को दबाकर, एक आदर्श नारी का उदाहरण पेश करने के लिए कहता है. और उस आदर्श नारी की परिभाषा पितृसत्तात्मक समाज द्वारा तय जाती है. उस आदर्श नारी को अपने सारे सपने चूल्हे में झोंक कर पूरे परिवार का खाना बनाने की सलाह दी जाती है. उस आदर्श नारी को अपने पति की परछाई बनाकर जीवन जीना सिखाया जाता है. और उसे उम्मीद की जाती है कि वह अपना पूरा जीवन आदर्श बनने में निकाल दे.

लेकिन अगर कोई औरत समाज के इन नियमों से अलग जाकर, सबसे पहले खुद के बारे में सोचती है तो यह समाज उन्हें मतलबी औरत, स्वार्थी औरत और संस्कारविहीन औरत मानता है. लेकिन फिर भी कुछ औरतें समाज की इन बंदिशों को तोड़ने में कामयाब हो जाती है. ऐसी औरतें समाज के कडवे तानों को अनसुना करके, अपनी अलग रह बना लेती है. इसी तरह अपनी जिंदगी को अपनी मर्जी का नया मोड़ दिया है ‘नारी गुंजन सरगम बैंड की औरतों ने. यह बिहार का पहला ऐसा दलित महिलाओं बैंड है जो सारी पितृसत्तात्मक चुनौतियों और सामाजिक भेदभाव का सामना करते हुए इस समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है.

और पढ़ें : आजादी के बाद भी क्यों दलितों को पासपोर्ट नहीं देती थी भारत सरकार ? 

अपने जीवन को नया मोड़ देने वाली दलित महिलाएं

आमतौर पर आपने शादी और दूसरे समारोहों में पुरुषों के समूह को बैंड बजाते देखा होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे समूह के बारे में बताएंगे जिन्होंने पितृसत्तात्मक समाज की परिभाषाओं को चुनौती दी है, वह है नारी गुंजन सरगम बैंड की दलित औरतें. इस बैंड में कुल 10 दलित औरतें है जिनका नाम लालती देवी, मालती देवी, वीजान्ती देवी, अनीता देवी, सावित्री देवी, पंचम देवी, डोमनी देवी, सोना देवी, सविता देवी और छठिया देवी है. यह दलित औरतें न केवल अच्छा सरगम बजाती है बल्कि अनेक कार्यक्रमों में अपनी कला का बखूबी प्रदर्शन करके बिहार का नाम ऊचा करती हैं. बड़े शहर और उंची जातिओं की औरतों के लिए समाज में अपना अस्तित्व ढूंढना फिर भी आसन होता है लेकिन दलित जाति की औरतों को अपना अस्तित्व खोजने के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इस बात का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है.

नारी गुंजन सरगम की शुरुवात कैसे हुई

इस बैंड की महिलाएं बिहार के ढ़िबरा-मुबारकपुर गांव की रहने वाली हैं. दलित समुदाय की यह महिलाएं बैंड बनने से पहले किसी तरह अपना गुजरा कर रही थी. जिसके बाद यह दलित महिलाएं पद्मश्री सुधा वर्गीज़ के एनजीओ नारी गुंजन से जुड़ीं. जहाँ से यह हर हफ्ते 5 या 10 रुपियें जमा करती थी. एनजीओ ने इन्हें लोन दिलवाया, जिससे इन्होने कृषि का काम शुरू किया. पूरा दिन काम करने के बावजूद भी इनकी आमदनी कम ही रह जाती थी. जिससे इन दलित महिलाओं का घर खर्च भी मुश्किल से निकलता था. तभी सुधा वर्गीज के कहने और समझाने पर यह महिलाएं सरगम बैंड सीखने लगी. किसके बाद सुधा वर्गीज जी ने ही पटना से एक मास्टर, ‘आदित्य गुंजन’ को इन दलित महिलाओं को बैंड (Dalit Women Band) सिखाने के लिए बुलाया था. इन्होने एक साल के अन्दर अच्छी तरह बैंड बजाना सिख लिया था.

फेमिनिस्म इन इंडिया को इस बैंड की एक सदस्य ने बताया कि पहले कुल 16 महिलाएं बैंड सिखने आती थी, पर सामाजिक बंधिशों के कारण 6 महिलाओं ने बंध कर दिया. लेकिन हम 10 दलित महिलाओ ने यह बैंड सिखने का प्रण ले लिया था. हमने लगभग डेढ़ साल में अच्छी तरह बैंड आ गया था. इंटरव्यू में बताया कि अख़बार के जरिये जानकर एक लडके का हमारे पास फ़ोन आया और उसने अपनी शादी में बैंड बजाने का आग्रह किया. ऐसे हमने पहली बार किसी की शादी में बैंड बजाय था.  उसके बाद तो एक साल के अन्दर पूरे पटना में दलित महिलाओं के बैंड की धूम मच गयी. जिसके बाद समाजिक और जातिगत भेदभाव से निकल कर हमारे आत्मविश्वास में काफी बदलाव आया और हम निडर कहीं भी जाने और घुमने लगी.

महिलाओं का दलित नारी गुंजन सरगम बैंड (Nari Gunjan Sargam Band) की सदस्य बताती है कि पहले हमारे परिवार वाले हमारे इस काम से खुश नहीं थे, हमे सुनाते रहते थे कि क्या अब यही काम बचा है, यह काम पुरुषों का है. लेकिन पितृसत्तात्मक चुनौतियों और सामाजिक भेदभाव का सामना करते हुए इस समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है. जब हमने कुछ नाम कमा लिया तो अब हमसे खुश है. उनका कहना है कि हर औरत को अपनी सामाजिक बेड़ियाँ से बाहर निकल कर देखना चाहिए.

और पढ़ें : ब्राह्मण लड़की से शादी करने की वजह से 10 साल ज्यादा जिए थे अंबेडकर

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