Mayawati Noida Rally: बसपा का वेस्ट UP में पावर शो! 14 साल बाद नोएडा में मायावती की एंट्री, 2027 से पहले बड़ा राजनीतिक संदेश

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Mayawati Noida Rally: लखनऊ में हुई ऐतिहासिक भीड़ के बाद बहुजन समाज पार्टी अब अपने सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक दांव की तैयारी में है। 14 साल बाद मायावती नोएडा में शक्ति प्रदर्शन करने जा रही हैं, और इसे पश्चिमी यूपी में बसपा की “वापसी की शुरुआत” माना जा रहा है। डॉ. भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर 6 दिसंबर को राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल में होने वाला यह कार्यक्रम बसपा की नई रणनीति का बड़ा हिस्सा है।

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लखनऊ की रैली से बढ़ा मनोबल, अब नजर नोएडा पर (Mayawati Noida Rally)

9 अक्टूबर को लखनऊ में कांशीराम परिनिर्वाण दिवस पर बसपा की रैली में लाखों की भीड़ उमड़ी थी। यह भीड़ बसपा कार्यकर्ताओं के लिए मनोबल बढ़ाने वाली साबित हुई। इसी ऊर्जा को आगे बढ़ाते हुए अब पार्टी नोएडा में अपने शक्ति प्रदर्शन की तैयारी कर रही है। यह कार्यक्रम सिर्फ एक श्रद्धांजलि सभा नहीं, बल्कि बसपा के राजनीतिक पुनरुत्थान का इशारा माना जा रहा है।

14 साल बाद नोएडा में मायावती की वापसी

मायावती आखिरी बार 2011 में नोएडा गई थीं, वह भी मुख्यमंत्री रहते हुए। 14 साल बाद उनका यहां लौटना, वह भी इतने बड़े कार्यक्रम के लिए अपने आप में एक राजनीतिक संदेश देता है कि बसपा अब एक्टिव मोड में है और 2027 की तैयारी शुरू कर चुकी है।

बसपा की गिरती ग्राफ की बड़ी कहानी

2007 में बसपा सत्ता में थी और पार्टी ने 30.4% वोट के साथ 206 सीटें जीती थीं। लेकिन इसके बाद हर चुनाव में ग्राफ गिरता गया:

  • 2012: 80 सीट, 25.9% वोट
  • 2017: 19 सीट, 22% वोट
  • 2022: 1 सीट, 12.88% वोट

पार्टी अब इस लगातार गिरावट से बाहर निकलना चाहती है, और नोएडा की सभा उसे लेकर एक महत्वपूर्ण कोशिश है।

इतनी तैयारी क्यों? पश्चिमी यूपी में खोया जनाधार वापस पाने की कोशिश

बसपा का सबसे ज्यादा असर कभी पश्चिमी यूपी में था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां पार्टी कमजोर पड़ी। पार्टी को लगा कि दलित मतदाता बिखर गए, मुस्लिम मतदाता सपा की ओर चले गए, विपक्ष ने यह नैरेटिव बना दिया कि बसपा बीजेपी के इशारे पर चल रही है। लेकिन लखनऊ की भीड़ से मायावती ने इस नैरेटिव को तोड़ा और अब नोएडा उनके उसी आत्मविश्वास का दूसरा चरण है।

नोएडा की बैठकें: भीड़ मैनेजमेंट से लेकर बूथ स्तर तक प्लानिंग

गौतमबुद्ध नगर के जिलाध्यक्ष लख्मी सिंह की अध्यक्षता में हुई समीक्षा बैठक में पश्चिमी यूपी के कई जिलों से वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल हुए।

मुख्य निर्देश यह रहे:

  • बूथ स्तर तक पहुंच बनाओ
  • अधिकतम भीड़ जुटाई जाए
  • सोशल मीडिया पर कैंपेन तेज किया जाए
  • पार्टी छोड़ चुके वोटरों को वापस जोड़ो

यह बता रहा है कि बसपा चुनाव मोड में आ चुकी है।

दलितमुस्लिम गठजोड़ की तैयारी

पश्चिमी यूपी में दलितों में जाटव समाज की संख्या सबसे ज्यादा है, कुछ जिलों में 30% तक।
वहीं मुस्लिम आबादी भी यहां निर्णायक है। इसीलिए बसपा ने पश्चिम यूपी की कमान अपने मुस्लिम चेहरे नौशाद अली को दी है। यह साफ संकेत है कि मायावती इस बार दलित + मुस्लिम = मजबूत चुनावी समीकरण बनाने की कोशिश में हैं।

चंद्रशेखर को काउंटर करने का भी लक्ष्य

पश्चिमी यूपी में दलित राजनीति की नई पहचान बनकर उभरे चंद्रशेखर बसपा के लिए चुनौती बने थे।
लेकिन हालिया विवादों से उनका प्रभाव कम हुआ है। विश्लेषकों का मानना है कि बसपा इस सभा के जरिए दिखाना चाहती है कि दलितों का असली भरोसा अभी भी मायावती पर ही है।

यूजर बेस बढ़ाने के लिए दिल्लीहरियाणा का भी फायदा

नोएडा की लोकेशन भी रणनीतिक है

  • दिल्ली के पास
  • मीडिया कवरेज आसान
  • हरियाणा और दिल्ली के बसपा कार्यकर्ताओं की बड़ी उपस्थिति संभव

पार्टी सूत्रों के मुताबिक 1–2 लाख लोग इस आयोजन में पहुंच सकते हैं और तैयारी उसी स्तर पर की जा रही है।

मायावती के आने को लेकर सस्पेंस, लेकिन संकेत साफ

पार्टी आधिकारिक रूप से यह नहीं कह रही कि मायावती आएंगी, लेकिन दिल्ली में उनके मौजूदा ठहराव और पार्टी नेताओं की लगातार तैयारियों से यह लगभग तय माना जा रहा है कि वे 6 दिसंबर को नोएडा पहुंचेंगी। मंच भले न लगाया जाए, पर भीड़ के दम पर बसपा अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

2027 की लड़ाई का आगाज यहीं से?

बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल के अनुसार, पश्चिमी यूपी के 6 मंडल आगरा, मेरठ, अलीगढ़, सहारनपुर, मुरादाबाद और बरेली का जनसैलाब नोएडा में जुटेगा।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह बसपा का सिर्फ शो नहीं, बल्कि 2027 से पहले पहचान वापस पाने के लिए ताकतवर शुरुआत है।

बसपा का सबसे बड़ा दांव क्या असर दिखेगा?

नोएडा की यह सभा बसपा के लिए बेहद अहम है। यह सिर्फ श्रद्धांजलि सभा नहीं, बल्कि मायावती के राष्ट्रीय स्तर पर कमबैक का ऐलान मानी जा रही है। इस कार्यक्रम के जरिए बसपा संदेश देना चाहती है कि वह अभी खत्म नहीं हुई, दलित–मुस्लिम वोटों में उसकी पकड़ आज भी मजबूत हो सकती है और 2027 में वह फिर से बड़ा खिलाड़ी बनने की तैयारी कर रही है।

और पढ़ें: 2 घंटे की बैठक, BLO की मौतें और SIR का विवाद… जानें TMC-EC की टकराव की क्या है वजह

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